धनबाद(DHANBAD)- धनबाद का बलियापुर क्षेत्र खेती के लिए जाना -पहचाना जाता है. यहां की मिट्टी और जलवायु के कारण इस क्षेत्र के कई इलाके में खजूर के पेड़ बड़े पैमाने में पाए जाते हैं. धनबाद शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर बलियापुर गांव में काफी संख्या में खजूर के पेड़ हैं. मकर संक्रांति से तीन माह पूर्व बंगाल के किसान बलियापुर के भिखराजपुर गांव आते हैं. 50 से 60 की संख्या में बंगाल से आए किसान गांव के सभी खजूर का पेड़ किराए पर लेकर परंपरागत तरीके से खजूर पेड़ का रस निकालकर उससे गुड़ बनाते हैं. उनका गुड़ धनबाद ,रांची हज़ारीबाग़ और बंगाल के आस पास के इलाके में लोगों को मिठास देता है.

बंगाल के नदिया जिले से आए किसान बनाते हैं गुड़

बंगाल के नदिया जिले से आए किसान अलग-अलग खेमों में बंट कर ग्रामीणों से उनका खजूर का पेड़ 120 रुपये प्रति पेड़ के हिसाब से किराए पर लेते हैं. किसानों के एक खेमा में 5 से 7 लोग शामिल रहते हैं. एक खेमा 300 से 400 खजूर के पेड़ को तीन माह के लिए अपने अधीन कर उनकी देखभाल करता है. इस दौरान किसान गांव में ही अलग अलग जगहों पर अस्थाई ठिकाना बनाते हैं. किसान घड़े को शाम के वक्त पेड़ पर चढ़कर इस तरह बांधते और पेड़ को छिलते हैं, जिससे खजूर पेड़ का रस घड़े में गिरता है. पूर्व में मिट्टी के छोटे घड़े को बांधा जाता था. लेकिन उसके टूटने के कारण अब प्लास्टिक के घड़े का इस्तेमाल होता है. बूंद-बूंद गिरने वाले रस से घड़ा भर जाता है. जिसे सूरज निकलने के समय उतारा जाता है. पेड़ पर चढ़ने और उतरने के दौरान किसान देसी जुगाड़ का इस्तेमाल कर 30 से 40 फुट की ऊंचाई तक पेड़ पर चढ़ते और उतरते हैं.

अस्थाई ठिकाने के पास बनता है चूल्हा

अपने अस्थाई ठिकाना के पास किसान मिट्टी खोदकर 6 फीट का चूल्हा बनाते हैं. जिसके दूसरे सिरे पर चिमनी जैसा ढांचा बनाया जाता है, चूल्हे जलाने के लिए सुखी लकड़ियों का इस्तेमाल करते हैं. एक बड़ी सी कड़ाही में खजूर के रस को पकाया जाता है. जिसे लकड़ी की बनी बड़े कलछी से मिलाया जाता है.  रस के पकने के बाद उसे दूसरी कढ़ाई में डालते है और रस को गाढ़ा होने तक मिलाया जाता है.जमीन में ही गोल सांचा बनाया जाता है, जिसपर एक सूखा कपड़ा बिछाकर गहरे सांचे में पके हुए रस को डालते हैं, जो महज 30 मिनट में रस सूख जाता है और उसे आसानी से सांचा से निकाला जाता है. पाटाली जिसे खजूर गुड़ कहते है ,बनकर तैयार होता है ,जिसे कागज में पैक कर किसान बेचते हैं. एक गुड़ का वजन 500 ग्राम के करीब होता है. इस पूरी प्रक्रिया में किसी तरह की कोई मिलावट नहीं होती है.पश्चिम बंगाल के नदिया जिला से आए किसान सानू शेख ने बताया है कि ठंड के सीजन में यहां आते है, एक किसान 50 पेड़ किराए पर लेते हैं, प्रतिदिन 50 से 60 किलो खजूर गुड़ बनाते है. बंगाल से झारखंड में यहां पैसा ज्यादा मिलता है अच्छी आमदनी होती है. इसलिए तीन महीने के लिये गुड़ बनाने का काम यहां करते है और मकर संक्रांति में घर लौट जाते हैं फिर बंगाल में मछली पालन और गर्मी में ताल का गुड़ बनाते है.

रसगुल्ला, खीर, पीठा सहित कई व्यंजन बनते हैं

खजूर गुड़ से रसगुल्ला, खीर, पीठा और कई व्यंजन बनाए जाते हैं. झारखंड में इस इलाके में खजूर पेड़ ज्यादा हैं, इसलिए यहां आते है बंगाल में काम का अभाव है यहां रोजगार मिल जाता है. ठंड में गुड़ की खपत ज्यादा होती है और जिसे खरीदने के लिए शहर के दुकानदार गांव पहुंचकर थोक भाव मे गुड़ खरीदकर ले जाते हैं. बिना मिलावट के शुद्ध पाटाली गुड़ मिल जाता है और भाव भी सही मिलता है. शहर में मिलने वाली गुड़ से सबसे बेहतर क्वालिटी का गुड़ है. दुकानदारों के अलावा शहर से लोग पाटाली गुड़ के लिए सुबह-सुबह गांव चले आते हैं.

रिपोर्ट :अभिषेक कुमार सिंह ,ब्यूरो हेड ,धनबाद