पाकुड़(PAKUR): पाकुड़ जिले से एक तस्वीर सामने आई है जो सरकारी व्यवस्था की अनदेखी और लापरवाही की पोल खोलती है. करोड़ों रुपये की सरकारी गाड़ियां, जो कभी जनता की सेवा के लिए खरीदी गई थीं,कभी जनता की सेवा में दिन-रात दौड़ने वाली ये गाड़ियाँ अब बेबस, खामोश और उपेक्षित खड़ी है.
थानों में खड़ी ये गाड़ियाँ अब सिर्फ कबाड़ है
सरकारी आवासों, कार्यालय परिसरों और थानों में खड़ी ये गाड़ियाँ अब सिर्फ कबाड़ है,जैसे किसी ने इनके वजूद को भुला दिया हो. कुछ के टायर गायब हैं, कुछ के इंजन और कुछ तो ढांचे के सिवा कुछ भी नहीं रही. ये सिर्फ गाड़ियाँ नहीं थी.ये विकास का पहिया थीं.आज वो पहिया जंग खा चुका है. वजह लापरवाही मरम्मत नहीं हुई, नीलामी नहीं हुई, योजना नहीं बनी.बस खराब हुई और पटक दी गई एक कोने में, जैसे सरकारी व्यवस्था से बाहर निकाल दी गई हो.पाकुड़ के पुराना समाहरणालय परिसर हो या जिले के थानों का पिछवाड़ा हर कोने में ऐसी दर्जनों गाड़ियाँ दम तोड़ चुकी है.20 साल से यूं ही खड़ी हैं कई गाड़िया.
गाड़ियाँ जनहित के काम आ सकती थी
समय पर ध्यान दिया गया होता तो आज ये गाड़ियाँ जनहित के काम आ सकती थी. इनकी नीलामी से जो राशि मिल सकती थी, उससे स्कूल बन सकते थे, अस्पताल सुधर सकते थे, सड़कों की मरम्मत हो सकती थी,लेकिन अफ़सोस यहां गाड़ियाँ सड़ रही हैं, और साथ ही सड़ रही है सरकारी संवेदनशीलता.
ये तस्वीर प्रशासन की विफलता है
ये हालात सिर्फ गाड़ियों का नहीं, ये एक सोच का पतन है.एक प्रशासनिक सुस्ती का आईना है. आज जरूरत है फैसले की. हिम्मत की. इन गाड़ियों को कबाड़ में सड़ने से रोका जाए, इनकी नीलामी की जाए, और उससे मिली राशि को जनता के हित में लगाया जाए.
रिपोर्ट-नंदकिशोर मंडल
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