टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले से एक ऐसा वीडियो सामने आया है, जिसको देखकर रूह कांप उठेगी. जहां एक आदिवासी गांव के लोग भूख से बेहाल हैं. भूख से तड़पते मासूम बच्चों को माता-पिता नशा खिलाकर पेट भरने को मजबूर है. यह दृश्य देखकर दिल व्यथित जरूर हो उठेगा. घाटशिला के अंतर्गत पारुलिया और दुमका कोचा गांवों की जनजातियां, सबर और बिरहोर, आज भूख और लाचारी के उस अंधेरे में धकेल दी गई हैं, जहां मां-बाप अपने छोटे-छोटे बच्चों को खाना खिलाकर नहीं, बल्कि नशा देकर चुप कराते हैं जिस उम्र में बच्चों के हाथों में किताबें और खिलौने होने चाहिए थे, उस उम्र में उन्हें नशे की आदत में जकड़ा दिया गया है, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं तो इनसे कोसों दूर हैं.

वहीं इस मामले को लेकर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी गंभीर हैं. उन्होंने इस वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किया है और हेमंत सोरेन सरकार पर आरोप लगाते हुए कई सवाल उठाए हैं. उन्होंने लिखा है कि-झारखंड के पूर्वी सिंहभूम में आज जो दृश्य देखने को मिल रहा है, वह इतना व्यथित कर देने वाला है कि राजनीति से इतर इंसानियत तक पर सवाल खड़े कर रहा है.

घाटशिला के अंतर्गत पारुलिया और दुमका कोचा गांवों में हमारी अपनी ही जनजातियाँ, सबर और बिरहोर, आज भूख और लाचारी के उस अंधेरे में धकेल दी गई हैं, जहाँ मां-बाप अपने छोटे-छोटे बच्चों को खाना खिलाकर नहीं, बल्कि नशा देकर चुप कराते हैं. जिस उम्र में बच्चों के हाथों में किताबें और खिलौने होने चाहिए थे, उस उम्र में उन्हें नशे की आदत में जकड़ा जा रहा है, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएँ इनसे कोसों दूर हैं 

ख़ुद को आदिवासी हितैषी बताने वाली सरकार को आज शर्म से सिर झुका लेना चाहिए जिन आदिवासियों की आवाज़ पर यह सत्ता में आई, उन्हीं को जीवन और शिक्षा से वंचित छोड़ दिया गया सबर और बिरहोर जनजातियाँ हमारी पहचान और अस्मिता का हिस्सा हैं लेकिन भूख और नशे ने उन्हें लुप्त होने की कगार पर पहुंचा दिया ह. 

झारखंड आज उस मुक़ाम पर है, जहाँ सत्ता में बैठे लोगों को आदिवासी बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है और जो कोई इन बच्चों की शिक्षा और भविष्य के लिए आवाज़ उठाना चाहता है, उसे एनकाउंटर में ख़ामोश कर दिया जाता है.

सरकार से अनुरोध है कि उन जनजातियों की सुध लीजिए जिनके नाम पर आपने वोट लिए थे एवं प्रशासन को भी अपने स्तर पर आदिवासी समाज को इस नशे की कुरीति से दूर कर जागरूक करना होगा, यह हमारी आदिवासी सभ्यता के सरंक्षण के लिए अति आवश्यक है.