रांची(RANCHI): सावन महीने की शुरुआत हो चुकी है. भगवान भोलेनाथ की पूजा के लिए ये महीना बेहद शुभ माना गया है. भक्त दिल में मनोकामनाएं लेकर सच्ची श्रद्धा और विश्वास के साथ इस पूरे महीने बाबा भोलेनाथ का पूजन करते हैं. श्रावण मास में सोमवारी पूजा का विशेष महत्व है. ऐसे में सोमवार के दिन शिव मंदिरों में भक्तों की काफी भीड़ देखने को मिलती है. मान्यता है कि जो भक्त सोमवार व्रत कर बाबा की पूजा अर्चना करते हैं उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है. साथ ही उनकी सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूरी होती हैं. इस महीने शिव जी की आराधना करने से व्यक्ति की कुंडली में चंद्र ग्रह से जुड़े सभी दोष दूर हो जाते हैं, अविवाहित लड़कियों को योग्य वर की प्राप्ती होती है और शादीशुदा जोड़े का वैवाहिक जीवन सुखमय होता है.

 

बड़ी संख्या में उमड़ती है भक्तों की भीड़ 

सावन के दिनों में शिव मंदिरों में बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. सभी बड़े छोटे मंदिरों की साज-सज्जा की जाती है. जिसके तैयारी महीने भर पहले से ही शुरू हो जाती है. रांची में सभी प्रख्यात शिव मंदिरो में से एक है पहाड़ी मंदिर. जो कि रांची रेलवे स्टेशन से महज 7 किलोमीटर की दूर पर स्थित है. मंदिर परिसर से पूरे शहर का नज़ारा देखा जा सकता है. शिवरात्रि और सावन के महीने में यहां शिव भक्तों की बड़ी भीड़ लगी रहती है. लेकिन बहुत कम लोगों को पहाड़ी मंदिर के रोमांच भरे इतिहास के बारे में पता होगा. अगर आपने कभी इसके बारे में कहीं पढ़ा या सुना होगा तो निश्चित ही अपने मन में भी पहाड़ी मंदिर के ऐतहास को जानने की जिज्ञासा होगी.

पहाड़ी मंदिर में भगवान के झंडे के साथ राष्ट्रीय झंडा भी फ़रया जाता हैं. जानते हैं क्यों?

रांची में आजादी के बाद पहला तिरंगा झंडा पहाड़ी मंदिर में फहराया गया था. पहली बार रांची के ही एक स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चन्द्र दास ने पहाड़ी मंदिर में तिरंगा झंडा फहराया था. यहां राष्ट्रीय झंडा शहीद हुए इंडियन फ्रीडम फाइटर्स की याद और सम्मान में फहराया जाता है. तब से हर साल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर यहां तिरंगा फहराया जाता है.

पहाड़ी मंदिर में फ्रीडम फाइटर्स को दी जाती थी फांसी

राजधानी रांची के पहाड़ी मंदिर की कहानी बेहद ही रोचक है. पहाड़ी मंदिर का पुराना नाम टिरीबुरू था, जो आगे चलकर ब्रिटिश के कार्यकाल के दौरान समय में 'फांसी टुंगरी' में बदल दिया गया था. पहाड़ पर स्थित भगवान शिव का यह मंदिर देश की आजादी के पहले अंग्रेजों के कब्जें में था और अंग्रेज के राज में यहां फ्रीडम फाइटर्स को फांसी दी जाती थी. लेकिन अगर अब आप पहाड़ी मंदिर जायें और उस जगह को ढूंढे जहां फ्रीडम फाइटर को फ़ांसी दी जाती थी तो शायद आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा. अब वहां की मररमत कुछ इस तरह कर दी गयी है कि मंदिर परिसर की चारो ओर आपको बस शांति और भक्ति का माहौल ही मिलेगा.