Patna-बिहार की सियासत में उपेन्द्र कुशवाहा की गिनती उन चंद नेताओं में होती है, जिनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता, कभी भी वह अपनी सियासी पार्टी का गठन करते हैं तो कभी भाजपा नीतीश के साथ अपनी सियासत को धार देते हैं. लेकिन इन तमाम उठापटक के बीच भी वह कुशवाहा जाति का सबसे मजबूत सियासी चेहरा माने जाते हैं, आज भी उपेन्द्र कुशवाहा की कद काठी का कोई दूसरा कुशवाहा चेहरा बिहार में किसी भी सियासी जमात के पास नहीं है. तमाम दलों में मौजूद कुशवाहा चेहरों की अपनी एक सीमा है, लेकिन उपेन्द्र कुशवाहा इस सबसे जुदा, अपना जनाधार अक्षूण्ण बनाये रखते हैं, यह वह जनाधार है, जिसका उपेन्द्र कुशवाहा का इधर उधर करने से कोई असर नहीं होता, वह हर कीमत पर उपेन्द्र कुशवाहा के साथ खड़ा नजर आता है.
उपेन्द्र कुशवाहा की सबसे बड़ी समस्या उनकी सियासी उछलकूद
लेकिन सबसे बड़ी समस्या उनकी सियासी अस्थिरता की है. वह किसी भी खेमे में स्थायी भाव के साथ नहीं रहते. अभी चंद माह पहले तक ही वह सीएम नीतीश को पीएम बनाने की दावेदारी कर रहे थें. और अचानक से उन्होंने पलटी मारी और भाजपा के साथ खड़ा होकर सीएम नीतीश को अलविदा कह गयें, लेकिन बिहार की सियासी फिजाओं में एक बार उनके पलटी मारने की चर्चा तेज हो रही है.
सम्राट चौधरी की ताजपोश के साथ ही भाजपा के साथ कुशवाहा की सियासत पर लगा विराम
दरअसल भाजपा के साथ खड़े होते वक्त उन्हे इस बात का विश्वास था कि वह इस खेमे में एक बड़ा चेहरा होंगे. उनका अपना एक सियासी औरा होगा. लेकिन जैसे ही उन्होंने पाला बदला, भाजपा ने सम्राट चौधरी के सिर पर ताजपोशी कर इस बात का संकेत दे दिया कि अब यहां उनका कोई सियासी भविष्य नहीं है. बहुत हद तक वह संसद भेजे जा सकते हैं, लेकिन मुश्किल यह है कि उपेन्द्र कुशवाहा जैसे सियासी कदकाठी का नेता के लिए संसद जाना कोई उपलब्धि नहीं है, उनका सियासी सपना तो दूर की कौड़ी खेलने की है, इस प्रकार जिस सियासी हसरत के साथ उन्होंने बड़े भाई नीतीश को अलविदा किया था, वह सियासी हसरत दम तोड़ता नजर आने लगा. और उसके बाद उनके द्वारा एक बार पलटी मारने की खबरें सियासी फिजाओं में तैरनी लगी.
सियासी पलटबाजियों को खुद ही हवा दे रहे हैं उपेन्द्र कुशवाहा
लेकिन एक खबर यह है भी है कि सियासी पलटी मारने की खबरों को खुद उपेन्द्र कुशवाहा ही हवा देते रहे हैं, ताकि भाजपा के साथ वह मौलतोल की हैसियत में रहें, उधर भाजपा यह मान कर चल रही थी कि बड़े भाई नीतीश का साथ छोड़ने के बाद उपेन्द्र कुशवाहा सियासी रुप से अनाथ हो चुके हैं, और अब उनके सामने कोई विकल्प नहीं है. लेकिन उपेन्द्र तो उपेन्द्र है, और बहुत हद तक इस उपेन्द्र ने अपने बड़े भाई नीतीश से सियासत की बारीकियों को सीखा समझा है, बहुत संभव है कि बिहार की सियासी हवा में उड़ता उनकी पलटवाजियों की खबरें इसी आशय से चलाई जा रही हो, लेकिन एक दूसरी खबर है. यह भी है कि उपेन्द्र कुशवाहा की नजर लोकसभा की चार सीटों पर लगी हुई है, और वह उन सीटों के लिए अपने उम्मीवारों की पूरी सूची अमित शाह को उपलब्ध करवा चुके हैं. लेकिन अब तक उनके इस लिस्ट पर अमित शाह की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गयी है, और यहीं से उनका पाला बदल की खबरें चलने शुरु हो गयी.
किन किन सीटों पर उपेन्द्र कुशवाहा की नजर
लेकिन एक दूसरी खबर यह भी है कि उपेन्द्र कुशवाहा का एक सियासी जंग चिराग पासवान के साथ भी छिड़ सकता है. दावा किया जाता है कि इन चार लोकसभा की सीटों में एक जहानाबाद की सीट भी है, इस सीट पर उपेन्द्र कुशवाहा के साथ ही चिराग भी अपनी दावेदारी कर रहे हैं. और वह किसी भी कीमत पर जहानाबाद की सीट को छोड़ने को तैयार नहीं है, और इस सीट को लेकर चिराग पासवान के साथ उनकी जंग छिड़ सकती है. यहां बता दें कि उपेन्द्र कुशवाहा खुद तो काराकाट लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में है, और इसको लेकर भाजपा में भी कोई विवाद नहीं है, यह सीट उपेन्द्र कुशवाहा को मिलना तय है, दूसरी सीट सुपौल की है, जहां से पूर्व आईआरएस बैधनाथ मेहता को चुनाव लड़ाना चाहते हैं, तीसरी सीट है मुंगेर की, जहां से उपेन्द्र कुशवाहा मोनाजीर हसन को मैदान में उतारना चाहते हैं, ध्यान रहे कि मोनाजीर हसन जदयू छोड़ कर उपेन्द्र कुशवाहा के साथ आये हैं, और अंतिम विवाद जहानाबाद की सीट को लेकर है, जहां से वह पूर्व सांसद अरुण कुमार को उतारना चाहते हैं.
चार सीटों से कम कर भाजपा के साथ रहने को तैयार नहीं कुशवाहा
लेकिन भाजपा उपेन्द्र कुशवाहा को चार चार सीट देने को तैयार नहीं है, और इधर उनके बड़ा भाई नीतीश कुमार उनके लिए अपना दरवाजा खोल चुके हैं, लेकिन इसके साथ ही सीएम नीतीश ने उपेन्द्र कुशवाहा पर उनके राजनीतिक उछल कूद पर तंज भी कसा है, उन्होंने साफ कर दिया है कि तुमको हमने नहीं निकाला, हम कभी निकालेंगे भी नहीं, लेकिन अभी तुम्हे सियासत की कई कहकहरा पढ़ना है, और तुम्हारा यह उछल कूद तुम्हारी राजनीतिक संभावना तो कमजोर बनाता है, खबर है कि सीएम नीतीश ने उन्हे राज्यसभा भेजने का प्रस्ताव दे दिया है, इसके साथ ही उनके साथ आये कुछ चेहरों को या तो मैदान में उतारा जायेगा या विभिन्न जगहों पर सेट किया जायेगा, लेकिन बडी बात यह है कि इस बार उन्हे जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने पर सहमति बन चुकी
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