ध्रुव गुप्त, पटना:

जन्माष्टमी भारतीय संस्कृति के सबसे चमकते सितारे श्री कृष्ण का जन्मदिन है. घर में कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियां चल रही हैं. मेरी तो कभी पूजा-पाठ में रुचि नहीं रही, लेकिन मुझे भारतीय संस्कृति के असंख्य नायकों में कृष्ण सबसे प्रिय लगते रहे हैं. कल देर रात तक इस अद्भुत व्यक्तित्व के बारे में सोचता रहा. नींद आई तो कृष्ण महाराज सदेह उपस्थित हो गए. हाथ में बांसुरी और होंठों पर मंद-मंद मुस्कान. प्रणाम कर मैंने कहा - 'प्रभु, देश में आपके जन्मोत्सव की तैयारियां चल रही हैं. लोग कब से आस लगाए बैठे हैं कि कलियुग में आप भारत भूमि में एक बार पुनः अवतार लेकर अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना करेंगे, तो बताईए न, कब आ रहे हैं आप ?' कृष्ण हंसे. कहा - 'वत्स, तुम्हारे भारत की मेरी यात्रा द्वापर युग तक ही ठीक थी. तब धर्म की रक्षा के लिए मुझे अधर्मी कौरव सत्ता का विनाश कर विपक्षी पांडव पक्ष के धर्मराज युद्धिष्ठिर को सत्ता सौंपनी थी. अब परिस्थितियां बहुत बदल चुकी हैं. तुम्हारे कथित भारतीय लोकतंत्र में सत्ता पक्ष हो या विपक्ष - दोनों ही के मूल में अधर्म है. दोनों ही तरफ कंसों, शकुनियों, धृतराष्ट्रों, दुर्योधनों और दुःशासनों की भारी भीड़ है. अधर्म ही अधर्म के विरुद्ध खड़ा है. युद्ध हुआ तो अधर्म ही अधर्म से लड़ेगा. अधर्म ही मरेगा, अधर्म ही मारेगा. अधर्म ही जीतेगा, अधर्म ही हारेगा. भारत में जब कहीं धर्म बच ही नहीं रहा है,  तो मुझे फिर से महाभारत रचने की क्या आवश्यकता है ? इस कलियुग में अवतार लेकर संभवतः मैं स्वयं संकट में फंस जाऊंगा. ये भ्रष्ट और कपटी लोग अलग होकर भी वस्तुतः एक ही हैं. वे महाभारत स्वयं ही रचेंगे लेकिन अपने लिए नहीं, इस देश के आमजन के लिए. लोग इन दोनों के मोहपाश में बंधकर सत्य, न्याय, समता, भाईचारे, प्रेम और करुणा का मार्ग भूलकर आपस में ही लड़ मरेंगे. लेकिन हां, यदि तुम भारतीयों की अंतरात्मा अब भी बच रही हो तो उसमें झांककर कभी अपने इस कन्हैया की प्रेम की बंसी अवश्य सुनना। इस अराजक समय में तुम भारतवासियों के सुख-शांति का कोई रास्ता निकलेगा तो वहीं से निकलेगा.'

अनगिनत छवियां एक साथ उपस्थित

कृष्ण की स्मृति मात्र से हमारे आगे उनकी अनगिनत छवियां एक साथ उपस्थित हो जाती हैं- एक नटखट बच्चा, एक चंचल और पराक्रमी किशोर, एक समर्पित शिष्य, एक आत्मीय मित्र, एक अद्भुत बांसुरी वादक,एक उत्कट प्रेमी, एक विश्वसनीय सहयोगी, एक मानवीय शासक, एक प्रचंड योद्धा, एक मौलिक विचारक, एक महान योगी, एक दूरदर्शी कूटनीतिज्ञ,एक चतुर रणनीतिकार और एक विलक्षण दार्शनिक. अपने समय की  स्थापित परंपराओं से हटकर चलने वाला एक ऐसा महामानव जिसने अपने कालखंड को अपने इशारों पर नचाया. उन्होंने शांति की भूमिका भी लिखी और युद्ध की पटकथा भी. निर्माण की परिकल्पना भी है उनमें और विनाश की योजना भी. अथाह मोह भी और असीमित वैराग्य भी. पत्नियों की भीड़ भी और प्रेम का एकांत कोना भी. जिसे हम उनकी लीला कहते हैं वह वस्तुतः जीवन के समग्र स्वीकार का उत्सव है. गोकुल के एक चरवाहे से भारत के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व तक की कृष्ण की जीवन-यात्रा किसी परीकथा की तरह युगों-युगों से हमें रोमांचित करती रही है. देश की संस्कृति के असंख्य महानायकों के बीच कृष्ण अकेले हैं, जिन्हें 'संपूर्ण पुरूष' का दर्ज़ा प्राप्त है. उन्हें जीते जी दिव्य पुरुष का आदर मिला और कालांतर में उन्हें ईश्वर का अवतार घोषित किया गया. यह बहस निरर्थक है कि कृष्ण हमारी और आपकी तरह मानव थे अथवा ईश्वर के अंश या अवतार. ईश्वर हमारा स्रष्टा है तो हम सब ईश्वर के ही अंश या अवतार हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि कृष्ण ने अपना ईश्वरत्व पहचान लिया था और हम अपने वास्तविक स्वरुप की तलाश में अंधेरे में भटक रहे हैं अभी.

(लेखक वरिष्ठ IPS अधिकारी रहे हैं. जन्म बिहार के गोपालगंज में। कई किताबें प्रकाशित. संप्रति पटना में रहकर स्वतंत्र लेखन.)

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