रांची(RANCHI): जब से बाबूलाल मंराडी ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रुप में अपना कार्यभार संभाला है, उनकी भाषा और शैली बदली नजर आने लगी है, अपने व्यक्तिगत जीवन में बेहद शांत और मृदुभाषी नजर आने वाले बाबूलाल के लिए हिन्दू मुसलान के पिच पर राजनीति का बहुत ज्यादा अनुभव नहीं है, आरएसएस से अपने जुड़ाव के बावजूद, उनकी राजनीति शिक्षा दीक्षा अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी के दौर में हुई है और राम मंदिर आन्दोलन के दौरान की तमाम उग्रताओं के बावजूद उस दौर में हिन्दू मुसलान की इस प्रकार की राजनीति पैंतरेवारी की गुंजाइश बेहद कम थी, उनके राजनीतिक गुरु लालकृष्ण आडवाणी तो जिन्ना की मजार पर चादरपोशी भी कर चुके हैं. अपनी छवि के विपरीत आडवाणी की एक उदार छवि भी रही है, उनकी शिक्षा दीक्षा भी किसी संघ संचालित स्कूल में नहीं होकर, कैथोलिक कॉन्वेंट स्कूल में हुई है. यही कारण है कि वाजपेयी की हिंदी के सामने वह कई बार अपने को कमतर आंकते थें.
नयी पारी में चारित्रिक बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं बाबूलाल
लेकिन लगता है कि इस नयी पारी में बाबूलाल चारित्रिक बदलाव प्रक्रिया से गुजर रहे हैं. नयी राजनीतिक जरुरतों के हिसाब से अपने व्यक्तित्व में बदलाव लाने की कोशिश कर रहें हैं. वह उस पिच पर खेलने की कोशिश कर रहे हैं, जिसका ना तो उन्हे अनुभव है और ना ही उनका व्यक्तित्व इसकी इजाजत देता है.
तिलक विवाद और बाबूलाल का खेल
अपने ताजा ट्वीट में बाबूलाल कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी के साथ हिन्दू मुसलमान का बहुप्रचलित खेल खेलते नजर आ रहे हैं, उनकी कोशिश इरफान अंसारी की छवि को ध्वस्त कर हिन्दू विरोधी साबित करने की है. महज एक फोटे के आधार पर तिलक पोंछने का आरोप लगाते हुए बाबूलाल ने लिखा कि “कुछ भोले हिन्दुओं ने कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी को मंदिर में बुलाया और तिलक लगा दिया...एक मिनट भी नहीं लगा जब विधायकजी ने सबके सामने ही तिलक पोंछ डाला...और बाद में हिंदुओं से कहा- ''आपलोग वोट नहीं भी देंगे, तब भी हम जीत जाएंगे'' चिंता मत कीजिये इरफ़ान जी, झारखंड की जनता इस बार आपलोगों के इस घटिया मानसिकता का जवाब ज़रूर देगी.
सिकुड़ता जा रहा है भाजपा का सामाजिक आधार
यही है बाबूलाल का नया अवतार, यह बाबूलाल का सहज स्वाभाव नहीं बल्कि राजनीतिक मजबूरी है, उन्हें पता है कि जिस आशा भरी नजरों के साथ भाजपा ने उन्हे कांटों का ताज सौंपा है, यदि 2024 में उसका परिणाम सामने नहीं आया तो यह ताजपोशी उनके राजनीतिक जीवन पर भारी पड़ने वाला है. तब केन्द्रीय भाजपा ही नहीं, प्रदेश भाजपा से भी उनके खिलाफ बगावत के बिगुल फूंके जायेंगे, यही भय बाबूलाल को खाये जा रही है, और राजनीति विवशता में वह अपने स्वाभाव के विपरीत जाकर हिन्दू मुसलमान का यह खेल खेलते नजर आ रहे हैं, उनकी कोशिश 2024 के पहले हिन्दू मुसलमान के इस खेल को इतना धारदार बनाने की है, जिस पर सवार होकर भाजपा चुनावी बैतरणी को पार कर सकें. लेकिन वह भूल गये कि सामने इरफान है, यह वही इरफान है, जो डंके की चोट पर अपने को सबसे बड़ा हनुमान कहता है, यह वही हनुमान है, जिनके गदे की चोट भाजपा को कर्नाटक में सहना पड़ा था, तब ना तो हनुमान आरती काम आयी थी, और ना ही हिजाब विवाद. हालांकि यह बाबूलाल मंराडी को भी पता है कि सिर्फ सामाजिक बंटवारे के आधार पर चुनाव की बैतरणी पार नहीं की जाती, उसके लिए एक सामाजिक आधार खड़ा करना पड़ता है, और फिलहाल झारखंड भाजपा के पास वह सामाजिक आधार गायब है और लगे हाथ सरना धर्म कोड, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार, खतियान आधारित नियोजन नीति का विरोध कर भाजपा अपने सामाजिक आधार को और भी सिकुड़न प्रदान करने में लगी हुई है.
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