धनबाद (DHANBAD) : राजनीति भी अजीब होती है. देखते-देखते किसी की किस्मत पलट देती है, तो किसी के दिन गर्दिश में पंहुचा देती है. झारखंड की राजनीति में पाला बदलने वाले हमेशा चर्चा में रहते है. कभी किसी को पद मिल जाता है, तो कभी पार्टी बदलने का उनका निर्णय आत्मघाती साबित हो जाता है. 2014 की बात की जाए तो बाबूलाल मरांडी की पार्टी छोड़कर आने वाले विधायक 5 साल तक रघुवर दास की सरकार में मंत्री रहे. लेकिन आगे चलकर कई चुनाव तक हार गए. 2024 की बात की जाए तो झारखंड की राजनीति में दो बड़े महिला चेहरा दल-बदल किये. एक गीता कोड़ा थी तो दूसरी सीता सोरेन. इस पाला की कहानी काफी चर्चा में रही.  

पाला तो कई ने बदले, कोई चमका-किसी के दिन गर्दिश में 

पाला तो चंपई सोरेन ने भी बदला , लेकिन जिस सोच के साथ उन्होंने झामुमो को नमस्ते किया, उसका बहुत लाभ नहीं मिला. हालांकि, भाजपा में अभी भी आदिवासियों की वोट खींचने को लेकर उनकी थोड़ी पूछ है. लेकिन सीता सोरेन अलग-थलग पड़ गई है. भाजपा ने दुमका लोकसभा से अपने सिटिंग एमपी सुनील सोरेन के टिकट की घोषणा के बाद उनका टिकट काटकर सीता सोरेन को पार्टी में शामिल करने के बाद मैदान में उतारा. भाजपा की सोच रही होगी कि शिबू सोरेन की बहू होने की वजह से आदिवासी वोट बैंक अपने पक्ष में कर लेगी. लेकिन नलिन सोरेन के हाथों उन्हें हारना पड़ा. लोकसभा चुनाव हारने के बाद सीता सोरेन ने पार्टी के कुछ नेताओं पर भितरघात का भी आरोप लगाया. विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने सीता सोरेन को जामताड़ा से टिकट दिया. लेकिन वह चुनाव हार गई. 

झामुमो में वापसी की चर्चा केवल चर्चा रह गई 
 
फिर से उनकी झामुमो में वापसी की चर्चा तेज हुई, लेकिन ऐसा कुछ हो नहीं पाया. सीता सोरेन की सियासी जमीन कमजोर होने और भाजपा में उनकी अनदेखी से वह अलग-अलग पड़ गई है. इधर, पूर्व मुख्यमंत्री मधुकोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा सिंहभूम से कांग्रेस की सांसद थी. उन्होंने भी लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा का दामन थाम लिया. भाजपा ने उन्हें सिंघभूम  से टिकट दिया. हालांकि वह भी झामुमो की जोबा मांझी के हाथों हार गई. लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद भाजपा ने गीता कोड़ा को पार्टी की कोर कमेटी में जगह दी. कई कमेटियों की वह मेंबर बनी. कुछ दिन पहले उन्हें भाजपा ने प्रवक्ता भी बनाया गया. मतलब गीता कोड़ा अभी भाजपा में पूछ के साथ बनी हुई है.  

2024 में झामुमो  छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे चंपई सोरेन 

पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन भी 2024 में झामुमो  छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. चंपई सोरेन का पार्टी छोड़ने को झामुमो के लिए नुकसान कहा जा रहा था, लेकिन वह सिर्फ खुद की ही सीट जीत पाए. भाजपा को उम्मीद थी कि कोल्हान की 14 विधानसभा सीटों पर चंपई सोरेन प्रभाव डाल सकते हैं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. उनके पुत्र भी घाटशिला सुरक्षित सीट से चुनाव हार गए. अब भाजपा उन्हें आदिवासियों के मुद्दे को उठाने के लिए एक तरह से अधिकृत कर दिया है. वह लगातार आदिवासी अस्मिता, बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे भाजपा के महत्वपूर्ण मुद्दों को उठा रहे है. खैर जो भी हो, लेकिन सीता सोरेन बिल्कुल अलग-थलग पड़ गई है. पूर्व पीए  के साथ विवाद को लेकर भी हाल के दिनों में वह चर्चा में है. अपने पूर्व पीए के खिलाफ मार्च में धनबाद में मुकदमा दर्ज कराया था, तो मई महीने में दुमका में उन्होंने प्राथमिकी दर्ज कराई है. 

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो