धनबाद (DHANBAD) : कोयला उद्योग से जुड़े पेंशनरों के लिए राहत की एक बड़ी खबर सामने आई है. अगले 15 साल तक अब कोयला पेंशनरों के पेंशन भुगतान में कोई आर्थिक दिक्कत नहीं होगी. हाल ही में  बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक में यह बात सामने आई है. कोल इंडिया के कोयले के प्रति टन उत्पादन पर  ₹10 के बजाय ₹20 का आर्थिक सहयोग करने से हर साल सीएमपीएफओ यानी कोयला खान भविष्य निधि संगठन को लगभग 1500 करोड रुपए मिलेंगे. बीते वर्ष की ही बात कर ली जाए, तो कोल इंडिया का उत्पादन 781.8 मिलियन टन था. ₹20 प्रतिदिन भुगतान किए जाने से सीएमपीएफओ को सालाना 1562 करोड रुपए से अधिक का एक्स्ट्रा आर्थिक मदद मिल सकती है. सूत्रों के अनुसार इतनी रकम खाते में आने से 2038 तक कोयला पेंशनरो को निर्वाध पेंशन का भुगतान किया जा सकता है. वर्तमान में कोयला पेंशनरों की संख्या लगभग 5 लाख है. यह बात भी सच है कि जिस रफ्तार से कोल इंडिया में कर्मचारियों की संख्या घट रही है, उसको देखते हुए ऐसा लगता है कि पेंशनरों की संख्या अगले 5 साल में काफी घट जाएगी. 

अब तो फंड मैनेजरो की भी हो गई है नियुक्ति 

बता दें कि गुरुवार को नई दिल्ली में हुई बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक में फंड मैनेजर के तौर पर भारतीय स्टेट बैंक और यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया को नामित करने पर भी मुहर लगी. सूत्रों के अनुसार दोनों फंड मैनेजर 50 -50% निवेश करेंगे. बैठक की अध्यक्षता कोयला सचिव ने की. बैठक में सीएमपीएफओ के आयुक्त, एडिशनल सेक्रेटरी सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे. मतलब अब भारतीय स्टेट बैंक और यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया सीएमपीएफओ के फंड को मजबूत करेंगे. हाल के दिनों में सीएमपीएफओ काफी चर्चे में रहा है. देश की कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया में कोयले का उत्पादन बढ़ता गया और कोयलाकर्मियों के लिए बने कोयला खान भविष्य निधि संगठन में  ब्याज दर लगातार घटती गई. कोयलाकर्मियों को जमा राशि पर कम ब्याज मिल रहा है. 

साल 2000 में सूद की दर अधिक थी 
 
दरअसल, 2000 में कोयलाकर्मियों को 12% की दर से ब्याज मिलता था. जो घटते-घटते अब 2025 में 7.6 0% हो गया है. 2024 में भी 7.6 0% ही था. जबकि उसके पहले के वर्ष में अधिक था. बता दें कि कोयलाकर्मियों को प्रोविडेंट फंड पर मिलने वाले ब्याज की दर बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक में तय होता है. इसके अध्यक्ष कोयला सचिव होते है. ज्यादातर सदस्य सरकार के अधिकारी या उनके मनोनीत प्रतिनिधि होते है. ब्याज दर का निर्धारण बहुमत के आधार पर होता है. इसमें ट्रेड यूनियन के चार प्रतिनिधि भी बैठते है. यही वजह है कि यूनियन के बहुत विरोध का असर बैठक में नहीं हो पाता. कोयलाकर्मियों के मूल वेतन से 12 फ़ीसदी राशि कटती  है. उतनी प्रतिशत राशि कोयला कंपनिया  देती है. बताया जाता है कि सरकार कोयलाकर्मियों का पैसा शेयर में लगाती है. मजदूर संगठन इसका विरोध करता रहा है. शेयर में पैसा डूबने का असर कोयलाकर्मियों की आय  पर पड़ता है. यही वजह है कि एक समय 12% तक ब्याज मिलता था, जो आज घटकर 7.60% हो गया है. 

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो