टीएनपी डेस्क(TNP DESK): भारत न्याय संहिता में FIR सबसे अहम हिस्सा माना जाता है. जिसमें पीड़ित अपने क्षेत्र के थाने में जाकर शिकायत दर्ज कराता है. FIR दर्ज होने के बाद पुलिस की जांच शुरू करती है. FIR का मतलब First information report होता है अगर आपके साथ कोई धोखाधड़ी,चोरी, डकैती बलात्कार हत्या जैसी कोई वारदात हुई है तो थाना में मामला दर्ज करवाना होता है. जिसके लिये आपको अपने क्षेत्र के थाने में जाना पड़ता है जहां आप अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं, जिसके बाद पुलिस जांच शुरू होती है.
जीरो FIR नॉर्मल FIR से कैसे अलग है ?
FIR में आपके ऊपर हुए अत्याचार अन्य के खिलाफ आप पुलिस को रिपोर्ट करते है. यह रिपोर्ट आप उसी थाने में कर सकते है जिस थाना क्षेत्र के अंतरगत अपराध हुआ है.लेकिन आज हम आपको जीरो एफआईआर के बारे में पूरी जानकारी देने वाले है कि आखिर जीरो एफआईआर नॉर्मल एफआईआर से कैसे अलग है. और इसका क्या फायदा होता है इसे क्यों बनाया गया.
क्यों लाया गया जीरो FIR का कॉन्सेप्ट ?
साल 2012 में दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था जिसके बाद 2013 में बने क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट में जीरो एफआईआर का प्रावधान जोड़ा गया. गृह मंत्रालय और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस व्यवस्था को अनिवार्य किया ताकि पीड़ित को तुरंत न्याय की प्रक्रिया मिल सके
किसी भी थाना क्षेत्र में दर्ज किया जा सकता है मामला
कॉन्सेप्ट के पीछे मनसा थी कि अपराध चाहे कोई भी थाना क्षेत्र में हुआ लेकिन पीड़ित किसी भी थाने में एफआईआर दर्ज करवा सकती है.चाहे अपराध किसी भी थाना क्षेत्र का हो, एफआईआर दर्ज किया जाता है, क्योंकि एफआईआर नंबर जीरो से शुरू होता है इसलिए इसे जीरो एफआईआर कहा जाता है.वही इसके बाद संबंधीत थाना क्षेत्र को यह मामला ट्रांसफर कर दिया जाता है.
FIR में देरी होने से सबूत मिटा दिया जाता था
जीरो FIR का कॉन्सेप्ट इसलिए शुरू किया गया क्योंकि जब पीड़िता के साथ कोई अपराध होता है तो थाने में जाने के बाद पुलिस यह कहकर मामला टाल देती है कि यह उसके थाना क्षेत्र का मामला नहीं है. जिसका सबसे ज्यादा फायदा अपराधी और बदमाशों को होता है जो समय मिलने की वजह से वह अपराध के सबूतों को मिटा देते है. वहीं सबसे ज्यादा नुकसान पीड़ितों को होता है क्योंकि एफआईआर दर्ज करवाने की वजह से कई सबूत मिटा दिए जाते है जिससे न्याय मिलने में दिक्कत होती है.

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