दुमका (DUMKA): सावन का पवित्र महीना चल रहा है. यह महीना शिव उपासना के लिए बेहद खास माना जाता है. प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में देवघर और दुमका के बासुकीनाथ में एक महीने तक चलने वाला राजकीय श्रावणी मेला का आयोजन होता है. बाबा बैद्यनाथ और बाबा बासुकीनाथ पर जलार्पण के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो इसको लेकर राज्य सरकार और जिला प्रशासन काफी पहले से ही तैयारी शुरू कर देती है.
बाबा के दरबार में ऐसे पहुंचते हैं डाक कांवरिया
बाबा बैद्यनाथ और बाबा बासुकीनाथ पर जलार्पण के लिए श्रद्धालु कई तरीके से आते हैं. कई कांवर लेकर पैदल आते हैं, तो कई बस और अपने वाहन से. इस सबके बीच कुछ शिव भक्त ऐसे भी है, जो गंगा से जल भर कर रास्ते में बिना रुके मंदिर पहुंच कर शिवलिंग पर जलार्पण करते हैं. डाक कांवर यात्र बेहद कठिन माना जाता है. इसे हठयोग भी कह सकते हैं. डाक कांवर उठाने वाले कांवरिया या तो सुलतानगंज से गंगा जल भरते हैं, या फिर भागलपुर के बरारी घाट से. दोनों के दो रास्ते हैं. बरारी से जल उठाने वाले शिव भक्त सीधे दुमका के बासुकीनाथ पहुंच कर फौजदारी बाबा पर जलार्पण करते हैं. जबकि सुलतानगंज से जल उठाने वाले डाक बम देवघर के बाबा बैद्यनाथ पर जलार्पण करते हैं. उसके बाद अधिकांश डाक कांवरिया बस से बासुकीनाथ पहुंच कर जलार्पण करते है.
डाक बम के लिए व्यवस्था
दोनों तरह के डाक बम के लिए दुमका जिला प्रसासन की तरफ से दो तरह की व्यवस्था की जाती है. बरारी से जल भरकर बासुकीनाथ आने वाले डाक बम को झारखंड की सीमा में प्रवेश करते ही हंसडीहा में एक टोकन मिल जाता है. जिसके आधार पर उन्हें जलार्पण के लिए कतारबद्ध नहीं होना पड़ता है. वहीं सुलतानगंज से जल भर कर देवघर में जलार्पण करने वाले डाक बम जब बासुकीनाथ पहुंचते हैं, तो उनके लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं रहती. सामान्य श्रद्धालु की भांति बासुकीनाथ में जलार्पण के लिए उन्हें घंटों कतार में खड़ा रहना पड़ता है. सुलतानगंज से जल भर कर बगैर कहीं विश्राम किए डाक बम देवघर के बाबा बैद्यनाथ पर आसानी से जलार्पण करते है, लेकिन उसके बाद जब वे बासुकीनाथ पहुंचते हैं और घंटो जलार्पण के लिए कतारबद्ध होना पड़ता है तो उनकी परेशानी को समझा जा सकता है.
सुखद अनुभूति
भागलपुर के चंपानगर के रहने वाले एक डाक कावरिया दीपक मिश्रा ने बताया कि वह वर्ष 2007 से सावन की प्रत्येक सोमवार को डाक कांवर लेकर बाबा बैद्यनाथ पर जलार्पण करने के बाद बासुकीनाथ पर जलार्पण करते आ रहे है. कष्ट की सुखद अनुभूति के बीच बासुकीनाथ पहुचने पर क्या परेशानी होती है सुनिए उन्ही की जुबानी.
रिपोर्ट: पंचम झा, दुमका
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