रांची (RANCHI) : पलामू के किसान नागपुर की तरह बड़े पैमाने पर संतरे की खेती कर रहे हैं. चियांकी कृषि अनुसंधान केंद्र में कई एकड़ में  संतरे का पौधा लगाया गया है. पलामू के किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है. कई सालों से सुखाड़ की मार झेलते आ रहे किसानों के लिए संतरे की खेती वाकई बड़ा विकल्प साबित होगी. जरूरत है सरकार को ऐसे फलदार खेती में किसानों को सिंचाई यंत्र कम कीमत पर मुहैया कराने की, तभी किसान अच्छी फसल कर लाभ कमा सकते हैं.

 किसानों के लिए एक नई उम्मीद 

 किसानों का कहना है कि हर साल सुखाड़ की मार झेलते हैं. वर्षा हुई तो खेती हुई. वर्षा नहीं हुई तो फसल का नुकसान होता है. यह सिलसिला कई सालों से चला आ रहा है. मगर चियांकी कृषि अनुसंधान केंद्र में लगे पीले-पीले संतरे का फल पलामू के किसानों के लिए एक नई उम्मीद दे रहा है. दरअसल इस अनुसंधान केंद्र के दस एकड़ में लगे संतरे का फल नागपुर और हिमाचल प्रदेश जैसा है. मीठे और बड़े आकार का संतरा खाने में भी स्वादिष्ट होता हैं.

 बंद पड़ी हैं पुरानी सिंचाई योजनाएं 
               
पलामू जिला रेन शैडो एरिया में आता है. यही वजह है कि यहां कभी कम बारिश हुई तो कभी अधिक गर्मी हुई. यही वजह है कि पलामू के किसान परेशान हो जाते हैं. ज्यादातर जिले के किसान खेती बाड़ी पर ही निर्भर हैं. जिले में ज्यादातर पुरानी सिंचाई योजनाएं बंद पड़ी हैं. यही वजह है कि यहां के किसान पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर हैं. धान गेहूं दलहन तिलहन की मात्र खेती करते हैं जिससे कभी नफा तो कभी नुकसान होता है. चियांकी के संतरे की खेती देखने के लिए शहर के लोग भी पहुंचते हैं और सराहना करते हैं.                    

 फलदार पौधे  के लिए किया जाता है प्रेरित 

पलामू के चियांकी कृषि अनुसंधान केंद्र में जिले के किसानों को फलदार पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया जाता है. पिछले कई सालों से संतरे की खेती के बारे में जिले के किसानों को बुलाकर उन्हें बताया जाता है. टपक सिंचाई विधि से कम पानी के खर्च में बड़े पैमाने पर संतरे की खेती बंजर जमीन में किया जा सकता है. वहीं इस खेती के अलावे खेत के पौधों के बीच सब्जी भी उगाई जा सकती है. कृषि अनुसंधान केंद्र के पदाधिकारियों की माने तो किसानों के लिए संतरे की खेती बेहतर विकल्प है. कम मेहनत और कम पानी में अधिक कमाई का जरिया बन सकता है.

रिपोर्ट : रंजना कुमारी (रांची ब्यूरो)