Ranchi-राजनीति के चौकस पर नारों का बड़ा महत्व होता है, एक दौर वह भी था जब गरीबी हटाओ के नारे के साथ सत्ता के अवसान पर खड़ी इंदिरा ने अपने विरोधियों को धूल चटा दिया था, तो पिछले लोकसभा चुनाव में “सबका साथ सबका विकास” के नारे के साथ पीएम मोदी ने अपने तमाम विरोधियों को घूल घूसरित करने में कामयाबी हासिल की थी, हालांकि ना तो गरीबी हटी और ना ही “सबका साथ सबका विकास’ अपने वास्तविक अर्थों में सरजमीन पर पहुंचा. और नारे यहीं खत्म नहीं होते “कभी पिछड़ा पावे सौ में साठ” के नारे के साथ लोहिया ने कांग्रेस के बने बनाये सामाजिक समीकरण को तहस-नहस कर दिया था. इसके आगे बढ़कर देखें तो कभी भाजपा ने जिस ‘हिन्दू का खून ना खौले, खून नहीं वह पानी है” के नारे का इस्तेमाल मंडलवादी शक्तियों को जमींदोज करने के लिए सामने लाया था. हालांकि भाजपा का यह नारा खुद ही जमींदोज हो गया, और आखिरकार भाजपा को ‘सबका साथ सबका विकास” के नारे पर चलने को मजबूर होना पड़ा.
और जिस मुलायम सिंह ने कारसेवकों पर गोली चलायी थी, और जिसमें सैंकड़ों कार सेवक मारे गये थें, बाबरी विध्वंश के बाद वह मुलायम सिंह लम्बे अर्से तक उतर प्रदेश की राजनीति का चेहरा बने रहें और भाजपा को उतर प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर जाने को मजबूर हो गयी. यहां यह भी याद दिला दें कि मुलायम सिंह के बारे में एक बड़ा ही पोपुलर नारा था, ‘जिसका जलवा कायम उसका नाम मुलायम है’.
बाहरी-भीतरी का उद्घोष, गैर झारखंडी सियासतदानों में बढ़ती छटपटाहट
इन तमाम नारों को सामने लाने की एक खास वजह है, वह वजह है झारखंड की राजनीति में घूमकेतू बन कर सामने आये टाईगर जयराम महतो का बाहरी-भीतरी के उद्घोष का. टाईगर जयराम के इस नारे को झारखंड के गली-कुचियों में बड़ी लोकप्रियता मिल रही है. हजारों हजार की भीड़ मंत्रमुग्ध होकर सुन रही है. हालांकि विरोधी टाईगर को सियासी अखाड़े का नौसिखुआ पहलवान मान कर अनदेखी करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जयराम की सभाओं में जो अप्रत्याशित और स्वाभाविक भीड़ जुट रही है, वह इस बात की तस्दीक कर रही है, कि राजनीति का यह चमकता सितारा आने वाले दिनों में सियासी अखाड़ें के महारथियों को गंभीर चुनौती पेश करने वाला है. हालांकि इस बाहरी-भीतरी के नारे से नुकसान किसका होता है, और अंतिम लाभ किसको मिलता है, यह एक अलग चर्चा का विषय है, लेकिन इतना साफ है कि झारखंड की सियासत के वह चेहरे जो यूपी, बिहार और राजस्थान से आकर अपनी राजनीति दुकान सजाते रहे हैं, अब उनकी दुकान की चमक फिकी पड़ने वाली है, और यह सियासी पहलवान हर दल में मौजूद हैं.
जयराम का ब्रह्मास्त्र बाहरी भीतरी का राग
ध्यान रहे कि जयराम महतो चुन चुन कर उन नामों को एलान कर रहे हैं, जिसके बाद हजारीबाग सांसद जयंत सिन्हा, धनबाद सांसद पीएन सिंह, चतरा सांसद सुनील कुमार सिंह, गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे, बरही विधायक अकेला यादव, कांके विधायक समरी लाल सहित दर्जनों सियासी पहलवानों के सामने अपनी साख बचाने का सवाल खड़ा हो गया है. इस दुखती रग के साथ ही बिहार से आये जातीय जनगणना के आंकड़ों ने भी इन सियासतदानों के सामने मुसीबत खड़ी कर दी है.
कमांडर इन चीफ संजय मेहता की इंट्री से बेचैनी किसको
लेकिन हम यहां बात जयराम के कमांडर इन चीफ संजय मेहता की कर रहे हैं, हालांकि लोकसभा 2024 के महाजंग में अभी करीबन आठ महीनों का वक्त है, लेकिन जयराम अपने कमांडर इन चीफ संजय मेहता के लिए सियासी सरजमीन की तैयारी के लिए जनसभाओं की शुरुआत कर चुके हैं. खुद संजय मेहता भी पूरे जोर शोर से अपना जनसम्पर्क अभियान चला चलाते दिख रहे हैं.
बाहरी भीतरी की लड़ाई से जयंत से लेकर मनीष के सामने खड़ा हो सकता है संकट
यहां बता दें संजय छाये की तरह हर वक्त जयराम के साथ खड़ा नजर आते हैं. जयराम की सभाओं को सफल बनाने की सारी जिम्मेवारी संजय पर ही होती है. लेकिन जिस जयराम हजारीबाग संसदीय सीट पर संजय को सियासी अखाड़े में उतराने का मन बना रहे हैं, उसके बाद वर्तमान सांसद जयंत सिन्हा के साथ ही नगर विधायक मनीष जायसवाल की राजनीति फंसती नजर आने लगी है. हालांकि जहां तक जयंत सिन्हा की बात है, भाजपा इस बार उन्हे उम्मीदवार बनायेगी, सवालों के घेरे में है. लेकिन चेहरा कोई भी उसे जयराम के सवालों से टकराना जरुर होगा.
क्या कहता है सामाजिक समीकरण
ध्यान रहे कि हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक मतदाता मुस्लिम समुदाय का-3.70 लाख, कुशवाहा- 4.42 लाख, कुर्मी-2 लाख, ईशाई 70 हजार, वैश्य 2 लाख, जबकि आदिवासी और दूसरे जातियों की आबादी करीबन 1.5 लाख बतायी जाती है. यदि इन आंकड़ों पर गौर करें तो संजय मेहता इंडिया गठबंधन के साथ ही एनडीए खेमा के लिए भी एक गंभीर चुनौती बन सकते हैं, हालांकि हार जीत की बात अपनी जगह है, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि वह बहुत हद तक इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में सफल हो सकते हैं.
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