रांची(RANCHI): देश में जातिगत जनगणना होने वाला है. सभी जाति के लोग अपने अपने कास्ट को बताएंगे. उसके बाद एक डाटा सामने आएगा कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं. ऐसे में जहां एक और खुशी है तो दूसरी ओर जनगणना को लेकर संशय बना हुआ है. झारखंड में खासकर इसका बड़ा असर देखने को मिलेगा. झारखंड में कई जाति ऐसी है जो अलग-अलग पूजा करती है. इनका तौर तरीका हिंदू धर्म से अलग होता है और यह सरना धर्म मानते हैं. लेकिन सरना धर्म संविधान में नहीं है. ऐसे में अब सरना धर्म कोड बनाने की मांग को लेकर आवाज उठने लगी है.
तो चलिए साफ-साफ बताते हैं कि पूरा मामला क्या है. भारत में हिंदू मुस्लिम क्रिश्चियन पारसी जैसे धर्म को मान्यता है. लेकिन आदिवासी समुदाय के लोग अलग-अलग धर्म को मानते हैं. कई लोग हिंदू धर्म मानते हैं तो कई क्रिश्चियनिटी अपना चुके हैं. लेकिन एक बड़ा तबका ऐसा है जो सरना को मानता है. ऐसे में जो लोग हिंदू और क्रिश्चियन धर्म को मानते हैं वह जातिगत जनगणना में हिंदू और क्रिश्चियन कास्ट में बताएंगे. लेकिन जो सरना धर्म को मानते हैं. उनके सामने कोई कॉलम नहीं होगा.
यही वजह है कि अब झारखंड में सरना धर्म को मानने वाले लोग केंद्र सरकार से सवाल पूछना शुरू कर चुके हैं कि जब जाति का जनगणना होगा तो वह अपनी जाति को कहां दर्ज कराएंगे. क्योंकि वह सरना मां की पूजा करते हैं. अब तक सरना धर्म कोड का मामला राज्यपाल और केंद्र सरकार तक लटका हुआ है. यही वजह है कि झारखंड के सत्ता में काबिज झारखंड मुक्ति मोर्चा भी अब इसे लेकर मुखर होने वाली है और पूछेगी कि सरना धर्म कोड कब पास होगा. ऐसा नहीं होता है तो वह आगे चलकर आंदोलन करने को बाध्य होगा और जातिगत जनगणना का खुलकर विरोध करेंगे.
अगर देखे तो सरना धर्म कोड को मानने वाले लोग जो आदिवासी हैं. वह सबसे ज्यादा झारखंड और फिर छत्तीसगढ़ के साथ-साथ बंगाल में रहते हैं. जो जंगल पेड़ पौधा पहाड़ तारा सूरज की पूजा करते हैं. इनका रहन-सहन और परंपरा हिंदू धर्म से एकदम अलग होता है. यानी जो आदिवासी इस धर्म को मानते हैं कहा जाता है कि सबसे पुराने यही लोग हैं और जल जंगल जमीन की रक्षा की जिम्मेदारी भगवान ने इन्हें देकर रखी है तभी तो यह लोग उसकी पूजा करते हैं.
एक मामले में सुनवाई करते हुए 2005 में सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि आदिवासी हिंदू नहीं है. यानी जिस तरह से आदिवासी सरना धर्म कोड की मांग कर रहे हैं तो यह उनका अधिकार है. लेकिन विडंबना ऐसी है कि जो सबसे पहले धरती पर आए उन्हें अब तक उनके धर्म का कोड भी नहीं मिल सका है. यानी वह जिस धर्म को मान रहे हैं उसका कहीं जिक्र ही नहीं है. मजबूरी में कोई हिंदू धर्म में तो कोई क्रिश्चियन में अपना कॉलम पूरा करता है. लेकिन अब बात यही नहीं रुकने वाली है. इसे लेकर आंदोलन की शुरुआत झारखंड से हो सकती है. क्योंकि झारखंड में सरना धर्म को मानने वाले लोग काफी अधिक है. जिसमें आदिवासियों को कई संगठन का साथ भी मिलेगा.
Recent Comments