रांची(RANCHI)- आमने सामने के चुनावी अखाड़े में झामुमो को पटकनी देने में नाकामयाब रही भाजपा अब एक नये सियासी प्रयोग की तैयारियों में जुटा है. हेमंत सोरेन के खिलाफ अपनी सारे सियासी पैतरों को आजमा चुकी भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले झारखंडी युवाओं की आवाज बने जयराम महतो को आगे कर अपनी चुनावी डगर को एक सीमा तक आसान बनाने की कवायद में जुटी है. कमोबेश ये सारे शब्द झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य के हैं. सुप्रियो भट्टाचार्य जयराम महतो के द्वारा सियासी पारी की घोषणा किये जाने पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थें.
जयराम महतो का राजनीतिक प्रार्दुभाव हेमंत सरकार के निक्कमापन का परिणाम
याद रहे कि सरना धर्म कोड, जातीय जनगणना, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार, 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति के नारों के सहारे झारखंडी युवाओं के दिलों में छा जाने वाले जयराम महतो 2024 के लोकसभा चुनाव में दो-दो हाथ करने का एलान कर दिया है. जिसके बाद से ही जयराम महतो के पक्ष विपक्ष में बयानबाजी तेज हो गयी है. सुप्रियो भट्टाचार्य के विपरीत भाजपा इसे हेमंत सरकार की वादाखिलाफी का दुष्परिणाम बता रही है. उसका दावा है कि हेमंत सरकार जिन मुद्दे के सहारे सत्ता में आयी, एक भी काम नहीं किया गया, सारे मुद्दे ज्यों के त्यों धरे पड़े हैं, जिसके कारण युवाओं में असंतोष का प्रादुर्भाव हो रहा है. उनके अंदर गहरी बेचैनी और निराशा है. जयराम का सियासी पारी उसी असंतोष की अभिव्यक्ति मात्र है.
जयराम के निशाने पर सीएम हेमंत नहीं
हालांकि जयराम महतो के हालिया बयान को गौर करें तो एक बात साफ है कि जयराम की नाराजगी हेमंत सोरेन से ज्यादा उनके प्रमुख सिपहसालारों के प्रति है. उनके निशाने पर झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य, पंकज मिश्रा सहित वह तमाम नेता और कारोबारी हैं, जिनकी जड़े कहीं ना कहीं गैर झारखंडी है, याद रहे कि झारखंड की राजनीति में इस तरह के नेताओं की भरमार है, खास कर धनबाद, गिरिडिह, बोकारो, रांची और जमशेदपुर जैसे शहरी क्षेत्रों में इन नेताओं की अच्छी खासी पकड़ है, रही बात कारोबारियों की तो चाहे सत्ता किसी भी दल की रही हो, सत्ता के गलियारे में प्रेम प्रकाश, अमित अग्रवाल, विष्णु अग्रवाल जैसे कारोबारियों की ही चलती है, कई मौके पर जयराम इस पर अपनी चिंता जता चुके हैं. हालांकि संवैधानिक प्रावधानों की दुहाई देते हुए जयराम यह स्वीकार भी करते हैं कि भारत में किसी भी नागरिक को कहीं भी अपना कोराबार करने की छुट्ट है, लेकिन इसके साथ ही वह झारखंडी की राजनीति, समाज और कारोबार में बाहरी हस्तक्षेप पर चिंता प्रकट करते रहते हैं.
खुद भाजपा पर भी बाहरी नेताओं को प्रश्रय देने का आरोप
यहां यह भी याद रहे कि खुद भाजपा पर भी बाहरी नेताओं को प्रश्रय देने का आरोप लगता रहा है. खुद सीएम हेमंत ने कई मौकों पर उन भाजपा नेताओं का नाम को सार्वजिनक किया है , जिनकी जड़े बिहार और यूपी में हैं. हालांकि राज्य का एक प्रमुख राजनीतिक दल होने के कारण उनके बयान में वह तल्खी नहीं होती, लेकिन जयराम इसकी अभिव्यक्ति बेहद ही तल्ख भाषा में करते हैं.
जयराम के निशाने पर वह तमाम बाहरी नेता
साफ कि झामुमो भाजपा के परे जयराम के निशाने पर वह तमाम बाहरी नेता हैं, और जयराम की यह राजनीति झामुमो से ज्यादा भाजपा को परेशान करने वाली है. लेकिन आदिवासी-मूलवासी मुद्दे पर हाशिये पर खड़ी नजर आ रही है भाजपा को तात्कालिक रुप से जयराम के रुप में एक मसीहा नजर आ रहा है, उसकी रणनीति है कि जयराम जितनी तल्ख भाषा और तेवर से सरना धर्म कोड, जातीय जनगणना, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार, 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति पर झामुमो को लताड़ लगायेगा, झामुमो के परंपरागत मतों में उतना ही झऱण होगा, जिसका लाफ सिर्फ और सिर्फ भाजपा को होगा, क्योंकि भाजपा के लिए तो इन मुद्दों को महत्व ही नहीं है. उसे तो सिर्फ अपने हिन्दूत्व के एजेंडे को विस्तार देना है. यही उसका परंपरागत जनाधार है, जयराम महतो की भाषा जितनी तल्ख होगी उतनी ही तेजी से उसका जनाधार एक बार फिर से उसकी ओर वापस लौटेगा.
पहले भी यह प्रयोग दुहरा चुकी है भाजपा
ध्यान रहे कि इसके पहले भी 2019 में भाजपा यह प्रयोग दुहरा चुकी है, जब उसने बाबूलाल मरांडी को तमाम संसाधन उपलब्ध करवा कर अपने खिलाफ उतारा था, ताकि झामुमो के आदिवासी मूलवासी वोट में बिखराव किया जा सके, हालांकि बाबूलाल उस सीमा तक कामयाब नहीं हो सके और भाजपा यह प्रयोग असफल हो गया था, अब भाजपा एक बार फिर से जयराम महतो पर वह दांव लगाना चाहती है.
Recent Comments