धनबाद(DHANBAD): झारखंड में नए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की चर्चा अब धीरे-धीरे कमने  लगी है.  स्थानीय नेतृत्व और संगठन के बीच तालमेल की कमी की वजह से यह  प्रक्रिया लंबी खींचती जा रही है.  बताया जाता है कि कई प्रदेशों में प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा हो चुकी है, लेकिन झारखंड में अब तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है.  सूत्रों का कहना है कि झारखंड में प्रदेश अध्यक्ष के नाम को लेकर मंथन जारी है, लेकिन विभिन्न दावेदारों की वजह से  स्थिति जटिल बनी हुई है.  चर्चा चलती आ रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास समेत आधा दर्जन लोग प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल है.  पहले चर्चा तेज थी कि प्रदेश अध्यक्ष की रेस में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, सांसद मनीष जायसवाल, आदित्य साहू, प्रदीप वर्मा, अमर बाउरी , रविंद्र राय में से कोई प्रदेश अध्यक्ष हो सकता है. 

 नेताओं ने अपने स्तर  से लॉबिंग भी शुरू कर दिए थे 

 नेताओं ने अपने स्तर से लॉबिंग  भी शुरू कर दी थी.  लेकिन अब यह मामला ठंडा होता दिख रहा है.  इसका असर हुआ है कि अब इसका प्रभाव जिला स्तर पर भी देखने को मिल रहा है.  जिला स्तर के नेता अधिकृत रूप से तो कुछ नहीं कह रहे हैं, लेकिन उनके मन में लालसा और बेचैनी है.  लालसा इस बात की है कि जो अभी जिला अध्यक्ष है, कमेटी में जिनकी पकड़  है, वह दोबारा रिपीट करेंगे अथवा नहीं.  कई कार्यकर्ता आस लगाए हैं कि प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने के बाद जिला स्तर पर भी अध्यक्षों में बदलाव होगा और उन्हें मौका मिल सकता है.  धनबाद की ही अगर बात कर ली जाए तो महानगर और ग्रामीण अध्यक्ष के लिए दावेदारों की सूची लंबी है.  यहां भी महानगर और ग्रामीण जिला अध्यक्ष का चयन बहुत आसान नहीं होगा.  यह  अलग बात है कि धनबाद में भाजपा की राजनीति बदल गई है.  

धनबाद में बदल गया है भाजपा का पावर सेंटर 

पहले धनबाद जिले में भाजपा के केंद्र में पूर्व  सांसद पशुपतिनाथ सिंह हुआ करते थे.  अब यह केंद्र बाघमारा शिफ्ट हो गया है.  बाघमारा के विधायक रहे ढुल्लू महतो  अब धनबाद के सांसद बन गए है.  इस वजह से धनबाद के सांसद के पास भी पद पाने वालों की भीड़ अधिक है.  यह  अलग बात है कि धनबाद महानगर के अध्यक्ष को हटाने के लिए विधानसभा चुनाव के पहले कई तरह का बखेड़ा हुआ.  धरना- प्रदर्शन हुआ, लेकिन फिर स्थिति यथावत बनी रही.  कार्यकर्ता नाराज हैं, यह  अलग बात है कि डर से कुछ बोल नहीं रहे है.  भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को जब नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया, तब से ही उम्मीद की जा रही है कि नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है.  यह भी कहा जाता है कि चुकि  नेता प्रतिपक्ष का पद भाजपा ने आदिवासी नेता को दिया है, तो प्रदेश अध्यक्ष का पद किसी गैर आदिवासी को मिल सकता है.  यह  अलग बात है कि 2019 के बाद 2024 के चुनाव में भी झारखंड में भाजपा की करारी हार हुई है. 
 
फिलहाल झारखंड से सटे बिहार में चुनाव भी है
 
फिलहाल झारखंड से सटे बिहार में चुनाव भी है. झारखंड के नेताओं को बिहार के चुनाव में भेजने की तैयारी भी है.  कार्यकर्ताओं का कहना है कि फिलहाल नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा नहीं होने से, वह असमंजस में है.  मामला अगर क्लियर हो जाता तो उन्हें भी पता चल जाता कि उन्हें आगे किसके साथ समन्वय बैठा कर  काम करना है.  सूत्र यह भी बताते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व झारखंड प्रदेश अध्यक्ष के नए नाम के चयन   का कई बार प्रयास किया, कई दौर की बैठक भी हुई, लेकिन नाम पर सहमति नहीं बन पाई.  पहले कहा गया था कि विधायक दल का नेता चुनने के साथ ही  प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हो जाएगा.   प्रदेश अध्यक्ष के चयन में देरी से पार्टी की सेहत पर क्या असर पड़ेगा या तो आने वाला वक्त ही बताएगा??

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो