टीएनपी डेस्क(TNP DESK): मानव शरीर कोशकाओं का जाल है. इसमें लाल रक्त कोशिकाएं भी होती हैं, जिसके चलते हमारे शरीर में खून बनता है. इन लाल रक्त कोशिकाओं का या कहे तो खून का मुख्य काम शरीर के विभिन्न अंगों तक आक्सिजन की सप्लाई करना है. एक सामान्य इंसान की बात करें तो शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की उम्र करीब 120 दिनों की होती है. मगर, जब यही लाल रक्त कोशिकाओं की उम्र घटने लगती है तो मनुष्य कमजोरी और थकावट महसूस करने लगता है. पेट में सूजन होने लगती है. त्वचा का रंग पीला होने लगता है. अगर किसी को ये लक्षण हैं तो हो सकता है वो एक गंभीर बीमारी के शिकार हों. इस गंभीर बीमारी का नाम है- थैलेसीमिया.
क्या है थैलेसीमिया?
थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रोग है. यह बच्चों को उनके माता-पिता से डीएनए में मिल जाता है. इस रोग की पहचान बच्चे में 3 महीने बाद ही हो पाती है. आमतौर पर इस बीमारी के कारण बच्चों के शरीर में खून की कमी होने लगती है. और अगर सही समय पर इलाज ना किया जाए तो बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है. शुरुआती में खून में हीमोग्लोबिन की कमी होने के कारण बच्चे एनीमिया के भी शिकार हो जाते हैं.
आइए जानते हैं आखिर क्या है इसके लक्षण और बचाव के तरीके
थैलेसीमिया की बात करें तो यह बीमारी दो तरह का होता है. माइनर थैलेसीमिया या मेजर थैलेसीमिया. जब किसी महिला या पुरुष दोनों में से किसी एक के शरीर में मौजूद क्रोमोजोम खराब हो जाता है तो बच्चा माइनर थैलेसीमिया का शिकार हो जाता है. मगर, वहीं अगर महिला और पुरुष दोनों के क्रोमोजोम खराब हो जाते हैं तो यह मेजर थैलेसीमिया की स्थिति बनाता है. जिसकी वजह से बच्चे के जन्म लेने के 6 महीने बाद उसके शरीर में खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ने लगती है.
थैलेसीमिया के लक्षण
थैलिसिमिया की बात करें तो यह बीमारी एक ब्लड डिसऑर्डर है. यह हीमोग्लोबिन और रेड ब्लड सेल्स के उत्पादन में कमी के कारण के होता है. इस बीमारी में रोगी के शरीर में रेड ब्लड सेल्स कम होने की वजह से वो एनीमिया का शिकार बन जाता है. जिसकी वजह से उसे हर समय कमजोरी,थकावट महसूस करना, पेट में सूजन, डार्क यूरिन, त्वचा का रंग पीला पड़ सकता है.
थैलेसीमिया से बचाव के तरीके
थैलेसीमिया से बचने के लिए पहले लोगों को खुद ध्यान देना चाहिए. चूंकि थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रोग है, इसलिए इस गंभीर रोग से होने वाले बच्चे को बचाने के लिए शादी से पहले ही लड़के और लड़की की खून की जांच अनिवार्य कर देनी चाहिए. अगर बिना खून की जांच कराए ही शादी कर ली है तो गर्भावस्था के 8 से 11 हफ्ते के भीतर ही अपने डीएनए की जांच करवा लेनी चाहिए. इससे पहले से ही सावधानी बरती जा सकती है. माइनर थैलेसीमिया से जो पीड़ित होते हैं वे आमतौर पर एक सामान्य व्यक्ति की तरह ही अपना जीवन जीते हैं. मगर, मेजर थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति को बार-बार खून चढ़वाना पड़ाता है. ऐसे व्यक्ति का जीवन आमतौर पर कम होता है.
थैलेसीमिया का इलाज
थैलेसीमिया का इलाज इसकी गंभीरता पर निर्भर करता है. कई बार इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की हालत इतनी खराब होती है कि उसे महीने में 2 से 3 बार खून चढ़ाना पड़ जाता है. मगर, इसके सफलतापूर्वक इलाज का एक पूर्व तरीका है. वह है बोन मैरो प्रत्यारोपण. बोन मैरो प्रत्यारोपण से इस रोग का पूर्ण इलाज संभव है लेकिन बोन मैरो का मिलान एक बहुत ही मुश्किल प्रक्रिया है. इसके अलावा रक्ताधान, दवाएं और सप्लीमेंट्स, पित्ताशय की थैली या गलब्लैडर को हटाने के लिए सर्जरी करके भी इस गंभीर रोग का उपचार किया जा सकता है.
अगर किसी को भी भविष्य में अपने बच्चों को थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से बचाना है तो शादी करने से पहले अपने पार्टनर का मेडिकल टेस्ट जरूर करा लें, क्योंकि यही एक तरीका है जिसके जरिए आने वाली पीढ़ी को इस रोग से बचाया जा सकता है.
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