रांची(RANCHI): जेपीएससी (झारखंड लोक सेवा आयोग) की परीक्षा का परिणाम अब तक घोषित नहीं किया गया है, जिससे छात्रों में काफी आक्रोश और निराशा व्याप्त है. यह मुद्दा धीरे-धीरे और भी गंभीर रूप लेता जा रहा है. पिछले कई दिनों से जेपीएससी कार्यालय के बाहर छात्रों द्वारा लगातार धरना-प्रदर्शन किया जा रहा है. यह आंदोलन केवल जेपीएससी उम्मीदवारों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि अब इसमें कई राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन भी शामिल हो चुके हैं.
भाजपा जनता युवा मोर्चा (भाजपयुमो), आजसू पार्टी और झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) जैसे संगठनों ने भी इस छात्र आंदोलन को समर्थन दिया है. इससे यह स्पष्ट है कि जेपीएससी परिणाम में हो रही देरी अब केवल शैक्षणिक मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बन चुका है. अनशन पर बैठे छात्रों से मिलने डुमरी विधायक और जेएलकेएम के सुप्रीमो जयराम महतो भी खुद पहुंचे थे. उन्होंने छात्रों को आश्वस्त करते हुए नारियल पानी पिलाकर उनका अनशन समाप्त करवाया, लेकिन इसके बावजूद छात्रों का धरना अभी भी जारी है. वे लगातार आयोग के कार्यालय के बाहर बैठे हुए हैं और परिणाम जारी होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
वहीं, जेएलकेएम के केंद्रीय वरीय उपाध्यक्ष और छात्र नेता देवेन्द्रनाथ महतो ने भी इस मामले में सक्रिय भूमिका निभाई है. उन्होंने राज्यपाल संतोष गंगवार से हाल ही में मुलाकात कर जेपीएससी परीक्षा परिणाम को जल्द से जल्द जारी करने की मांग की है. यह पहली बार नहीं है जब देवेन्द्रनाथ महतो ने यह मुद्दा उठाया हो. इससे पहले भी वे डुमरी विधायक जयराम महतो के साथ मिलकर राज्यपाल से जेपीएससी परिणाम प्रकाशन में हो रही देरी के कारणों को लेकर चर्चा कर चुके हैं.
देवेन्द्रनाथ महतो ने राज्यपाल से यह भी आग्रह किया कि वे आयोग से इस देरी के स्पष्ट कारणों की जानकारी लें और प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करें. राज्यपाल ने भी मामले की गंभीरता को समझते हुए आयोग से देरी के कारणों पर स्पष्टीकरण मांगा है. वहीं आयोग की ओर से यह कहा गया है कि परिणाम को जल्द ही प्रकाशित किया जाएगा और छात्रों को अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी.
हालांकि आयोग द्वारा दिए गए इस आश्वासन के बावजूद छात्रों में अब भी संशय बना हुआ है. उनका सवाल अब यही है कि आखिर कब तक वे इस अनिश्चितता में बैठे रहेंगे? कब जेपीएससी परिणाम प्रकाशित होगा? क्या आयोग वाकई छात्रों के भविष्य के प्रति गंभीर है या यह केवल राजनीतिक दबाव में दिए गए बयान हैं?
यह स्पष्ट है कि अगर जल्द ही समाधान नहीं निकला, तो यह आंदोलन और अधिक व्यापक हो सकता है और सरकार व आयोग दोनों की जवाबदेही को कटघरे में खड़ा कर सकता है.
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