टीएनपी डेस्क(TNP DESK): हमारे देश में अन्याय करने के खिलाफत क़ानूनी सजा का प्रावधान है. जिसके लिए आईपीसी और बीएनएस की धारा लगाई जाती है. आज हम आपको आईपीएस और बीएनएस में मूल अंतर के बारे में बताएंगे.कि आख़िर ये दोनों एक दूसरे से अलग कैसे है.
IPC और BNS में क्या है अन्तर
आपको बता दें कि IPC यानी भारतीय दंड संहिता 1862 यानी ब्रिटिश काल में लागू की गई थी.वही BNS को साल 2023 में पारित किया गया था. जो 1 जुलाई 2024 से लागू है.आईपीसी में बहुत सारे ऐसे आधुनिक अपराध थे, जिंको शामिल नहीं किया गया था इसलिए बीएनएस को लाकर इसमे कई अपराध जोड़े गए है, जैसे कि मॉब लिंचिंग और डिजिटल अपराध यानी साइबर क्राइम को जोड़ा गया है.वही काई ऐसे अपराध हैं जिनकी सजाएं बढ़ायी गयी तो वही कुछ धाराओं को हटा दिया गया है., इसके साथ क़ानूनी प्रक्रिया को तेज करने के लिए नए प्रावधान भी शामिल किए गए है.
बीएनएस कानून आईपीसी का एक अपडेटेड वर्जन है
बीएनएस कानून आईपीसी का एक अपडेटेड वर्जन है. जिसमे कई नए डिजिटल अपराध को जोड़ा गया है जो आईपीसी में नहीं था. वहीं रेप जैसे गंभीर सजा को बढ़ाया भी गया है.आईपीसी में कुल 511 अधिनियम थे जबकी बीएनएस में 358 धाराएं ही है. बीएनएस में डिजिटल धोखाधड़ी यानी साइबर क्राइम मॉब लिंचिंग आतंकवाद जैसा अपराध को शामिल किया गया था जिसे आईपीसी में कोई जगह नहीं मिली थी.
यौन उत्पीडन अपराध जैसे बलात्कार की सजा में भी बढ़ोतरी
वही इसके साथ ही यौन उत्पीडन अपराध जैसे बलात्कार की सजा में भी बढ़ोतरी की गई है. आईपीसी में 18 साल से कम के महिला के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया है,जबकी आईपीसी में 7 साल तक सजा रखी गई थी. वही इसके जुर्मने की रकम को भी बढ़ा दिया गया है.बीएनएस में कानून प्रक्रिया को तेज करने के लिए 90 दिनों के अंदर चार्ट शीट दाखिल करना और 2 साल के भीतर सुनवाई करना जरूरी है.
बीएनएस में पुरुषों के खिलाफ अपराध और अन्य अपराध को भी जोड़ा गया है
आईपीसी की धारा में पुरुषों के खिलाफ यौन अपराध और अन्य अपराधियों की कोई जगह नहीं थी लेकिन बीएनएस में पुरुषों के खिलाफ अपराध और अन्य अपराध को भी जोड़ा गया है.
झूठा एफआईआर होने पर क्या करे
कई बार ऐसा होता है कि आपने कोई गलती नहीं की है लेकिन फिर भी आपके खिलाफ थाने में एफआईआर करा दिया जाता है ऐसे में आपको समझ में नहीं आता है कि आप क्या करें तो चलिए आज हम आपको बताते है कि अगर आपके ऊपर भी कोई फर्जी केस हो तो आपको क्या करना चाहिए तो सबसे पहले आपको पुलिस की मदद करनी चाहिए यानी पुलिस कोई कार्रवाई कर रही है तो उसमें सहयोग करना चाहिए और अपने दिमाग को शांत रखना चाहिए ताकि आप घबराया नहीं और आत्मविश्वास बना रहे, अगर आपकी गलती नहीं है तो आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगा.
तुरंत एक वकील की मदद लेनी चाहिए
वही फर्जी केस होने पर आपको तुरंत एक वकील की मदद लेनी चाहिए और कानून की जानकारी लेनी चाहिए या सलाह लेकर अपने अधिकारों के बारे में जानना चाहिए कि आपको आगे क्या करना जरूरी है.एक वकील की सलाह पर आप सही चीज़ कर सकते हैं और अपने आप को बचा सकते है.
सीआरपीसी धारा 483 के तहत अग्रिम जमानत ले सकते है
यदि आपने कोई गलती नहीं की और आपके ऊपर झूठी एफआईआर करा दी गई है तो आपको गिरफ़्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत के लिए उच्च न्यायालय में सीआरपीसी धारा 483 के तहत अग्रिम जमानत ले सकते है.
मजिस्ट्रेट कोर्ट में झूठे आरोप के खिलाफ शिकायत दर्ज करनी चाहिए
यदि आप थाने जाने से बचना चाहते हैं तो फिर आपके वकील के साथ मजिस्ट्रेट कोर्ट में झूठे आरोप के खिलाफ शिकायत दर्ज करनी चाहिए.आप उच्च न्यायालय में प्राथमिकी कर सकते है कि आपके खिलाफ झूठी एफआईआर की गई है उसे रद्द किया जाए.आप झूठे आरोप लगाने वाले के खिलाफ शिक़ायत कर सकते है, अगर किसी ने आपको परेशान करने के लिए फंसाया है तो आप इसके खिलाफ थाने में एफआईआर करा सकते है.
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