रांची (RANCHI) - बढ़ते पेट्रोल की कीमत से ना केवल आम जनता परेशान हैं बल्कि झारखण्ड सरकार को भी राजस्व में भारी नुकसान झेलना पड़ रहा हैं. इस बात को मंगलवार को सदन में सरकार ने भी स्वीकार किया. सरकार ने विधानसभा में एक प्रश्न के जवाब में बताया है कि 2015 में 20 प्रतिशत से वैट को बढ़ा कर 22 प्रतिशत किया गया था. लेकिन 2020 में इस वैट में एक और बदलाव किया गया. इसके मुताबिक डीजल पर 22 प्रतिशत या 12.50 रुपए में जो भी अधिक पाया जाता है सरकार उस वैट की वसूली करती है. वहीं पेट्रोल पर 22 प्रतिशत या 17 रुपए में जो अधिक होता है, उस वैट को वसूला जाता है. इन आंकड़ों को ध्यान में रखकर डीजल की बिक्री की बात करें तो 2015-16 में डीजल की बिक्री 16.41 लाख किलोलीटर थी जो 2020-21 में घटकर 9.52 लाख किलोलीटर हो गई.
जान कर भी अनजान बन रही सरकार
गौरतलब है कि झारखंड पेट्रोल एवं डीजल एसोसिएशन ने भी कई बार सरकार को यह हिसाब समझाने की कोशिश की. पर शायद ब्यूरोक्रेट का असर रहा कि सरकार इस सामान्य से हिसाब को न तो समझ पाई और न जवाब दे पाई. जो हिसाब आम लोगों से लेकर पेट्रोल-डीजल विक्रेता यहां तक के सरकार के लिए भी फायदेमंद है, उसमें सरकार अनजान बन रही हैं या फिर समझने की कोशिश ही नहीं कर रही है, यह समघ् ये पड़े है. कोई भी सरकार अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहेगी. ऐसे में सरकार के जो भी ब्यूरोक्रेट हैं, वो क्या सरकार को पेट्रोल-डीजल के कीमतों का सही गणित समझा पाने में असमर्थ हैं या फिर उन्हें भी VAT के दरों पर इज़ाफ़ा या गिरावट के कारण बढ़ती-घटती पेट्रोल की कीमतों से सरकार के राजस्व पर पड़ने वाले असर की समझ नहीं है.
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