रांची(RANCHI): झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ विशेष अभियान तेज है. अभियान में सबसे अधिक चर्चा एक करोड़ की इनामी मिसिर बेसरा की है. कोल्हान के जंगल में इसका ठिकाना है और लंबे समय से पुलिस की तलाश में लगी हुई है. लेकिन हर बार पुलिस को चकमा देकर निकल जाता है. जंगल इसके घर जैसा है और जंगल के हर एरिया को बेहद करीब से जानता है. यही वजह है की सुरक्षा बल के जवान हमेशा इससे चकमा खा जाते हैं. 2 साल से चल रहे अभियान के बावजूद अब तक जवान मिसिर बेसरा तक नहीं पहुंच सके हैं. ऐसे में अब सवाल है कि आखिर मिसिर बेसरा है कौन जिसके पीछे अब 15000 जवानों को लगा दिया गया. यह कितना घातक है और यह कौन नक्सली है जो आज तक पुलिस से पकड़ाया ही नहीं.
तो चलिए आपको सबसे पहले यह बताते हैं कि मिसिर बेसरा कौन है. हाल के दिनों में माओवादी पोलित ब्योरों सदस्य एक करोड़ के इनामी मिसिर बेसरा की चर्चा जोरों से झारखंड के हर लोगों के बीच है. हम आपको बताते है कि कौन है यह मिसिर बेसरा और कैसे जवानों के खून का प्यासा हो गया. कहा जाता है कि कभी झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को आदर्श मानता था.लेकिन अब बेसरा जवानों के खून का प्यासा बन गया.
मिसिर बेसरा झारखंड की राजधानी रांची से करीब 150 किलोमीटर दूर गिरिडीह जिला के सुदुर्वर्ती पीरटांड़ प्रखण्ड के मदनाडीह गांव का रहने वाला है.करीब तीस साल पहले वह गांव में सक्रिय था गरीब असहाय लोगों के लिए हक की आवाज उठाता था. बताया जाता है कि वह अपना आदर्श झामुमो सुप्रीमो दिशोम गुरु को मानता था. गुरु जी जमींदारों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे और जंगल में अपना ठिकाना बना लिया था तब मिसिर बेसरा का झुकाव गुरुजी की ओर हुआ. लेकिन बाद में उसकी मुलाकात माओवादियों से हुई और फिर वह हिंसा के रास्ते पर चल पड़ा.
माओवादी में उसका कद और बढ़ा और ERB का सचिव भी बना
बाद में उसकी सक्रियता माओवाद की ओर बढ़ती गई. शुरू में एक कैडर के रूप में शामिल हुआ लेकिन बाद में वह कुख्यात बनता चला गया और जवानों के खून से अपने कद को ऊपर उठाता चला गया. बाद में वह देश के टॉप 5 माओवादी की लिस्ट में शामिल हो गया. इसके आतंक का अंदाज इस बात से लगा सकते है कि सरकार की ओर से इसपर एक करोड़ का इनाम रख दिया गया. फिलहाल माओवादी पोलित ब्योरों का इसे सदस्य बना दिया गया. प्रशांत बोस के गिरफ़्तारी के बाद माओवादी में उसका कद और बढ़ा और ERB का सचिव भी बना दिया गया. जब कई जगहों पर पुलिसिया दबिश बढ़ी और माओवादियों का सफाया हो गया तो मिसिर बेसरा ने अब कोल्हान के जंगल को अपना ठिकाना बना लिया है.
कैसी होती है सुरक्षा
इतने दिनों में पुलिस के हत्थे क्यों नहीं चढ़ा मिसिर बेसरा.इसके बारे में बताया जाता है कि इसकी सुरक्षा कड़ी होती है.तीन सुरक्षा घेरे में पोलित ब्योरों सदस्य रहता है. पहला सुरक्षा घेरा मिसिर बेसरा के साथ साए की तरह साथ रहता है. यह काफी तेजी से घातक हमला कर देता है. इसके अलावा जंगल के बारे में पूरी जानकारी इस दस्ते के पास रहती है. दूसरा दस्ता मिसिर बेसरा से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर तैनात रहता है. यह दस्ता मिसिर बेसरा से एक किलोमीटर की दूरी के इलाके को घेर कर रहता है. तीसरा दस्ता जंगल के पास मौजूद गांव में भ्रमणशील रहते है. सभी आस पास के गतिविधि पर नज़र रखते है. यही कारण है कि पुलिस के पहुँच से मिसिर बेसरा दूर है.
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