डॉ. जंग बहादुर पाण्डेय, रांची:

येन बध्यो बलि राजा,दानवेन्द्रो महाबलम्।

तेन त्वां प्रतिबंधास्मि,रक्षे मा चल मा चल।

रक्षा बंधन के दिन पढ़ा जाने वाला तह मंत्र भारतीय सभ्यता और संस्कृति के स्नेह और सुरक्षा का प्रतीक बन गया है. यह त्योहार प्रत्येक वर्ष श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. यह भाई बहन के अटूट प्रेम और रक्षा का संवाहक है. रक्षाबंधन के संदर्भ में कई पौराणिक ऐतिहासिक और सामाजिक कथाएं लोक में प्रचलित हैं. शची ने देवराज इंद्र, लक्ष्मी ने दानवीर बलि और कर्णावती ने हिमायुं को राखी बांधकर स्नेह, सुरक्षा और विजय का संदेश दिया था. कवयित्री सुशीला जोशी विद्योत्तमा ने ठीक ही लिखा है:

रक्षा बंधन रीत है,सिंधु घाटी आधार।

एक कबीली आस्था, बदली चुनरी धार।

अलक्षेन्द्र पत्नी बना,राजा पुरु सम्राट।

पल में ही जंग टल गया,राजा बना विराट।

राजा बलि भ्राता बना,लक्ष्मी धागा धार।

विष्णु देव वापस किए,बहना का उपहार।

4 कर्णावती रानी हुई,बहना राखी भेज।

रक्षा हिमायुं ने करी,बंधन हाथ सहेज।

5 राखी बहना भेजती,अपने भाई हाथ।

देख देख खुश हो रही,रोली टीका माथ।

पीहर का आधार है,बहन भाई का प्यार।

अंतहीन निभता रहे,सबंधी व्यापार।

बहना सगुन मना रही,पीहर हो आबाद।

नाता भाई बहन का,गुड़ के जैसा स्वाद।

उपर्युक्त दोहों मे रक्षाबंधन के सारे संदर्भो और महत्व को दर्शाया गया है. 'रक्षा-बंधन' शब्द में बांधने का भाव प्रकट होता है जो स्नेह, प्यार, सम्मान, वचनबद्धता और कर्तव्यों का होता है. जब इसे एक धागे में पिरोया जाता है तो यह आजादी का सूत्रधार बन जाता है. रक्षाबंधन पर्व एक 'निस्वार्थ वचन' है. वर्तमान समय में इसका भाव एक कार्यक्रम की तरह एक दिन में ही सिमट कर रह गया है. यह पर्व अनेक सामाजिक संदेश देता है और साथ ही इसका महत्व भी अद्भुत है. जैसे-

सुरक्षा का सूत्र: बहन, भाई की सुरक्षा के लिए उसके कलाई पर रक्षासूत्र बांधती है और भाई, अपनी बहन को सुरक्षा का वचन देता है. लेकिन आज इन वचनबद्धता और विश्वास से अधिक महत्वपूर्ण है स्त्री की सुरक्षा. यह जरूरी नहीं है कि उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ उसके भाई पर ही हो. हमारे आस पड़ोस में ऐसे कई उदाहरण मौजूद है, जहां स्त्रियों की सुरक्षा की जिम्मेवारी उसके भाइयों के ना होने पर भी बड़ी शिद्दत से निभाई जाती है.

सम्मान का सूत्र: रक्षाबंधन, सुरक्षा के साथ-साथ सम्मान का भी प्रतीक है. बहन बड़ी हो या छोटी, भाई के नजरों में हमेशा सम्मान तलाशती है, ना सिर्फ अपने लिए बल्कि हर स्त्री के लिए. हर बहन को,अपने भाई पर गर्व होता है, ठीक उसी तरह हर भाई को भी अपनी बहन पर नाज होता है. लेकिन यह भाव केवल उन दोनों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए.

आपसी समझ का सूत्र: रक्षाबंधन, भाइयों-बहनों को एक दूसरे का ख्याल रखने और ताउम्र उसका संबल करने की सीख भी देती है. कभी-कभी भाई, बहन की ओर से और बहन, भाई की ओर से निश्चिंत होकर कर्तव्यविमुख भी होने लगती है. भाई, जीवन भर बहनों की हर इच्छा, हर मांग का आदर करता हैं, लेकिन बहन की शिकायतें कम नहीं होती. उम्र बढ़ने से रिश्ते नहीं खिलते बल्कि आपसी समझ की धूप ही इस रिश्ते की संजीवनी है.

अपनापन का सूत्र: रक्षाबंधन, भाई बहन की लाड़-प्यार, हंसी-मजाक, लड़ाई-झगड़ा इस पवित्र रिश्ते को पूर्णता प्रदान करते हैं. 'जो मेरा है वह तेरा है' का भाव उम्र के साथ-साथ 'मैं' में तब्दील होने लगता है. कब यह पूर्णता का रंग फीका पड़ने लगता है और अपनेपन की गांठ खुलने लगती है इसका पता ही नहीं चलता.

स्नेह का बंधन: 'रक्षाबंधन' में बांधने का भाव है, लेकिन यह रक्षासूत्र किसी को वचन, विचारों और जिम्मेदारियों से बांधने का नहीं है. रिश्ते बांधने से नहीं टिकते बल्कि आजादी, आपसी समझ और सम्मान से इसकी नींव मजबूत होती है.

आजादी हमारी प्राथमिकता है. इस स्वतंत्र मानसिकता से धारण किए गए रक्षासूत्र की महत्ता इस प्रकार परिभाषित होगी- 'यह वह विश्वास है जो आपको महसूस करवाएं कि आपके सही और गलत फैसलों को देखने वाला, उस पर सलाह देने वाला कोई व्यक्ति है जो दुनिया को उसी नजरिये से देखता है जैसे आप देखते हैं. वह हमेशा से आपके साथ है.'

यह तब बेहद उन्मुक्त सा नजर आता हैं. जब आपको कोई रक्षासूत्र बांधता है तब आप उसके लिए श्रेष्ठ मनुष्य के समान होते हैं, इसलिए आप के आचरण पर उसका व्यवहार भी निर्भर करता है. यह रक्षासूत्र जितना कठोर होगा उतना ही तकलीफदेह भी. इसीलिए बंधन की बजाय 'आजादी' का सूत्र बांधें और वचन, विश्वास तथा प्रेम से इस त्यौहार को सजाएं और मनाएं.

(लेखक रांची में रहते हैं.  रा़ंची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष भी रहे. कई किताबें प्रकाशित. संप्रति फिनलैंड प्रवास पर. स्‍वतंत्र लेखन.)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं. the News Post का सहमत होना जरूरी नहीं. हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं.