देवघर (DEOGHAR) : झारखंड राज्य बने 22 वर्ष होने को है. इस दौरान कई सरकारें आईंं और सभी ने राज्य में विकास की नई तस्वीर गढ़ने का दावा भी किया. लेकिन आज भी देवघर के सारठ प्रखंड के सबेजोर पंचायत का मांझी परिवार अपनी तक़दीर बदलने का इंतजार कर रहा है. सरकार और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का शिकार यह परिवार टूटे और जर्जर मकान में जान जोखिम में डाल कर रहने को मजबूर हैं.
जनप्रतिनिधि से अफसर तक असंवेदनशील
समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास की रोशनी पहुंचाने और उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के वादे के साथ नए राज्य का सफर शुरू हुआ. लेकिन इनके वादों और दावों का खोखला नज़ारा देवघर के सारठ प्रखंड के इन मांझी परिवार के लोगों की आंखों में स्पष्ट देखा जा सकता है. आज तक इन परिवारों को एक मकान तक नसीब नहीं हुआ. ऐसा नहीं है कि इनकी सुधि लेने कोई जनप्रतिनिधि इन तक नहीं पहुंचा, लेकिन सिर्फ चुनाव के वक्त, वोट मांगने, चुनाव के बाद इन्हें इनके हाल पर छोड़ दिया गया. अधिकारियों ने भी इन्हें लूटने में कोई कसर बांकी नहीं रखी. अधिकारियों की करतूत इनकी जुबानी भी आप सुन सकते हैं. इनके शरीर पर भले ही तन ढकने का ढंग का कपड़ा नहीं हो, लेकिन अधिकारियों ने आवास देने के नाम पर इनके आगे भी हाथ फैलाने में गुरेज नहीं की. अमृत मांझाी कहते हैं कि मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करते हैं. आवास के लिए मांगी गई दस हज़ार की मोटी रक़म कहाँ से जुटा पाएंगे.
बहरहाल, चुनावी वादे और सरकारी दावे की असलियत के बीच आज भी यह परिवार जर्जर मकान की टूटी छत के नीचे अपनी रात गुजारने को मजबूर है. लेकिन क्या फर्क पड़ता है. विकास और तरक्क़ी तो शहर की रेशमी रौशनी की चकाचौंध में दिखाई देती है और उसी रौशनी में हम अपनी पीठ खुद ही थपथपाते आगे बढ़ जाते हैं.
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