टीएनपी डेस्क (TNP DESK): आज के दौर में किसके पास मोबाइल फोन नहीं होता? छोटा बच्चा हो या कोई बुजुर्ग, ऐसा कौन हैं जिसे एनरोइड फोन यूज़ करना नहीं आता? कोई बड़ा बिजनेसमैन हो या रिक्शा चलने वाला साधारण इंसान, सभी एक हाथ में एक एनरोइड फोन तो ज़रूर ही दिखाई देता है. एक तरफ तो ख़ुशी है कि हमारे देश के लोग आगे बढ़ रहे हैं और टेक्नोलॉजी का विस्तार हो रहा हैं, लेकिन हर सिक्के के दो पहलु होते हैं. हम आपको नहीं बोलेंगे कि मोबाइल के लगातार इस्तेमाल से केवल बच्चों पर ही बुरा प्रभाव पढ़ता हैं, बल्कि इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको मोबाइल के दुष्प्रभाव के हर पहलू के बारे में विस्तार से बताने की कोशिश करेंगे.
बढ़ी मोबाइल पर निर्भता
मोबाइल का उपयोग दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है. आज का तो लोगों को हर एक काम के लिए मोबाइल की ज़रूरत पढ़ती है. बच्चों को पढ़ाई करनी हो, महिलाओं को ऑनलाइन स्टोर से घर के सामान मंगाने हों या फिर पुरुषों को फोन पर ऑनलाइन मीटिंग करना हो. कोरोना ने लोगों को मोबाइल पर निर्भर रहना सिखा दिया है, हालांकि मोबाइल से हमारी ज़िन्दगी कुछ हद तक आसान भी हुई है, लेकिन ये भी सच है कि रोज़ाना मोबाइल के घंटों इस्तेमाल से लोगों पर कई तरह के मानसिक और शारीरिक दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं. जानकारों की मानें तो मोबाइल फोन से निकलने वाले इलेक्ट्रोमेगनेटिक विकिरणों से डीएनए क्षतिग्रस्त हो सकता है. इसके अलावा मोबाइल का अधिक इस्तेमाल हमें कई जानलेवा रोग जैसे कैंसर, ब्रेन ट्यूमर, डायबिटिज, ह्रदय रोग आदि भी दे सकता है. मोबाइल से करीबी लोगों को एक दूसरे से दूर कर रही है.
बच्चे हो सकते हैं obesity के शिकार
बच्चों की बात करें तो हाई-स्पीड मीडिया कंटेंट से बच्चों के फोकस करने की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित होती है. इससे वे किसी एक चीज़ पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते और उन्हें तथ्यों को याद करने में दिक्कत आती हैं. जो बच्चे ध्यान भटकने की समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं उन्हें पढ़ाई करने में दिक्कत आती है. लगातार बैठ कर फोन चलाने से बच्चो में फिजिकल एक्टिविटी काम होती हैं. इससे उन्हें ओबेसिटी जैसी समस्या का सामने करना पड़ता है. मोबाइल के लगातार इस्तेमाल से आमतौर पर बच्चो में अग्रेशन भी देखा गया हैं. बता दें कि WHO ने मई, 2011 में सेलफोन के 2B कैटेगरी के रेडिएशन रिस्क को संभावित कैंसरकारक (possible carcinogen) बताया है. लेकिन साल 2013 में Toronto University के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (University of Toronto’s School of Public Health) के डॉ. एंथोनी मिलर ने अपनी रिसर्च में बताया कि रेडियो फ्रेक्वेंसी एक्सपोज़र के आधार पर 2B कैटेगरी को नहीं बल्कि 2A कैटेगरी को कैंसरकारक मानना चाहिए. बच्चे हमारा भविष्य हैं लेकिन टैक्नोलॉजी को हद से ज्यादा इस्तेमाल करनेवाले बच्चों का भविष्य धूमिल है.
अब बताते हैं महिलाओं पर मोबाइल के दुष्प्रभाव के बारे में...
मोबाइल का ज़्यादा इस्तेमाल महिलाओं की सेहत के लिए बुरा साबित होता है. खासतौर पर प्रेग्नेंट महिला और उसके पेट में पल रहे बच्चे के लिए. प्रेग्नेंसी के दौरान मोबाइल फोन के इस्तेमाल से पेट में पल रहे बच्चे के विकास पर बुरा असर पड़ता है. इसकी वजह से प्रीमेच्योर डिलीवरी तक हो सकती है. महिलाएं दिन भर का काम करने के बाद वैसे ही मानसिक और शारीरिक तौर पर थकी होती हैं, इसके बाद भी मोबाइल यूज़ करने से वो मेंटली exhaust हो सकती हैं. जिससे नींद नहीं आने जैसी समस्या उत्पन्न होती हैं.
बुजुर्ग के लिए चेतावनी
मोबाइल के लगातार इस्तेमाल से बुजुर्ग भी पीछे नहीं हैं. हालांकि इनमें मोबाइल यूज़ के घंटो में कमी है. रिपोर्ट्स की मानें तो 40 से 60 की उम्र के 30 फीसद लोग स्मार्ट मोबाइल फोन में इंटरनेट का प्रयोग करते हैं, 60 से 70 साल की उम्र वाले 15 से 20 फीसद बुजुर्ग फोन में इंटरनेट यूज करते हैं. इस लत से बुजुर्गों के सामाजिक जीवन पर भी ख़ास असर पड़ रहा है. आमतौर पर अकेलापन दूर करने के लिए बुजुर्ग मोबाइल फोन का सहारा लेते हैं, लेकिन उसकी लत में आकर उन लोगों से भी दूर हो जाते हैं जो उनके नज़दीक हैं. इसके साथ इन्हें कई समस्या का भी सामना करना पड़ता है, जिसमे सिरदर्द, आंख का कमजोर होना, ब्लड प्रेशर की समस्या, शारीरिक कामों में कमी होना शामिल हैं.
जानें मनोवैज्ञानिकों की राय
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मोबाइल और इंटरनेट के इस्तेमाल से लोगों के बीच वर्चुअल वल्र्ड में तो कनेक्शन स्ट्रॉन्ग होते जा रहे हैं, पर परिवार और समाजिक रिश्तों की मिठास कम होती जा रही है. मोबाइल से निकलने वाली हैवी इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन से कई बीमारियों को न्योता देते हैं. लोगों को ज़रूरत हैं, की वो इन घातक बीमारियों से बचाव के लिए अपने ज़िन्दगी में मोबाइल फोन से थोड़ी दुरी बरते, ज़रूरत पड़ने पर मोबाइल का इस्तेमाल ज़रूर करें लेकिन इसकी लत लगने से बचे रहें.
Recent Comments