धनबाद(DHANBAD) | धनबाद के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल SNMMCH में उन्हीं गर्भवती महिलाओं को प्राथमिकता के आधार पर बेड मिलता है, जिनका प्रसव होने में 24 घंटे का समय शेष होता है. बाकी लोगों को बेड मिलता ही नहीं है. और मरीज बढ़ने पर कोरिडोर में अस्थाई बेड लगाकर मरीजों को भर्ती कराया जाता है. इस अस्पताल के पास 60 बेड का लेबर रूम था, जिसे बढ़ाकर 130 किया गया लेकिन अभी भी मरीजों की संख्या इतनी अधिक है कि सभी को बेड नहीं मिलता है.
मरीज और उनके परिजनों को भुगतना पड़ता है खामियाजा
इसके अलावा और अव्यवस्थायें भी है, जिनका खामियाजा मरीज या उसके परिजन भुगतते है. अभी वायरल फीवर का सीजन चल रहा है, ढाई हजार से 3000 लोग अस्पताल पहुंचते है. इलाज कराने के लिए उन्हें 1 -2 घंटा लाइन में लगना पड़ता है, तब उन्हें पुर्जी मिलती है. फिर वह इलाज कराने जाते है. यह हाल एक दिन का नहीं बल्कि लगभग 365 दिनों का है. यह बात अलग है कि सरकारी अस्पताल की अव्यवस्था जग जाहिर है ,लोगों को सही वक्त पर इलाज नहीं मिलता है. धनबाद का SNMMCH तो किसी न किसी वजह से हमेशा चर्चा में ही रहता है. आज पहुंचे रोगी के परिजनों ने यह आरोप लगाया कि बहुत समय लगता है और सही जानकारी भी नहीं दी जाती है.
क्या कहते हैं अस्पताल के अधीक्षक
इस संबंध में अस्पताल के अधीक्षक एक के वर्णवाल ने कहा कि चुकी धनबाद जिले में पीएचसी और सदर अस्पताल की व्यवस्था सही नहीं है और धनबाद के लोगों का SNMMCH पर भरोसा अधिक है, इसलिए भी अधिक भीड़ होती है, लेकिन जितने लोग यहां आते हैं, उसके हिसाब से मानव बल नहीं है. गायनो विभाग का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि 60 से बढ़ाकर 130 बेड का लेबर वार्ड तो उन लोगों ने कर दिया, लेकिन मैन पावर कहां से लाये. हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया कि अस्पताल में क्षमता से अधिक भीड़ होती है, लोगों को परेशानी होती है. जब वह गर्भवती महिलाओं को,अशक्त लोगों को लाइन में लगा हुआ देखते हैं तो उन्हें भी तकलीफ होती है लेकिन जितनी व्यवस्थाएं हैं, उसी में काम करना और कराना होता है. वह चाहते हैं कि एक टोकन सिस्टम लागू हो और इ फाइलिंग व्यवस्था भी लागू हो जाए ताकि कम से कम लोगों को कुछ राहत मिले. इन सारी योजनाओं को लेकर उन्होंने कहा कि वे कल ही रांची जा रहे हैं और सचिव से अपनी परेशानी बताएंगे और उन्हें भरोसा है कि उन्हें कोई न कोई रास्ता जरूर मिलेगा.
रिपोर्ट : शम्भवी सिंह के साथ प्रकाश
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