धनबाद (DHANBAD) : धनबाद की झरिया, झरिया का धनबाद. बूढ़ी हड्डियों वाली झरिया 1922 में रैयती थी लेकिन 2022 में यह गैरआबाद हो गई. क्यों हुई, कैसे हुई और लोग इसके पीछे क्यों साजिश का हिस्सा मान रहे हैं. हम आपको बताने की कोशिश करेंगे. बता दें कि झरिया में जमीन के नीचे आग धधक रही है और ऊपर जिंदगी चल रही है और जिंदगी ऐसी कि लाख खतरे के बावजूद लोग झरिया को खाली करना नहीं चाहते. जानते हैं कि झरिया खतरनाक हो गई है लेकिन रोजगार के मोह ने उन्हें जाल में बांधकर रखा है. झरिया एक ऐसा शहर है, जहां अगर आप मेहनत करना चाहे तो हजार -₹500 प्रतिदिन कमा सकते है.
पौ फटने से पहले होता था करोड़ों -करोड़ का कारोबार
कोयला बिक्री ई-नीलामी व्यवस्था शुरू होने के पहले झरिया के कतरास मोड़ में पौ फटने से पहले करोड़ों -करोड़ के कारोबार हो जाते थे. हालांकि अब ऐसी बात नहीं है लेकिन अब भी कतरास मोड़ पर पौ फटने के पहले जुटान होता है. झरिया के कारोबारी उपेंद्र गुप्ता 1922 का नक्शा दिखलाते हैं और सवाल करते हैं कि 1922 में जब झरिया रैयत थी तो फिर 2022 में गैरआबाद कैसे हो गई. उनका कहना है कि 1922 के नक्शे में 13 1 मौजा अंकित है और सभी मौजों को रैयत बताया गया है. यह नक्शा अंग्रेजों के जमाने में बीके गोखले नामक किसी सर्वेयर द्वारा तैयार किया गया है, लेकिन अभी झरिया के 90% आबादी को ग़ैरा बाद घोषित कर दिया गया है.
झरिया के साथ हो रही साजिश
उनका मानना है कि यह सब इसलिए किया गया है कि लोगो को परेशान किया जाए और जरूरत के हिसाब से मुआवजा नहीं देना पड़े. वही, झरिया के कारोबारी बसंत कुमार अग्रवाल का कहना है कि झरिया के साथ धोखा हो रहा है, अन्याय हो रहा है, सरकार झरिया के अस्तित्व को ही मिटाने पर तुली हुई है. झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन इस ओर ध्यान नहीं दे रहे है. बीसीसीएल के सीएमडी तो ऐसे फरमान जारी कर रहे हैं जैसे यह उनकी निजी जमीं है. उनका मानना है कि सरकार के इस साजिश के खिलाफ जनता को जागरूक होना होगा.
रिपोर्ट : शाम्भवी सिंह के साथ प्रकाश महतो
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