गोड्डा(GODDA)जिले के लगभग 14 लाख की आबादी के लिए सदर अस्पताल लाइफ लाइन माना जाता है. वहीं जिले के सभी नौ प्रखंडों के लोग chc,phc से बेहतर इलाज कराने आते है. मगर सिस्टम की मार झेल रहा सदर अस्पताल भी संसाधनों की कमी से केवल एक रेफरल अस्पताल बनकर रह गया है.
ज़मीन पर पड़ी रही निमोनिया से पीड़ित पंद्रह दिन की बच्ची
सदर अस्पताल के कैजुअलटी वार्ड में बेहोशी की हालत में लेटा शख्स ललमटिया के रानीडीह गांव का प्रेमलाल किस्कू है. जिसके बगल के बिस्तर पर उसकी पंद्रह दिन की बेटी बीमार पड़ी हुई है. वहीं दोनों के बेड के बीच बैठी प्रेमलाल की मां अपनी बेबसी और सिस्टम का दंश झेलते हुए बैठी नजर आ रही है. बता दें कि प्रेमलाल डायरिया से पीड़ित है और उसकी पन्द्रह दिन की बेटी निमोनिया से पीड़ित है. दुर्भाग्य ही है कि प्रेमलाल का इलाज तो शुरू हो गया मगर उसकी नन्ही बेटी को उसकी दादी एक रात जमीन पर उसको लिटाकर पड़ी रही. कारण अस्पताल में बेड की कमी बताया गया. जबकि उस बच्ची को SNCU में भर्ती करना चाहिए था. सबसे दुखद पहलू तो ये है कि जो मां अपने बेटे और पोती की इलाज के लिए अस्पताल आई, उनकी भाषा न तो अस्पताल कर्मी समझ रहे थे और न ही वो समझा पा रही थी. भला हो एक पढ़ी लिखी आदिवासी महिला जो अपने मरीज को देखने आई थी और उनकी नजर इस परिवार पर पड़ी. जिसके बाद उस महिला ने बच्ची के लिए अस्पताल में बेड की व्यवस्था करवाई.
डायरिया से पीड़ित घर के तानों भाई
इधर जब उस आदिवासी महिला से ये पूछा गया कि इन्हें हुआ क्या तो उन्होंने वृद्ध मां से बातें पूछकर बताया कि प्रेमलाल फूटबाल खेलने गया था जिसके बाद घर लौटने पर बेहोश हो गया. वहां से ललमटिया PHC ले जाया गया जहां से उन्हें सदर अस्पताल भेज दिया गया. मगर यहां भी इनका इलाज सही ढंग से नहीं हो सका. बता दें कि प्रेमलाल के दो छोटे भाई भी डायरिया से पीड़ित हैं, जो डकैता मिशन में इलाजरत हैं. सबसे दुखद पहलु ये कि सदर अस्पताल में चिकित्सकों की कमी की वजह से डायरिया से पीड़ित प्रेमलाल और निमोनिया से पीड़ित उसकी नन्ही बेटी को यहां से भी रेफर कर दिया गया. रेफर की बात पर बगलगीर मरीज की महिला परिजन भी अचंभित हैं और कहती हैं कि इनके घर में और दूसरा कोई नहीं है. देखभाल को तो कम से कम यहीं उनका इलाज सही ढंग से होता तो अच्छा था.
रिपोर्ट: अजीत कुमार सिंह, गोड्डा
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