रांची (RANCHI): कोरोना के सबब दो साल मानो जिंदगी थम सी गई थी, मेले-ठेले और पर्व-उत्सव पर भी असर पड़ा रांची में लगने होने वाली प्रसिद्ध जगरनाथपुर रथ यात्रा और मेला पर भी प्रतिबंध ही था महज सामान्य ढंग से पूजा-अर्चना की औपचारिकता निभाई जाती रही अब जबकि कोरोना से मुक्ति की फिजा है, लेकिन आपदा प्रबंधन विभाग ने मेला पर प्रतिबंध लगा रखा है. इसको लेकर नाराजगी है. अब मामला अदालत पहुंच गया है अधिवक्ता धीरज कुमार ने याचिका दायर कर रथ मेला आयोजित करने की अनुमति देने की मांग की है. इस याचिका में पुरी में होने वाले रथ मेला समेत क्रिकेट मैच, राजनीतिक सभाओं के आधार पर मेला से रोक हटाने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया कि यह मेला एतिहासिक होने के साथ साथ हज़ारों लोगों के रोज़गार से जुड़ा हुआ है.
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भाजपा भी जता चुकी है नाराजगी
पहली जुलाई से भगवान जगन्नाथ की दो साल बाद रथयात्रा निकलेगी. लेकिन मेला की अनुमति नहीं होने से पिछले दिनो भाजपा नेता ने भी अपनी नाराजगी व्यक्त की थी क्यांकि ऐसा माना जा रहा था कि 2 साल कोरोना संकट के बाद इस बार जगन्नाथपुर मेला धूमधाम से लगेगा. बता दें कि बड़ी संख्या में झारखंड के कई जिलों के अलावा बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल से भी लोग इस मेला में भाग लेने आते रहे हैं.
क्यों निकाली जाती है यात्रा
मंदिर का निर्माण 25 दिसंबर 1691 को बड़कागढ़ के राजा ठाकुर ऐनी नाथ शाहदेव ने कराया था. 1976 में मंदिर ट्रस्ट बना. तब से वही देखरेख कर रहा है. 6 अगस्त, 1990 को अचानक इस मंदिर का एक हिस्सा टूट गया था. भगवान को कई दिनों तक बरामदे में विश्राम कराना पड़ा. लेकिन 1991 में बिहार सरकार और श्रद्धालुओं के सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया.इस पर्व को मनाने के पीछे कुछ मान्यताएं है. जिसमें से सर्वप्रचिलित मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा नें भगवान जगन्नाथ से द्वारका दर्शन करने की इच्छा जाहिर की. जिसके बाद भगवान ने सुभद्रा को रथ से भ्रमण करवाया तब से हर वर्ष इसी दिन जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है.
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