पटना(PATNA)- शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव का पदभार संभालते ही के. के पाठक ने साफ कर दिया था कि उनका इरादा बिहार की शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव का है और इसी आमूलचूल बदलाव की पहली कड़ी के रुप में शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों से दूर रखने का फरमान सुनाया गया था. इस आदेश को सामने आती ही शिक्षकों में खुशी की लहर दौड़ गयी थी, के.के पाठक के कई और दूसरे फरमानों से हलकान शिक्षक कम से कम एक मुद्दे पर उनके साथ खड़े थें कि अब गुरुजी बकरी, गाय की गिनती नहीं करेंगे. गुरुजी को गांव का शौचालय गिनने को नहीं कहा जायेगा, कौन-कौन शौचालय जा रहा है और कौन कौन खेत-क्यारी में अपने को हल्का कर रहा है, इसकी सूची भेजने का निर्देश नहीं दिया जायेगा. बाल विवाह कितने हुए और किसकी किसकी नसबंदी हुई इसका रिपोर्ट तैयार करने का फरमान सामने नहीं आयेगा.
अपने ही पुराने फरमान से पलट गयें के.के पाठक
लेकिन पटना हाईकोर्ट से जातीय जनगणना पर लगी रोक क्या हटी, के. के पाठक अपने ही पुराने फरमान से पलट गयें और गुरुजी को एक बार फिर से घर घर घुम कर अपने चेलों के पिताजी और माता जी से जाति पूछने का फरमान सुना दिया. इस नये फरमान से गुरुजी बेहद आक्रोशित है, के.के पाठक और दूसरे अधिकारियों से शिक्षण कार्य से दूर रखने की गुहार लगायी जा रही है, बताया जा रहा है कि जाति गिनना उनके पेशे की मर्यादा के अनुकूल नहीं है. जिन शिष्यों को उन्होंने जाति विहीन समाज बनाने का घूंट पिलाया है, जाति से उपर उठ कर आधुनिक भारत के निर्माण का कर्तव्य ज्ञान दिया है, अब उसके ही दरवाजे पर खड़ा होकर उसकी जाति पूछना अपमानजनक है. लेकिन सरकार अड़ी है कि गुरुजी का वेतन सरकार की थैली से जाता है, कर्तव्य ज्ञान से उनके बच्चों का पेट नहीं पाला जा सकता, इसलिए कर्तव्य ज्ञान की दुविधा से बाहर निकल तुंरत जाति जाति के इस खेल में लग जाईये.
Recent Comments