टीएनपी डेस्क(TNP DESK) : आज हम एक आजाद देश में बड़ी चैन से सांसे ले रहे हैं, मगर, एक दौर था जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे. इस दौर से निकले हुए हमें 75 वर्ष हो चुके हैं, और इन 75 वर्षों में हमने एक देश के तौर पर कई उपलब्धियों को हासिल किया है. मगर, हमे एक देश बनने में, इस एकता में बांधने में कई लोगों ने अपने प्राण न्योछावर किये हैं. इन लोगों की कुर्बानी सिर्फ देश के प्रति इनके अथाह प्रेम की ही निशानी नहीं है. बल्कि, ये निशानी अंग्रेजों के क्रूर और दमनात्मक रवैये का भी है.
अंग्रेजों के इस रवैये के खिलाफ लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की कई कहानियां भारतीय इतिहास में दर्ज हैं. इन इतिहास की दास्ताओं को सुनने मात्र से ही हमारे रगों में खून दौड़ने लग जाता है. वहीं इनके वीरता की दास्ताओं को सुनकर हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. मगर, गुलाम भारत के इतिहास में कई ऐसे खूनी दास्तां भी हैं जिन्हे सुनकर हमारी आँखों में आंसू आ जाते हैं तो गुस्से से आंखें लाल हो जाती हैं. ऐसा ही एक इतिहास है 13 अप्रैल का.
ये वो तारीख है ....
13 अप्रैल 1919, ये वो तारीख है, जो किसी भारतीय द्वारा भुलाये से भी नहीं भूली जा सकती. ये वो तारीख है जब अंग्रेजों ने सारी हदें पार कर दी थी. ये वो तारीख है जब जलियांवाला बाग में खून की नदियों बह रही थी. यह वह तारीख है जब कुआं पानी की जगह भारतीयों की लाशों से भरा हुआ था. ये वो तारीख है जो किसी भी भारतीय की रूह को हमेशा चोटिल करती है. जी हां, ये तारीख है जलियांवला बाग नरसंहार की. जब अंग्रेजों ने बिना किसी चेतावनी के जलियांवला बाग में जमा हुए हजारों भारतीयों पर गोलियां चला दी.
13 अप्रैल 1919 के दिन का इतिहास
पंजाब के अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ 13 अप्रैल 1919 को एक सभा का आयोजन किया गया था. अंग्रेजों को इसकी पहले से सूचना थी कि इस सभा में में लोग आजादी को लेकर कोई योजना बनाने वाले हैं. इसके बाद अंग्रेजों ने शहर में कर्फ्यू लगा दिया था. मगर, इस कर्फ्यू के बावजूद भी हजारों लोग इस सभा में शामिल होने पहुंच चुके थे. कुछ तो ऐसे भी लोग थे जो जो बैसाखी के मौके पर अपने परिवार के साथ वहीं लगे मेले को देखने गए थे.
अंग्रेजों ने पार की क्रूरता की सारी हदें
जब ब्रिटिश हुकूमत ने इतनी भरी संख्या में लोगों की भीड़ देखी, तो वे बौखला गए. उनको डर लगने लगा कि कहीं भारतीय 1857 की क्रांति को दोबारा दोहराने की ताक में तो नहीं हैं. फिर से वैसी स्थिति हो, उसके पहले ही वो इस आवाज को कुचलना चाहते थे और इस आवाज को कुचलने में अंग्रेजों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी. जब सभा में शामिल नेता लोग भाषण दे रहे थे. तभी जनरल रेजीनॉल्ड डायर अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ वहां पर पहुंच गया और बाग से निकलने वाले एकमात्र दरवाजे पर खड़े होकर सभा में शामिल सभी लोगों को घेर लिया. इसके बाद जनरल डायर ने बिना कोई चेतावनी दिए ही माउजोड़ लोगों पर गोलियां चलवा दी. कहा जाता है कि इस दौरान वहां 5000 से ज्यादा लोग मौजूद थे. इस नरसंहार में कई परिवार खत्म हो गए. बच्चे, महिला, बूढ़े तक को अंग्रेजो ने नहीं छोड़ा. उन्हें बंद करके गोलियों से छलनी कर दिया. ब्रिटिश सैनिकों ने महज 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाईं.
प्रधानमंत्री ने दी श्रद्धांजलि
इस दर्दनांक नरसंहार की आज 103वीं बरसी है. पूरा देश आज उन सभी शहीद लोगों
को याद कर रहा है. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी शहीदों को श्रद्धांजलि दी है. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि 1919 में आज के दिन जलियांवाला बाग में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि. उनका अद्वितीय साहस और बलिदान आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा.
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