रांची(RANCHI): सरकार दावा करती है कि सभी जरुरतमन्द लोगों को आवास का लाभ मिल रहा है. लेकिन यहां हर दावा फेल साबित होता दिख रहा है चाहे वह केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सभी के  दावे  खोखले साबित होने की तस्वीर जमशेदपुर से सामने आई है. एक आदिम जनजाति के परिवार का आशियाना तीन माह पहले उजड़ गया. किस्मत से उनके परिवार की जान बच गई. लेकिन अब उनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं बचा. आखिरकार परिवार के लोग शौचालय को ही अपना आशियाना बना लिया. यह तस्वीर देखिए

सभी सरकारी बाबुओं के पास चक्कर लगाकर थक चुके इस परिवार में तीन लोग रहते हैं. एक वृद्ध गुरुवारी सबर, उनके बेटे और बहु. ऐसे ही शौचालय में सोने के कारण उनके पोते को सांप ने काट लिया. जिससे उसकी मौत कुछ दिन पहले हो गई.

जमशेदपुर जिले के दलमा जंगल के तराई में तमूकबेड़ा एक गांव है. इस गांव में 11 आदिम जनजातीय परिवार के लोग रहते हैं. आज भी इस गांव में मूलभूत सुविधाओं से लोग वंचित है. गुरुवारी सबर की परेशानी सिर्फ आशियाना जाने का नहीं है. जब आप उनके बारे में जानेंगे तो आप की आंखे नम हो जाएगी. गुरुवारी सबर के पति की मौत आठ माह पहले बीमारी के कारण हो गई. उनके पास पैसे नहीं थे कि वह अपने पति का इलाज करा सके. इसके अलावा गुरुवारी सबर खुद कुछ दिन पहले एक सड़क दुर्घटना की शिकार हो गई है. जिससे अब वह ठीक से चल भी नहीं सकती.

इनकी बेबसी ऐसी है कि अपनी पीड़ा बताते हुए वह भावुक हो गई. आखिर इनकी सुध कौन लेगा,क्या दूसरे राज्य से इन्हें सरकारी मदद दी जाएगी. गुरुवारी सबर के अलावा भी अन्य लोगों के घर कब गिर जाएंगे यह कहा नहीं जा सकता है. सभी लोगों के घर की छत लगभग गिरने की कागार पर है. घर गिरने से बड़ा हादसा भी हो सकता है.     

यह वही जमशेदपुर है जहां से सत्ता में बैठे स्वास्थ्य मंत्री आते हैं. यह वही जमशेदपुर है जहां पूर्व मुख्यमंत्री रहते हैं. लेकिन इन्हें पास के लोगों की परेशानी नहीं दिख रही है.

आदिम जनजातीय समुदाय के लोगों के लिए केंद्र और राज्य सरकार कई योजनाएं चलाती है. लेकिन यह योजना स्वीकृत होने के साथ ही इसपर अधिकारियों की नजर पड़ जाती है. फिर उस योजना के पैसे को लूट कर आराम से अपना आशियाना बना लेते हैं. या योजना धरातल पर आ भी गई तो उस योजना का लाभ जरुरतमन्द लोगों को नहीं मिलता है. इसे अधिकारियों की मिली भगत से जिसके पास पहले से सब कुछ है उसे इसका लाभ दे दिया जाता है.