जमशेदपुर (JAMSHEDPUR) पीएम मोदी के तीनों किसान बिल वापस लेने की घोषणा के बाद से पूरे देश से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.  विधायक सरयू राय ने भी प्रतिक्रिया दी है. यह प्रतिक्रिया एकबारगी देखने से पीएम को सलाह भर लगती है, लेकिन ध्यान से देखने पर कहीं न कहीं उनकी टीस झलकती है. आप सोच रहे होंगे कैसे? सभी जानते हैं कि सरयू राय वैसे तो सीधी आलोचना कर जाते हैं, पर कभी कभार इशारों में अपनी बातें रखते हैं. उन्होंने शुरू से ही पीएम को कृषि बिल वापस लेने की सलाह दी थी, लेकिन तब सरकार अपनी जिद पर अड़ी थी. इसलिए सरयू राय ने लिखा कि बिना पूर्वाग्रह के सहकर्मियों/आलोचकों की सुनें, यानि आज भी सरयू राय भाजपा से अलग होकर भी कहीं न कहीं दिल से इससे जुड़े हैं और सहकर्मियों की न सुनने की टीस इस ट्वीट में झलकी है. कहीं न कहीं  क्या सरयू राय ये भी कहना चाहते हैं कि पिछले चुनाव में भी सहकर्मियों की बातों को सुना जाता तो उनके टिकट को काटा नहीं जाता तो भाजपा से ये ब्रेक अप नहीं होता.

इतिहास में दर्ज वह बदला

बता दें कि 2019 के विधानसभा चुनाव में मुंडा गुट की सलाह को दरकिनार करते हुए रघुवर गुट की बात रखते हुए सरयू राय को टिकट नहीं दिया गया , प्रतिक्रिया स्वरूप सरयू राय ने भाजपा छोड़कर नई पार्टी बनाई, अपनी सीट जमशेदपुर पश्चिम को छोड़कर जमशेदपुर पूर्वी का रूख किया और रघुवर दास को हराकर बदला लेकर इतिहास रच दिया. रघुवर दास 1995 से लगातार उस क्षेत्र के विधायक रहे और मंत्री, उपमुख्यमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया. लेकिन लगातार जीत के उनके record पर सरयू राय ने ब्रेक लगा दिया.

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपने ही दल से भिड़े

बीच बीच में सरयू राय की वापसी की अटकलें आती रहती हैं. इस पर सरयू राय कोई प्रतिक्रिया नहीं देते. लेकिन सभी जानते हैं कि सरयू राय पीएम मोदी की पसंद थे मगर अमित शाह से अच्छे संबंध का फायदा रघुवर दास को मिला और वे सीएम बने. लेकिन उनके शासनकाल में लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दे उठाने पर सरयू राय खटकने लगे और उनदोनों के बीच खटास इतनी बढ़ी कि सरयू राय इशारों में सीएम के जेल जाने की बात कहने लगे. उन्होंने उदाहरण देना शुरू किया कि अगर सीएम रह चुके मधु कोड़ा जेल जा सकते हैं तो कोई और क्यों नहीं. रघुवर दास को भी मौका मिला और पिछले विधानसभा चुनाल के ऐन पहले उन्होंने सरयू राय का टिकट काट दिया. सरयू राय ने रघुवर दास को हराकर इतिहास रच दिया लेकिन दिल से वे भाजपा-आर एस एस से जुड़े हैं. संघ के दिवंगत नेताओं की तस्वीरें कार्यालय में लगाते हैं, उनकी जयंती/पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देते हैं. खुद को संघी मानते हैं. प्रधानमंत्री को ये कहना कि वे पूर्वाग्रह से परे सहकर्मियों की बातें सुनें दर असल एक साथ बहुत कुछ कहता है.