रांची (RANCHI) : इन दिनों झारखंड की सियासत में कुछ शब्दों का खूब उपयोग हो रहा. इनमें ऑफिस ऑफ प्रॉफिट यानी का लाभ का पद, धारा 9 ए, भारतीय जनप्रतिनिधित्‍व कानून 1951 आदि की खूब चर्चा हो रही. इन शब्दों के जरिए ही सियासत में बड़े उलट फेर की आशंका दिग्गज जाहिर कर रहे हैं. इन्हीं शब्दों की वजह से कुछ नेताओं की नींद उड़ी हैं तो कुछ की गोटी फिक्स होती नजर आ रही. आइए इन शब्दों के बारे में कुछ जानकारी हासिल करें-

OFFICE OF PRPFIT यानि माननीयों को दूसरे मद से लाभ की मनाही

संविधान के अनुच्छेद 102 (1) A  के अनुसार कोई भी सांसद या विधायक ऐसे किसी पद पर नहीं हो सकते जहां वेतन, भत्ते या प्रत्‍यक्ष-अप्रत्‍यक्ष रूप से किसी दूसरी तरह के फायदे मिलते हों. संविधान के अनुच्छेद 191 (1) (A) और भारतीय जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 9 (A) के तहत भी सांसदों और विधायकों को किसी दूसरे मद से लाभ या अन्य पद नहीं लेने का स्पष्ट उल्लेख है. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 सांसदों व विधायकों के भ्रष्ट आचरण और अन्य अपराधों के खिलाफ एक्शन का समर्थन करता है. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (4) में यह भी प्रावधान है कि कोई भी जनप्रतिनिधि अगर किसी भी मामले में दोषी ठहराए जाने की तिथि से तीन महीने तक अदालत में अपील दायर करता है, तो उसका निबटारा होने की तिथि तक वह अपने पद से अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता.