धनबाद(DHANBAD): घाटशिला उपचुनाव चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा जीत गया है और भाजपा की बड़ी हार हुई है. इस चुनाव परिणाम के बाद सवाल किये जा रहे हैं कि असल में हारा कौन? उम्मीदवार बाबूलाल सोरेन, भाजपा , चंपई सोरेन या प्रदेश नेतृत्व. हर कोई अपने ढंग से चुनाव प्रचार का संचालन कर रहा था. लेकिन अब तो नतीजा खिलाफ आ गया है. भाजपा ने एक उपचुनाव के लिए 40 स्टार प्रचारक मैदान में उतार दिया था. पांच पूर्व मुख्यमंत्री भी चुनाव प्रचार में लगे हुए थे. फिर भी चुनाव पक्ष में नहीं कर पाए. स्टार प्रचारको का हेलीकॉप्टर उड़ता रहा, सभाएं होती रही, लेकिन जमीन पर भाजपा के कार्यकर्ता बैठे रहे. भाजपा का जन आधार बैठा रहा.
आखिर किन कारणों से डिफ्यूज हुआ भाजपा का "स्ट्रांग पावर"
भाजपा ने "पावर" तो बहुत लगाया, लेकिन यह "पावर" डिफ्यूज कर गया. चम्पई सोरेन जनजातीय इलाकों में अपना फोकस बनाए रखा. इससे बड़ी चूक के चश्मे से देखा जा रहा है. उन्हें भरोसा था कि जनजातीय समाज का समर्थन उन्हें मिलेगा. लेकिन यह सोच उल्टी पड़ गई. चंपई सोरेन की रणनीति भी ध्वस्त हो गई. ग्राउंड जीरो से रिपोर्टरो के जरिए जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार भाजपा प्रदेश नेतृत्व ने स्थानीय नेताओं को किनारे कर दिया था. पूरी कमान अपने हाथ में ले रखा था. यह एक भूल कहीं जाती है. ऐसे लोगों को इलाके के इतिहास- भूगोल का पता नहीं था. मतदाताओं के स्वभाव भी नहीं जानते थे.
हेलीकाप्टर वाले भाजपा नेता इलाके का समीकरण क्यों नहीं समझ पाए
समीकरण भी नहीं समझ पाए. नतीजा हुआ की बूथ कमजोर हो गया और संगठन एक तरह से बिखर गया. 2024 में भी चौपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन ही भाजपा के उम्मीदवार थे. चंपई सोरेन अपने खुद की सीट पर अधिक समय दे रहे थे. प्रदेश नेतृत्व पूरे राज्य में व्यस्त था. उस स्थिति में भाजपा प्रत्याशी को 75,000 वोट मिले थे. हार का अंतर केवल 22,000 था. 2025 में चंपई सोरेन दिन-रात घाटशिला में रहे, पूरा प्रदेश नेतृत्व यहां काम करता रहा. 40 स्टार प्रचारक आते -जाते रहे, बावजूद भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल सोरेन को पिछली बार से कम वोट मिले और हार का अंतर बढ़कर 38,000 से अधिक हो गया.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो

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