देवघर (DEOGHAR) - आज अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस मनाया जा रहा. कई कार्यक्रम होंगे, घोषाणाएं होंगी, योजनाएं बनाई जाएंगी. पर इन योजनाओं-घोषणाओं से क्या वाकई उनके चेहरे पर मुस्कान खिलेगी जो इन लाभों के हकदार हैं ! क्या देवघर की अंजलि की जिंदगी में भी आज के आयोजनों से रोशनी बिखरेगी !

क्या है मामला

करौ प्रखण्ड के बघनाडीह गांव की 13 वर्षीय अंजलि बचपन से ही दोनों आंखों से दिव्यांग हैं. मां की कोख से गोद और फिर जमीं तक का सफर तय कर ली. इस उम्र की किसी भी आम बच्ची की तरह उसके चेहरे पर चपलता है.  आम बच्चियों की तरह चंचल चुलबुली है अंजलि. पर अब तक दुनिया के सुंदर नजारे नहीं देख सकी है. आम बच्चियों की तरह न फूलों पर मुग्ध हो सकी, न तितलियों के पीछे भागी है. मां का प्यार तो महसूस कर रहीं, पर मां की आंखों में तैरती चिंताओं से मासूम अंजलि शायद वाकिफ नहीं हो सकी है. दुनिया की खूबसूरती के साथ दुनिया के बदरंग पहलुओं से भी नावाकिफ है भोली-भाली अंजलि. ऐसे में उनके माता-पिता का चिंतित होना लाजिमी है.

दर-दर भटक रहे मजदूर पिता

अंजलि के पिता सुनील झा मजदूर हैं. टूटे-फूटे कच्चे मकान में वे लोग रहते हैं. लाड़ से पली दिव्यांग बेटी की जिंदगी को लेकर आशंकित माता-पिता बेटी को सरकारी सुविधाओं का लाभ दिलाना चाहते, पर कई कोशिशों के बाद भी ऐसा नहीं कर पाए हैं. अंजली के पिता सुनील झा ने बताया कि दर्जनों बार प्रखण्ड कार्यालय का चक्कर लगा चुके हैं. पर अब तक उन्हें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिली है. बकौल सुनील झा, सरकार आपके द्वार कार्यक्रम में भी आवेदन दिया गया है, पर वहां से भी सिर्फ आश्वासन ही हाथ लगा है. खबर के माध्यम से वे सूबे के मुखिया हेमंत सोरेन तक अपनी फरियाद पहुंचाना चाहते हैं. वहीं अंजलि की मां भी कहती हैं कि जन्म से दोनों आंखों से मेरी बेटी नहीं देख पा रही. जिंदगी की इसकी राह सरकारी सुविधाओं से आसान हो जाती तो सुकून होता.

बहरहाल जिस उम्र में अंजलि है, उसे संभावनाओं की उम्र कहा जाता है. दिव्यांग होना संभावना के द्वार बंद नहीं करता. प्रख्यात संगीतकार रविंद्र जैन, डांसर सुधा चंद्रन और सोनल मानसिंह, पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा…कई मिसाल हैं जो दिव्यांग होने के बाद भी सफलता की चोटी पर पहुंचे. ऐसे में सरकार की थोड़ी सी सजगता, थोड़ी सी संवेदनशीलता अजंलि के जीवन में भी रोशन बिखेर देगी, इससे इंकार नहीं किया जा सकता. अंजलि के माता-पिता को आस इसी सजगता, इसी संवेदशीलता की है.

रिपोर्ट : अजीत आनंद/रितुराज सिन्हा