टीएनपी डेस्क(TNP DESK): पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) समेत कुल नौ संगठनों पर बीते दिन भारत सरकार ने 5 साल के लिए बैन लगा दिया था. जिसके बाद पीएफआई का ट्विटर अकाउंट भी बैन कर दिया गया है. आपको बता दें कि भारत सरकार की शिकायत के बाद ट्विटर इंडिया ने पीएफआई का अकाउंट बैन किया है. 

कब किया गया बैन

22 सितंबर का दिन, देश भर में NIA और ED के साथ देश की कई जांच एजेंसियां 15 राज्यों में ताबड़तोड़ छापेमारी करती है और करीब 106 लोगों की गिरफ़्तारी होती है. ये सभी लोग PFI यानि कि पोपुलर फ्रन्ट ऑफ इंडिया नाम के संगठन से जुड़े हुए थे. जांच एजेंसियों ने गिरफ्तार लोगों से पूछताछ की और कई अहम सुराग इकट्ठा किए.

इसके बाद फिर जांच एजेंसियां 27 सितंबर को छापेमारी करती है और इस बार 7 राज्यों से कुल 247 लोगों को हिरासत में लिया जाता है. इस पूरे मामले पर गृह मंत्रालय ने जांच एजेंसियों से रिपोर्ट मांगी और इसके ठीक एक दिन बाद यानि 28 सितंबर को गृह मंत्रालय ने PFI और इससे जुड़े संगठनों पर 5 साल का प्रतिबंध लगा दिया.

प्रतिबंध क्यों लगाया गया?

PFI पर क्यों प्रतिबंध लगाया गया, इसके पीछे बहुत से कारण हैं. इसमें जो मुख्य कारण है वह है कि PFI का कनेक्शन ISIS जैसे आतंकी संगठनों से रहा है. जांच एजेंसियों को इससे जुड़े कई सबूत भी मिले हैं. इसके साथ ही समाज के एक विशेष वर्ग को कट्टर बनाना इनका एजेन्डा था. PFI और उसके संगठन गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल रहे हैं, जिससे शांति और सांप्रदायिक सद्भाव खराब होने की आशंका है. PFI के कुछ सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के भी नेता रहे हैं. Simi भारत में पहले से ही प्रतिबंधित है. साथ ही इसका संबंध जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) से भी रहा है. 

गृह मंत्रालय के मुताबिक, PFI ने समाज के अलग-अलग वर्गों तक पहुंच बढ़ाने के लिए अलग-अलग संगठनों की स्थापना की, जिसका एकमात्र मकसद सदस्यता बढ़ाना और फंड जुटाना है. PFI और उसके संगठन सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक संगठन के तौर पर काम करते हैं, लेकिन एक वर्ग विशेष को कट्टर बनाना इनका छिपा हुआ एजेंडा है.

PFI से जुड़े लोग बैंकिंग चैनल, हवाला और डोनेशन के जरिए फंड जुटाते हैं, फिर इसे वैध दिखाने की कोशिश करते हैं. आखिर में इस पैसे का इस्तेमाल आपराधिक और आतंकी गतिविधियों में किया जाता है. इसके साथ ही इस संगठन के कई लोगों का नाम देश के अलग-अलग राज्यों में हुई हत्या में भी शामिल रहा.  

PFI कब चर्चा में आया?   

2006 में केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के तीन समान विचारधारा वाले संगठनों के नेताओं ने एक साथ बैठकर मुस्लिम समुदाय को उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ेपन से सशक्त बनाने के लिए एक अखिल भारतीय संगठन बनाने की आवश्यकता पर चर्चा की और तीन संगठनों का विलय करते हुए एक नया संगठन बनाया गया, इसे ही पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानि कि PFI कहा गया.

वैसे तो PFI का उदय 2006 में हुआ था. मगर, ये पहली बार चर्चा में 2010 में आया, जब केरल में एक कॉलेज प्रोफेसर टीजे जोसेफ पर हमला हुआ और उस हमले में PFI का लिंक सामने आया.  प्रोफेसर टीजे जोसेफ केरल के एर्नाकुलम जिले में रहते थे. उनके द्वारा सेट किए गए क्वेश्चन पेपर  के जरिए धार्मिक भावनाएँ आहत का आरोप लगा था जिसके बाद उन पर हमला किया गया और उनका हाथ काट दिया गया. इसके बाद लगातार इस संगठन का नाम चर्चा में बना रहा. नागरिकता कानून को लेकर उत्तर प्रदेश में हुई हिंसा हो या फिर दिल्ली के दंगे, इन सबका कनेक्शन पीएफआई से जुड़ा. इतना ही नहीं बिहार में फुलवारी शरीफ में गजवाएहिन्द स्थापित करने की साजिश में भी पीएफआई का नाम सामने आया था. आरोप लगाया था कि पीएफआई के कार्यकर्ताओं के निशाने पर पीएम मोदी की पटना में रैली थी. इसके बाद बिहार में कई जगहों पर छापेमारी भी हुई थी. कर्नाटक में भी बीजेपी नेता प्रवीण नेत्तरू हत्या में PFI कनेक्शन सामने आया था. इसके साथ ही तेलंगाना के निजामाबाद में कराटे ट्रेनिंग के नाम पर हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने का भी आरोप PFI पर लगा. इनमें से कई मामलों में तो NIA जांच भी कर रही है. 

झारखंड ने चार सालों के लिए किया था बैन

इन्हीं सब मामलों के बाद गृह मंत्रालय ने PFI पर 5 साल का प्रतिबंध लगाया है. देश के कई राज्य पहले से ही इस संगठन पर बैन लगाने की मांग कर रहे थे. झारखंड PFI को 4 सालों के लिए बैन भी कर चुका था, लेकिन बाद में कोर्ट ने प्रतिबंध को रद्द कर दिया था. हालांकि बाद में झारखंड सरकार ने फिर से बैन लगा दिया था.