दुमका (DUMKA) : दुमका में ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल द्वारा रामगढ़ प्रखंड के लखनपुर में बांसलोई नदी पर मुख्यमंत्री सेतु योजना से पूल का निर्माण कराया जा रहा है. 10 करोड़ रुपए की लागत से इस पूल का निर्माण कार्य पाकुड़ की एबीसी कंस्ट्रक्शन द्वारा किया जा रहा है. ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल, दुमका के कार्यपालक अभियंता उदय कुमार सिंह ने द न्यूजपोस्ट से बात करते हुए बताया कि संवेदक कंपनी को कार्य के एवज में एक करोड़ 42 लाख 20 हजार 590 रुपए भुगतान के लिए 28 अक्टूबर को चेक और हार्ड कॉपी विभाग द्वारा कोषागार में जमा किया गया. लेकिन वह राशि संवेदक कंपनी के खाता में नहीं पहुंचा. 10 दिन बाद 8 अक्टूबर को संवेदक द्वारा इसकी लिखित शिकायत ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल से की गई. शिकायत मिलते ही विभाग के होश उड़ गए.
एकाउंट से हो गई निकासी
विभाग द्वारा इसकी लिखित जानकारी कोषागार को दी गयी. फ़ाइल और कंप्यूटर खंगालने के बाद पता चला कि उक्त राशि एबीसी कंस्ट्रक्शन कंपनी की एसबीआई खाता के बदले हरियाणा के हिसार की कंपनी मेसर्स जीके इंटरप्राइजेज के केनरा बैंक के खाते में भेज दी गयी. सूत्रों की माने तो जीके इंटरप्राइजेज द्वारा राशि की निकासी की जा चुकी है. विभाग द्वारा 8 नवंबर को नगर थाना में जीके इंटरप्राइजेज के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया. पुलिस इस मामले की जांच में जुट गई है.
संदेह के घेरे में कई विभाग
1 करोड़ 42 लाख 20 हजार 590 रुपए की सरकारी राशि का शातिराना अंदाज में हेराफेरी हो गयी. संदेह के घेरे में ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल से लेकर कोषागार तक है लेकिन कोई भी इसकी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है. दोनों विभाग का अपना अपना दलील है. जिला कोषागार पदाधिकारी विकास कुमार का तर्क है कि ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल द्वारा तमाम कागजी प्रक्रिया पूरी करने के बाद जो नंबर उपलब्ध कराया गया था उस पर उसने राशि को ट्रांसफर कर दिया. इस हेरा फेरी में ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल की भूमिका अहम होती है.एक करोड़ 42 लाख से ज्यादा की रकम का हेरा फेरी हुआ या यूं कहें सरकारी राशि का गबन हुआ. इस मामले में विभाग द्वारा हरियाणा की कंपनी जीके इंटरप्राइजेज पर प्राथमिकी दर्ज कराया गया है. पुलिस मामले की जांच में जुड़ गई है लेकिन सवाल कई है. राशि स्थान्तरित करने के पूर्व कई प्रक्रिया से गुजरती है. विशेष प्रमंडल द्वारा तमाम कागजी प्रक्रिया पूरी करने के बाद साइट पर अपलोड किया जाता है और हार्ड कॉपी कोषागार भेजा जाता है. कोषागार द्वारा हार्ड कॉपी और साइट पर मिलान करने के बाद राशि का स्थांतरण किया जाता है. इस मामले में देखें तो साइट पर अपलोड और हार्ड कॉपी कोषागार को भेजने के बाद साइट पर एसबीआई के खाता संख्या को बदलकर केनरा बैंक का खाता कर दिया गया. इसके लिए मोबाइल पर ओटीपी आता है. इस मामले में ओटीपी वेरिफिकेशन के लिए जिस मोबाइल नम्बर का उपयोग हुआ वह ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल के पूर्व लेखपाल का है जिसका स्थांतरण अगस्त में ही रामगढ़ प्रखंड हो गया. ट्रांसफर के साथ ही उसके मोबाइल नम्बर को डीएक्टिवेट कर दिया गया तो सवाल उठता है कि उसके मोबाइल को फिर से एक्टिवेट किसने किया.
अब आगे क्या
पुलिस पूर्व लेखपाल से पूछताछ कर रही है लेकिन सूत्रों की माने तो अभी तक पुलिस को कुछ भी सफलता हाथ नहीं लगी है. डेटा में छेड़छाड़ विशेष प्रमंडल के लोग इन से ही हो सकता है. अब सवाल उठता है कि विशेष प्रमंडल के लोग इन का यूजर आईडी और पास वार्ड कैसे कोई जान सकता है. कोषागार पदाधिकारी भेल ही इस मामले में अपना पल्ला झाड़कर पूरा दोष ग्रामीण विकास के माथे मढ़ रहा है लेकिन राशि ट्रांसफर करते वक्त सॉफ्ट कॉपी से खाता संख्या को क्यों नहीं मिलाया गया. इस सब के बीच ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता उदय कुमार सिंह ने जांच पूरी होने तक अपने कार्यालय के तमाम अधिकारी और कर्मी को मुख्यालय में बने रहने का आदेश निर्गत किया है.
सूत्रों की माने तो एबीसी कंस्ट्रक्शन कंपनी झारखंड के एक एमपी ने चुनाव जीतने से पूर्व अपने दो अन्य सहयोगी के साथ मिलकर बनाया था. सांसद बनने के बाद इस कंपनी से अपना नाम वापस ले लिया है. इसलिए मामला हाई प्रोफाइल है.
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