टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : राज्य में सहायक पुलिस कर्मियों का मुद्दा दिन ब दिन गरमाता जा रहा है और इससे भी बढ़कर उन्हें यह चिंता सता रही है की क्या अगले महीने से सहायक पुलिस कर्मी, जिन्होंने राज्य में अन्य पुलिस कर्मियों की तरह की जंगल से लेकर पहाड़ में भी अपना कर्तव्य निभाया है, चुनाव से लेकर बड़े कार्यक्रम तक में अपनी सेवा दी है और यहाँ तक की नकलियों से लेकर चोर- डकैतो तक को पकड़ने में अपनी जान की परवाह तक नहीं की है, उनपर अब बेरोज़गारी का ठप्पा लगने जा रहा है.

इस मुद्दे को लेकर X हैंडल पर झारखंड सहायक पुलिस द्वारा पोस्ट कर लिखा गया है, "माननीय मुख्यमंत्री @HemantSorenJMM महोदय,
सहायक पुलिस मतलब - 100% स्थानीय खतियानी झारखंडी. 
मिला क्या, पहले 10,000 प्रतिमाह और अब 13,000 प्रतिमाह पर पुलिस की नौकरी विगत 08 वर्षों से, कैसे..कैसे...इस मंहगाई में संभव है. राज्य के सहायक पुलिस से सरकार को 100 करोड़ रुपए वार्षिक बचत होती है. 

यदि देखा जाए तो एक सामान्य पुलिसकर्मी को 55,000 रु प्रतिमाह मिलता है तो 55000- 13000 = 42000 ( एक पुलिसकर्मी पर बचत होता है). उसी प्रकार 42000 × 2000 (सहायक पुलिस) × 12 माह = 1,008,000,000 रु, (100.8 करोड़ रुपए वार्षिक) 08 वर्षों में 08× 100 करोड़ = 800 करोड़ रू अभी तक.  
आज राज्य के 24 जिले में से 12 जिला में यातायात व्यवस्था को सुचारू रुप से सहायक पुलिस चला रहे हैं चाहे विधि व्यवस्था डियुटी हो.  
समान काम के लिए समान वेतन देना होगा सर.  
नहीं तो कम से कम सम्मान से जिने भर तक तो वेतन दे दिजीए. 
#सहायक_पुलिस_को_स्थायी_करे
#We_want_justice
#jharkhand_sahyak_police
#वर्दी_मांगे_इंसाफ."

इस पोस्ट में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ, झारखंड CMO, मंत्री इरफान अंसारी, मंत्री दीपिका पांडे सिंह, मंत्री चमरा लिंडा, मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू, काँग्रेस प्रदेश प्रभारी के राजू, काँग्रेस पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर सहित अन्य को टैग भी किया गया है. साथ ही इस पोस्ट के माध्यम से सहायक पुलिस कर्मियों ने पुरी गणना के साथ सरकार को यह प्राप्त हुआ है कि वर्तन में जो वेतनमना है उन्हें मिल रहा है, उसमें उनका गुजारा संभव नहीं है. साथ ही नौकरी को लेकर भी गुहार लगायी गयी है.

बताते चले की इससे पहले भी सहायक पुलिस कर्मियों ने न सिर्फ X पर पोस्ट कर, बल्कि कई अन्य माध्यम् से अपनी बातों को सरकार तक पहुँचाने की कोशिश की है. ऐसे में अब बात साफ है की सहायक पुलिस चाहते हैं की झारखंड सरकार द्वारा उनके हित में कोई भर्ती निकली जाए, या फिर इन जवानों को कहीं समायोजित करने का कोई रास्ता निकाला जाए. वहीं अगर इन सहायक पुलिस कर्मियों के लिए समय रहते समायोजन या किसी दूसरी भर्ती प्रक्रिया के तहत इन्हें रोजगार नहीं मिल तो यह लोग बेरोजगार होने को मजबूर हो जाएंगे.