रांची(RANCHI): झारखंड यानी 'झार' या 'झाड़' जो स्थानीय रूप में वन या जंगल का पर्याय है और 'खण्ड' यानी टुकड़े से मिलकर बना है. अपने नाम के अनुसार ही झारखंड काफी हद तक जंगलों से घिरा हुआ है. राज्य में भरपूर मात्रा में खनिज भी पाया जाता है. बता दें कि झारखंड का गठन 15 नवंबर 2000 में हुआ था. वहीं, झारखंड एक जनजातीय प्रदेश है. राज्य में जनजातीय समुदाय के संरक्षण के लिए सरकार तरह-तरह की योजनाएं लाती है. बावजूद इसके 20 साल बीत जाने के बाद भी राज्य के जनजातीय समुदाय की स्थिति क्या है ये किसी से छिपी हुई नहीं है. इस स्टोरी में हम आपको बतायेंगे कि राज्य में कितने जनजातीय समुदाय है, उन्हें क्या-क्या सरकार की ओर से लाभ मिला हुआ है. बावजूद इसके उन्हें दूसरी जगह क्यों करना पड़ता है पलायन?

झारखंड की जनजातियां       

साल 2001 की जनगणना के अनुसार झारखंड राज्य के अनुसूचित जनजातियों (एसटी) कुल 26.3 प्रतिशत थे. पूरे देश की बात करें तो जनजातियों की जनसंख्या के आधार पर झारखंड चौथे स्थान पर है. बता दें कि राज्य की ज्यादातर जनजातियां गांवों में निवास करती है. राज्य में 32 तरह के आदिवासी और जनजातियां निवास करती है, जो इस प्रकार है.      

  1. मुण्डा
  2. संताल (संथाल, सौतार)
  3. उरांव
  4. खड़िया
  5. गोण्ड
  6. कोल
  7. कनबार
  8. सावर
  9. असुर
  10. बैगा
  11. बंजारा
  12. बथूड़ी
  13. बेदिया
  14. बिंझिया
  15. बिरहोर
  16. बिरजिया
  17. चेरो
  18. चिक बड़ाईक
  19. गोराइत
  20. हो
  21. करमाली
  22. खरवार
  23. खोंड
  24. किसान
  25. कोरा
  26. कोरबा
  27. लोहरा
  28. महली
  29. माल पहाड़िया
  30. पहाड़िया
  31. सौरिया पहाड़िया
  32. भूमिज

जनजातीय समुदाय को मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव

बता दें कि राज्य के कई ऐसे आदिवासी और जनजातीय समुदाय हैं जो लगभग विलुप्त होने के कगार पर हैं. जैसे आादिम जनजाति बृजिया, मुंडा और उरांव परिवार लगभग खत्म हो चुके हैं. दरअसल, शिक्षा का अभाव, बेरोजगारी, सरकारी असुविधा के कारण वो अपना धर्म बदलकर दूसरे धर्म में परिवर्तित हो रहे हैं. वहीं, इनके अलावा भी कई अन्य जनजातीय समुदाय हैं जो असुविधा की वजह से धीरे-धीरे धर्म परिवर्तित कर रहे हैं और सरकार इसपर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. इसके अलावा राज्य के अन्य जनजातीय समुदाय भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन व्यतित कर रहे हैं.

बिरसा आवास तक अधूरा     

बता दें कि राज्य के आदिम जनजाति समुदाय को राज्य सरकार की ओर से उन्हें बिरसा आवास दी गई है लेकिन राज्य के ज्यादातर बिरसा आवास अधूरे पड़े हैं. सरकार की ज्यादातर योजनाएं आदिम जनजाति समुदाय तक पहुंच ही नहीं पाती है. दरअसल, जहां वो निवास करते हैं वहां तक ना तो बिजली के तार गए हैं और ना मोबाइल नेटवर्क वहां होता है. इस कारण उन जगहों पर सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पाती है.

मजबूरी में बाहर जाते हैं जनजातीय समुदाय

बता दें कि जनजातीय समुदाय के लोगों में असुविधा होने के कारण उन्हें मजबूरी में अपना घर छोड़कर बाहर काम के लिए जाना होता है. वहीं, बाहर से कई ऐसे वीडियो आते हैं जहां लोगों को कुछ और बोलकर ले जाया जाता है और वहां कुछ और काम कराया जाता है. ऐसे मामले लगातार देखने को मिलते हैं. ताजा मामला ताजिकिस्तान से आया है, जहां झारखंड के 44 मजदूर फंसे हुए हैं और सरकार से वतन वापसी की गुहार लगा रहे हैं.