रांची(RANCHI) : रांची समेत पूरे झारखंड में इस बार गर्मी ने हालत खराब कर रखी है. लगभग राज्य के सभी जिलों में पारा 40 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच चुका है. राज्य की राजधानी रांची की बात करें तो शहर में पहले भी गर्मी पड़ती रही है. मगर, ये कभी इतनी बड़ी चिंता नहीं बनी, जो इस साल बनी है. दरअसल, रांची में हर साल चैत्र और वैशाख महीने में गर्मी पड़ती है. मगर, दिन में कितनी ही तेज गर्मी क्यों ना पड़ें, शाम होते-होते तक पूरे शहर में ठंडी हवाओं के साथ तेज बारिश होने लगती थी. दिन भर लोग गर्मी से परेशान जरूर रहते थे, मगर, रात में उन्हें चैन की नींद आती थी.

दो महीने में नहीं टपकी दो बूंद

मगर, इस साल अप्रैल में रांची के मौसम ने ऐसी करवट ली है कि गर्मी तो रिकॉर्ड तोड़ ही रही है. साथ ही, बारिश का नामोनिशान तक नहीं हैं. और ये हाल सिर्फ अप्रैल माह का नहीं है, बल्कि रांची में पिछले दो महीने से बारिश की एक बूंद नहीं टपकी है. ऐसा होने के पीछे का कारण और भी चिंता पैदा करने वाला है. गर्मी के दिनों में रांची में हमेशा स्थानीय वाष्पीकरण और लोकल क्लाईमेट इफेक्ट के कारण बारिश होते रही है. जो इस साल दो महीने से अब तक नहीं हुई है. पर्यावरणविद् इसे बड़े खतरे की घंटी बता रहे हैं. अगर शासन-प्रशासन और जनता नहीं चेती तो स्थिति आने वाले दिनों में और भयावह हो सकती है.

रांची में इस कारण होती रहती थी बारिश

रांची का मौसम अरबन हिट इफेक्ट सिस्टम से जुड़ा हुआ रहा है. इसका मतलब है कि रांची में जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, वैसे ही लोकल इफेक्ट प्रभावी हो जाता है. इसके कारण 2 बजे के बाद रांची का मौसम अचानक से बदल जाता है. और शाम होते तक तेज हवाएं चलने लगती. इसके साथ हल्की बारिश भी हो जाती है. इसी लोकल इफेक्ट के कारण रांची को गर्मी में मिनी कश्मीर या फिर ग्रीष्मकालिन राजधानी भी कहा जाता था.

इस लोकल इफेक्ट के काम करने के पीछे भी एक बड़ा कारण था. रांची में आज से 25 से 30 वर्ष पहले तक निजी, सार्वजनिक मिलाकर, कम से कम ना भी तो 300 तालाब थे. जो आज घटते-घटते 30 से 35 ही बचे हैं. रांची में कई नाले और नदियां भी बहा करती थी.  इसके साथ ही रांची में पेड़- पौधों भी अधिक थे. मगर, शहर का विकास होने से बहुत सारे पेड़ काट दिए गए. पेड़ों के कारण  मिट्टी में नमी रहती थी. इन सब कारणों से वाष्पीकरण होता था. इसी से लोकल सिस्टम बनता था और बारिश होते रहती थी.  

अब शहर पूरी तरह बदल चुका हैं

मगर, अब रांची पूरी तरह बदल चुकी है. विकास के कारण ये पेड़ों से भरा हुआ शहर कन्क्रीट में बदल चुका है.  बड़ी-बड़ी इमारतों और सड़कों ने जमीन में जाने वाले पानी के रास्ते को ही बंद कर दिया है. शहर में पानी के लिए बोरिंग पर बोरिंग तो हुई मगर, बारिश के पानी के संचय के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग लागू नहीं हुआ. रांची की भौगौलिक स्थिति भी पठारी है, इस कारण पानी भूमि के गर्भ में ठहरता भी नहीं है. पानी तो ठहर रहा नहीं है, मगर, पानी की डिस्चार्जिंग उतनी ही ज्यादा हो रही है. इस कारण रांची के मौसम को बर्बाद हो चुका है. मार्च –अप्रैल में रांची में बारिश का ना होना तो बस एक ट्रेलर भर है. अगर, अभी इस स्थिति पर विचार नहीं किया गया तो फिल्म और भी भयावह होने वाली है.

वाहनों की बढ़ती संख्या भी गर्मी के पीछे का सबसे बड़ा कारण

रांची के मौसम के इस हाल के पीछे एक कारण और भी है और वो हैं वाहनों और एयरकन्डिशन की संख्या में अचानक से बेतहाशा वृद्धि. इन सबसे निकलने वाली गर्मी ने रांची के हीट वेब को बढ़ा दिया है. कई पर्यावरणविदों की मानें तो हालात बहुत गंभीर हो चुके हैं. पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी बताते हैं कि जब कोरोना के कारण 2020 में लॉकडाउन था तब पूरी गर्मी रांची में बारिश होती रही. इससे लोगों को समझना चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों हुआ. लॉकडाउन के कारण जब सारी फैक्ट्रियां और वाहन परिचालन बंद था, तब लोकल सिस्टम बनता रहा और बारिश होती रही. उन्होंने बताया कि रांची के लोकल सिस्टम को बचाना है तो सभी तालाबों और डैम का संरक्षण करना होगा. ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे. सड़कों को बनाने समय पेड़-पौधों के संरक्षण पर भी ध्यान देना होगा. अगर, ये सब किया गया तब ही लोकल सिस्टम क्रिऐट हो पाएगा, नहीं तो रांची में भी बारिश के लिए लोगों को वैसे ही इंतजार करने की आदत लग जाएगी, जैसे किसी सुखाड़ग्रस्त इलाके की हालत होती है.