सिमडेगा (SIMDEGA):  यदि आप प्रकृति की अनुपम छटाओं का आनंद लेना चाहते हैं, तो सिमडेगा जिले कोलेबिरा प्रखंड के नेशनल हाइवे 143 से महज डेढ़ किलोमीटर दूरी पर अवस्थित भंवर पहाड़ गढ़ जरूर आएं. इसकी गोद में कई ऐतिहासिक कहानियां हैं. इनमें से ही एक जीवंत कथा 180 साल पुरानी है-भगवान जगरनाथ की रथ यात्रा. भंवर पहाड़ गढ़ परगना के जमींदार ओहदार रणबहादुर सिंह ने सैकड़ो वर्ष पूर्व इस रथ यात्रा का शुभारंभ किया था. 

इस ऐतिहासिक रथ मेला की तैयारी शुरू हो गई है. रथ तैयार करने में कारीगर जुट गए हैं. भवर पहाड़ गढ़ में मंदिरों का रंग-रोगन का काम भी लगभग पूरा हो चुका है. लोग काफी हर्ष-उल्लास में है. हर वर्ष कोलेबिरा के भीम राम मिस्त्री और उसके पुत्र पप्पू कुमार रथ की नि:शुल्क मरम्मत करते हैं. 

जानिये 1 जुलाई से क्या-क्या होगा

वैश्विक महामारी कोरोना के 2 साल बाद इस बार रथ मेले में जिले समेत आसपास के निकटवर्ती राज्यों से भी श्रद्धालुओं के काफी संख्या में जुटने की संभावना है. यह रथ मेला एक सप्ताह तक चलता है. इसमें सर्कस, खेल तमाशे, झूले, खिलौने और मिठाई की दुकानें सजती हैं. यह मेला 1जुलाई को रथ यात्रा के साथ प्रारंभ होगा. कोलेबिरा स्थित मौसी बाड़ी में भगवान जगरनाथ बलभद्र और सुभद्रा के विग्रह को लाया जाएगा और 9 दिन श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ हेतु रखा जाएगा. नौवें दिन मैं इन विग्रह को पुनः मौसी बाड़ी कोलेबिरा से रथ में विराजमान कर श्रद्धालुओं के द्वारा खींचकर भंवरपहाड़गढ़ स्थित जगरनाथ मंदिर पहुंचा दिया जाएगा. 

भंवर पहाड़गढ़ कैसे बना

भंवर पहाड़गढ़ सैकड़ों साल पहले घनघोर जंगल से घिरा हुआ था उस समय

छोटा नागपुर के महाराजा पालकोट नरेश शिवनाथ सिंह शाहदेव शिकार खेलने के शौकीन थे. इस क्षेत्र में घनघोर जंगल होने के कारण बहुत से जंगली जानवर विचरण करते थे. क्षेत्र के युवक धनीराम सिंह को शिकार खेलने में महारत हासिल थी, जो राजा का सहयोग करते थे. इसी से खुश होकर ताम्र पाटा बनाकर राजा ने भंवर पहाड के वीरू परगना से 33 मौजा को काटकर भंवर पहाड़ मौजा बना कर दे युवक को दे दिया था. बाद में उनके वंशजों ने इस परगना का ओहदार रन बहादुर सिंह को बनाया, जिन्होंने सभी समुदायों को इस क्षेत्र में बसाया और समाज कल्याण के लिए दान स्वरूप जमीनें दी. इन्होंने ही यहां रथ यात्रा की शुरुआत की जो आज ही इस क्षेत्र में अत्यंत प्रचलित है.

भंवर पहाड़ गढ़ की प्रचलित पारंपरिक युद्ध रणनीति

यहां के भोगता जाति भंवर चंडी को अपना इष्ट देव मानते थे. इष्ट देव की पूजा से भंवरों को अपने वश में कर हरका (बांस की बनी पेटी) में बंद कर युद्ध स्थल पर ले जाते थे और दुश्मनों के बीच छोड़ देते थे. जिससे हमेशा विजय होती थी, यहां के लोगों की मान्यता है. विजयी भंवर चंडी के प्रताप से ही होता है. आज भी इस पहाड़ में भंवर के सैकड़ों छत्ते यहां देखने को मिल जाएंगे.

ओहदार रण बहादुर सिंह जिन्होंने अंग्रेजों के मंसूबे पर पानी फेर दिया

1857 के क्रांति की शुरुआत तो सैन्य विद्रोह के रूप में हुई, लेकिन समय के साथ ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप यह परिवर्तित हो गया. जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया.  स्वतंत्रता संग्राम के समय यह क्षेत्र लोहरदगा में आता था. उस समय लोहरदगा से उड़ीसा विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेज सेना उड़ीसा शस्त्र लेकर जा रही थी. जिसे रन बहादुर सिंह ने पपरा घाट के समीप उनके शस्त्र लूट कर अंग्रेजी सेना को भगा दिए.

भंवर पहाड़ गढ़ अनुपम सौंदर्य का जीवंत उदाहरण

भंवर पहाड़ की ऊंची ऊंची चोटियों से घिरा परिवेश अनायास ही मानव मन को अत्यंतआकर्षित करता है. एक ओर पहाड़ के ऊपर कभी न सूखने वाले तालाब का शीतल जल. वहीं दूसरी ओर पर्वतों की श्रृंखला  मनुष्य को सदैव ऊंचा उठने और ऊंचा सोचने के लिए प्रेरित करते हैं. इन पहाड़ों के बीच शांति ऐसी कि ध्यानावस्थित होने को मन चाहे सर्वत्र परिवेश ऐसा जैसे प्रकृति ध्यानमग्न (मेडिटेशन) होने की प्रेरणा देती सी लगती है. न कोई कृत्रिमता, न ही कोई हलचल, न शहरों जैसी चहल-पहल न कोई चीख-चिल्लाहट, न होड़- मारामारी, इतना शांत वातावरण की यही रच बस जाने का मन करें.

इसी प्रांगण में पहाड़ के पास जगन्नाथ स्वामी मंदिर और सामने प्राकृतिक रूप से बना तालाब जो रथ यात्रा और मकर सक्रांति के समय श्रद्धालुओं के साथ सैलानियों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है. पहाड़ के वही पहाड़ के उपर घर बनाकर लोग जीवन यापन कर रहे है. जो पहाड़ों की रानी सिक्किम की याद दिलाती है. इसके अलावा सीता चौका जो लोगों के लिए कौतूहल का विषय है. ऐसे देखने में सामान्य चट्टान से लगती है, पर जब उसमें पानी डाल दिया जाए तो दिवाली में जैसे हम लोग रंगोली बनाते हैं वैसी रंगोली चट्टान में उभर आती है.

रिपोर्ट:  अमित रंजन, सिमडेगा