टीएनपी डेस्क(TNP DESK): साल था 1961, दिन था 4 मार्च. इस दिन भारत ने ब्रिटेन से HMS Hercules खरीदा. इसे लेने भारत की उच्चायुक्त विजय लक्ष्मी पंडित आयरलैंड पहुंची. और इस एयरक्राफ्ट कैरियर के डेक पर पहुंच कर उन्होंने इंडियन नेवी का झंडा फहराया. नेवी में शामिल होने के बाद इस कैरियर का नाम रखा गया INS विक्रांत.

INS विक्रांत 36 सालों तक भारतीय समुंद्री सीमा का गौरव रहा. 1971 युद्ध में बांग्लादेश जो तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान था उसमें दुश्मनों के कई ठिकानों को तबाह कर दिया था. इसकी ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विक्रांत को तबाह करने के लिए पाकिस्तान ने एक विशेष ऑपरेशन चलाया था, जिसके लिए पाकिस्तान ने अपने उस समय के सबसे आधुनिक और शक्तिशाली सबमरीन गाजी को भेजा था. जिसे भारतीय सबमरीन ने समुंद्र के सुपुर्द कर दिया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौसेना का सौंपा INS विक्रांत

31 जनवरी 1997 को ins विक्रांत भारतीय नौसेना से रिटायर हो गया था. मगर, 2 सितंबर 2022 को फिर से विक्रांत का पुनर्जन्म हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस एयरक्राफ्ट कैरियर को भारतीय नौसेना को सौंपा. इसके साथ ही भारत दुनिया के उन छह चुनिंदा देशों में शामिल हो गया, जिन्होंने इस तरह के युद्धपोत बनाए हैं. Ins विक्रांत भारतीय समुंद्र के इतिहास का सबसे बड़ा एयरक्राफ्ट कैरियर है.

INS विक्रांत की नींव कैसे और कब रखी गई

1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल का युद्ध हुआ. इस युद्ध ने भारत को स्वदेशी हथियारों और जहाजों के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया. भविष्य के खतरों से निपटने के लिए एक विशाल एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने का प्रस्ताव रखा गया. इस प्रस्ताव में सबसे खास बात ये थी कि एयरक्राफ्ट कैरियर पूरी तरह स्वदेशी हो. भारतीय नौसेना ऐसे युद्धपोत को ऑपरेट करना जानती थी, मगर बनाना नही.

अटल बाजपेयी की सरकार ने दी प्रस्ताव को मंजूरी

2002 में इस प्रस्ताव पर अटल बाजपेई की सरकार में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने मंजूरी दे दी. कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ. शुरुआत में ये तय किया गया था कि 60:40 ratio से ये युद्धपोत बनेगा. मतलब कि 60 प्रतिशत सामान देशी और 40 फीसदी सामान विदेशी. इसके निर्माण के लिए वॉरशीप ग्रेड स्टील की जरूरत थी. जो भारत रूस से आयात कर रहा था. 2005 तक सब ठीक चल रहा था. मगर, तभी रूस ने वॉरशीप ग्रेड स्टील देने से मना कर दिया. इसके कारण 2 सालों तक निर्माण कार्य रुक गया. मगर, भारत ने इस आपदा में अवसर को ढूंढ निकाला और DRDO और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया  ने मिलकर खुद का वॉरशीप ग्रेड स्टील तैयार कर लिया. इससे भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता खत्म हो गई. मौजूदा समय में जिंदल ग्रुप और एसआर ग्रुप मिलकर इस स्टील को बनाते हैं.

2009 में ins विक्रांत का प्रोग्रेसिव कंस्ट्रक्शन शुरू हुआ. 29 अगस्त 2011 में इस जहाज का ढांचा बनकर तैयार हुआ और विक्रांत ड्राय डॉक से बाहर आया. 12 अगस्त 2013 को आईएनएस विक्रांत को लॉन्च किया गया और दिसंबर 2020 में इसके बेसिन ट्रायल्स पूरे हुए. 4 अगस्त 2021 को इसे पहली बार समुंद्र में उतारा गया और जुलाई 2022 तक इसके सी ट्रायल्स हुए. इसके बाद जाकर 2 सितंबर 2022 को आईएनएस विक्रांत भारतीय नौसेना में कमिशन हो गया.

इन हथियारों से लैस है INS विक्रांत

आईएनएस विक्रांत की बात करें तो इसमें 4LM 2500 गैस टर्बाइंस हैं, जिससे 88 मेगावॉट पावर जेनरेट करेंगे. विक्रांत में 14 डेक हैं. इसमें कैन्टीन के साथ मॉडर्न किचन है. मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल है. इसमें एक बार ईधन भरने पर ये 45 दिनों तक समुंद्र में रह सकता है और इसे समुंद्र में ही रिफिल किया जा सकता है. इसकी मैक्सिमम स्पीड 51 किलोमीटर प्रति घंटा है. सुरक्षा और युद्ध जैसे हालात के लिए इसमें 32 मीडियम रेंज की सर्फेस टू एयर मिसाइल होगी. ये AK-630 रोटरी CANONS से लैश होगा. इसके साथ ही यह इंडियन एंटी मिसाइल नेवल डेकॉय सिस्टम से भी लैस है, जो लेजर गाइडेड मिसाइल को टारगेट से डायवर्ट कर देता है. आईएनएस विक्रांत का अपना बेड़ा होगा. जिसमें इंडियन नेवी के डिस्ट्रोयर्स, सबमरीन शामिल होंगे. इसके साथ ही इस पर mig 29k जैसे एडवांस एयरक्राफ्ट भी शामिल होंगे.

दोनों विक्रांत में ये हैं समानताएं

अगर पुराने आईएनएस विक्रांत और नए आईएनएस विक्रांत की बात करें तो इसमें कई समानताएं हैं. दोनों का ध्येय वाक्य जयेम सं युधिस्प्रिध है जिसका मतलब है कि जो मुझसे युद्ध करेगा, उसे मैं पूरी तरह से पराजित कर दूंगा.  पुराने विक्रांत का पेटेंट नंबर R 11 था. वहीं नए विक्रांत का नेमसेक R 11 है. दोनों का नाम भी विक्रांत है.