रांची (RANCHI): ‘‘जब मेरे इलाके में फैक्ट्रियां लगनी शुरू हुई थीं, तो मेरी उम्र लगभग 40 साल थी. मेरे गांव वाले बहुत खुश थे कि अब हमें रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा. हमारे इलाके में नये-नये अस्पताल व विद्यालय भी खुलेंगे, चमचमाती सड़कें बनेंगी. लेकिन आज 30 साल बाद जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो महसूस होता है कि विकास के नाम पर हमारे इलाके का विनाश कर दिया गया है. हमारे खेत बंजर हो रहे हैं. हमारे ग्रामीण कई प्रकार की बीमारियों से त्रस्त हैं. हमारे बच्चों को अब भी रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है. हमारे इलाके को इन फैक्ट्रियों से धुंआ और राख के सिवाय कुछ भी नहीं मिला है.’’-यह बोलते वक्त कल्हामांझो गांव के 70 वर्षीय भिखारी राय रोते-रोते रह गये.

यह हिस्सा रुपेश कुमार सिंह की उस रिपोर्ट का है, जो जनचौक पर 15 जुलाई को आई थी. जिसका टाइटल था, धुंआ और राख के बीच घुटती लाखों जिंदगियां.  गिरिडीह शहर पर केंद्रित इस रिपोर्ट के दो दिन बाद पुलिस इस स्वतंत्र पत्रकार के रामगढ़ स्थित घर पर दबिश देती है और उसे पकड़ ले जाती है. मानसून सत्र के दौरान बगोदर से माले विधायक विनोद सिंह ने उनकी रिहाई की मांग उठाई है. उन्होंने शून्यकाल में कहा कि 17 जुलाई को रामगढ़ से स्वतंत्र पत्रकार रुपेश कुमार सिंह को खरसावां पुलिस ने गिरफ्तार किया है. कांड्रा थाना में एफआईआर 67/21 दर्ज है. जिसकी इन्हें पहले कोई सूचना नहीं दी गई. मैं उच्च स्तरीय जांच व रिहाई की मांग करता हूं.

 

क्या कहती है पुलिस

सरायकेला खरसावां पुलिस ने रुपेश पर माओवादियों से संपर्क रखने का आरोप लगाया है. जब मीडिया ने जानना चाहा कि कि कैसे संबंध सामने आए हैं तो डीएसपी चंदन कुमार वत्स ने डिटेल देने से मना कर दिया. उन्होंने बताया कि पुलिस के पास सबूत थे, उसी आधार पर रुपेश के खिलाफ वारंट जारी किया गया था.

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पत्नी को आती है साजिश की बू

रुपेश की पत्नी ईप्सा कहती हैं कि उन्हें इस बार किसी बड़े षडयंत्र की बू आ रही है. बताया कि इससे पहले जून 2019 में भी बिहार की गया पुलिस ने रुपेश को गिरफ्तार किया था. उस वक्त भी उन पर ऐसे ही माओवादियों से संबंध के आरोप लगे थे. लेकिन पुलिस कोई सबूत पेश नहीं कर सकी। उन्हें जेल से छोड़ना पड़ा।

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पेगासस में भी था रुपेश का नाम

कुछ महीने पहले देश-दुनिया में पेगासस की खूब चर्चा हुई थी। पेगासस स्पाइवेयर के माध्यम से कथित रूप से जिनकी जासूसी की गई थी. उसमें रुपेश का भी नाम था। इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई हैं. मूलत: बिहार के भागलपुर के रहने वाले रुपेश  झारखंड की समस्याओं पर पत्र-पत्रिकाओं और विभिन्न न्यूज पोर्टल पर लिखते हैं। जेल के अनुभव पर लिखी उनकी एक किताब 'कैदखाने का आईना' प्रकाशित है।