टीएनपी डेस्क(TNP DESK): हिन्दी में एक फिल्म है – पिंक. इस मूवी में अमिताभ बच्चन, लकड़ियों के लिए एक लाइन बोलते हैं कि No means No. इसका मतलब था कि लड़कियों के ना का मतलब सिर्फ ना होता है. मगर, आज ये ही ‘ना’ इन लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है.
दुमका का चर्चित पेट्रोल कांड मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि दुमका के जैसे ही और मामलों ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. दुमका के बाद झारखंड के ही चतरा से मामला सामने आया कि एक मनचले ने एक लड़की के ऊपर तेजाब फेंक दिया. वहीं इसके बाद ऐसा ही मामला देश की राजधानी दिल्ली से आई. जहां भी एक सिरफिरे ने एक 16 वर्षीय नाबालिग को गोली मार दी. उस नाबालिग का भी बस इतना कसूर था कि उसने आरोपी अमानत उर्फ अरमान अली से बात करनी बंद कर दी थी. ये मामले यहीं नहीं थमते. यूपी के मोरादाबाद से भी एक और मामला सामने आया, जहां एक 17 वर्षीय बच्ची ने ऐसिड पी ली. क्योंकि एक मनचला उसका बार-बार पीछा और उसके साथ छेड़छाड़ करता था. चाहे झारखंड हो, दिल्ली हो, यूपी हो या कोई और राज्य या शहर. कहीं भी लकड़ियां सुरक्षित नहीं है. हर जगह शाहरुख, संदीप या अमानत मौजूद हैं जो इनके पीछे पड़े हुए हैं. लड़कियां अगर उन्हें ना कह दें तो ये इन मनचलों को पसंद नहीं आता. और फिर ये अपने सनक में इन लड़कियों की जिंदगी बर्बाद कर देते हैं. अखबारों में ऐसे रोज कई मामले छपते हैं. मगर, कुछ मामले ही पुलिस थानों में पहुंचते हैं. और जो मामले थाने पहुंचते हैं उन्ही का रिकॉर्ड सरकार के पास होता है.
सरकारी आंकड़ों में भी हो रही वृद्धि
चलिए अब सरकारी आंकड़ों की बात करते हैं. हाल ही में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानि कि एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में लड़कियों का मनचलों द्वारा पीछा करने के मामलों में वृद्धि होती गई है. इस आंकड़े के अनुसार, 2021 में भारत में इस तरह के 9,285 मामले दर्ज किए गए. 2019 और 2020 की तुलना में इस आंकड़े में इजाफा हुआ है. 2020 में जहां 8,512 तो 2019 में 8,810 मामले दर्ज किये गए थे.
मनचलों द्वारा लड़की का पीछा करने के मामले सबसे ज्यादा महाराष्ट्र से आए. वहां 2,131 मामले दर्ज किए गए. तेलंगाना 1,265 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर रहा. वहीं 1,185 मामलों के साथ आंध्र प्रदेश तीसरे स्थान पर रहा. शहरों में, मुंबई में पीड़ितों की संख्या सबसे अधिक दर्ज की गई. मुंबई में ये आंकड़ा 444 दर्ज किया गया. इसके बाद दिल्ली में 268 और हैदराबाद में 160 पीड़िता ने मामला दर्ज कराया. ये आंकड़े तो वो हैं जो लड़कियों द्वारा पुलिस थाने में दर्ज कराए गए हैं.
कई मामले तो पुलिस के पास जाते ही नहीं
मगर, कई मामले ऐसे हैं जो पुलिस के पास जाते ही नहीं. दुमका पेट्रोल कांड की बात करें तो पीड़िता की ओर से पुलिस में कथित तौर पर शिकायत की गई थी. मगर, आधिकारिक तौर पर मामला दर्ज नहीं किया गया था. पुलिस ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की. नतीजतन पीड़िता को इसका खामियाजा अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. दुमका के पीड़िता के जैसे ही कई लड़कियों के मामले पुलिस के पास जाते ही नहीं है. समाज का डर कह लें या पुलिसवालों की नजरंदाजी. मगर, इन मामलों की अनदेखी करना भी इन मामलों के तेजी से बढ़ने का बड़ा कारण है.
इन सबके इतर इन मामलों के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है, लोगों की बिगड़ती मानसिकता और अपराधियों में कम होता कानून का डर. आईपीसी की धारा 354D के तहत लड़कियों का पीछा करने वाले को तीन साल जेल की सजा के साथ फाइन का प्रावधान है. मगर, आरोपियों को इसका कोई डर नहीं है. तभी तो वो पीछा भी करते हैं और लड़कियों पर हमला भी करते हैं. कानून की आंखें इन मामलों पर लेट से खुलती है. वो भी तब जब मीडिया और लोगों का दबाव बनता है. अगर ये दबाव ना बने तो पुलिस प्रशासन इन मामलों में भी एक्शन ना लें. पुलिस का ये नजरअंदाज रवैया मासूम लड़कियों को चुकानी पड़ती है.
समाज को तय करनी होगी अपनी जिम्मेदारी
दूसरा सबसे बड़ा कारण है लोगों की मानसिकता. और इसके पीछे समाज जिम्मेदार है. समाज के लोगों का ये दायित्व है कि वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें. लड़कियों की इज्जत और उनकी मर्जी का सम्मान करना सिखाए. ना कि किसी के प्रति बदले की भावना पालना. समाज अगर अपनी जिम्मेदारी मान ले और उसपर काम करें तो शायद ना किसी मासूम को अपनी जान गंवानी पड़ेगी और ना ही समाज में लड़कियों के विरुद्ध कोई अपराध होगा.
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