धनबाद (DHANBAD) - झरिया के कोयला खदानों की परिधि वाले पांच एकड़ के खेत सबका ध्यान आकर्षित कर रहे हैं. किसान गजाधर महतो ने अपनी खेती के तरीके से इस क्षेत्र की सूरत बदल दी है. पेशे से शिक्षक गजाधर महतो एक निजी स्कूल में पढ़ाते थे. यहां उन्हें मामूली वेतन मिलता था. वहीं गजाधर महतो का परिवार कम वेतन पर गुजारा करने के लिए संघर्ष कर रहा था. तब उनकी पत्नी गीता महतो ने जीवन निर्वाह के लिए सब्जियों और फलों की खेती करनी शुरू की. उन्हें देख गजाधर महतो ने भी खेती करने की ठान ली.
शून्य-अपशिष्ट फार्मूला से खेती
गजाधर खेती में भी कुछ अलग करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से बेहतर खेती करने के लिए प्रशिक्षण लिया. प्रशिक्षण के बाद वे कई किसानों के मेंटर बन गए. बता दें कि टाटा स्टील फाउंडेशन ने गजाधर महतो को प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान की. जिसने उन्हें जैविक तरीके से खेती करने को सक्षम बनाया. बता दें कि महतो की खेती के तरीके अपने आप में एक सस्टेनेबल इकोसिस्टम है, जो शून्य-अपशिष्ट फार्मूले के साथ एक स्वतंत्र खाद्य श्रृंखला के रूप में कार्य करता है. वहीं बकरियां घास और अन्य अपशिष्ट पदार्थ खा लेती है.
कचरा बन जाता है मुर्गियों के लिए भोजन
खेत के अंदर दीमक लगा कचरा मुर्गियों के लिए भोजन का काम करता है, जबकि मुर्गियों का अपशिष्ट उसके डोभाओं में मछलियों के लिए चारे का काम करता है. गजाधर के अनुसार, “हमने देखा कि कीटनाशकों और पेड़-पौधों में प्रयुक्त रासायनिक खाद के अधिक उपयोग के कारण लोग बीमार पड़ रहे हैं. जब हमने गोबर और प्राकृतिक कचरे का उपयोग खाद के रूप में करना शुरू किया, तो हमें एक बड़ा अंतर दिखा.” गजाधर खुद को केवल एक किसान तक ही सीमित नहीं रखना चाहते थे. उनमें एक शिक्षक की भूमिका निभाने की भी उत्कंठा कायम थी.
झरिया की आग
बता दें कि झरिया के गर्भ में भूमिगत आग है. जिसके ऊपर बिंदास जिंदगी चलती है. जानकर बताते हैं कि झरिया के लगभग 8. 90 वर्ग किलोमीटर में अब भी आग है और बीसीसीएल की 41 से अधिक कोलियारियां इसकी चपेट में हैं.
रिपोर्ट : सत्यभूषण सिंह, धनबाद
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