रांची (RANCHI)- झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने  भाजपा पर हमला किया है. झामुमो ने स्पीकर डा रवींद्र नाथ महतो और बाबूलाल के बहाने भाजपा पर तीखे प्रहार किया है. JMM के महासचिव  सुप्रियो भट्चार्य ने कहा कि बाबूलाल के पांच विधायकों को भाजपा ने शामिल कराया था.तब से वे दसवीं अनुसूची की बातें करते रहते थे.लेकिन आज वे फिर उसी पार्टी में गए हैं. 11 विधायकों को 2009 में तत्कालीन स्पीकर आलमगीर आलम ने दल-बदल में उनकी सदस्यता खारिज की थी. आज वही नियम जब विधानसभा न्यायीकरण में है. इसके बाद भी वर्तमान स्पीकर पर तब से ही उनका आक्रमण हो रहा है. संवैधानिक रूप से यह गलत परंपरा है. हमने देखा है कि सदन संचालन में कि विपक्ष द्वारा जितना समय मांगी जाती है, सत्ता पक्ष को दबाकर भी विपक्ष को पूर्ण संमय आवंटन करता है. यह होना भी चाहिए. क्योंकि लोकतंत्र में विपक्ष की अहम भूमिका है. 

भट्टाचार्य ने कहा कि स्पीकर पर ऊंगली उठाकर आखिरकार बाबूलाल और उनकी टीम कहां है.जानकारी आ रही है कि उनका और उनकी टीम मेंबर का मोबाइल बंद आ रहा है.राज्य के प्रथम मुख्मयंत्री का लोकेशन ट्रेस नहीं हो रहा है तो यह बहुत गंभीर मामला है. उनको बताना चाहिए कि आज कल कहां हैं जबकि हर जगह डीजिटल मीडिया उपलब्ध है.सोशल मीडिया प्लेटफार्म उपलब्ध है. कहीं से भी मैसेज किया जा सकता है.अध्यक्ष पर ऊंगली उठाकर चल जान गलत है. प्रकिया पर ऊंगली उठाकर चल जाना सही कदम नहीं है.उनको शायद यह दस्तावेज मिल गया होगा.यह दस्तावेज यह बात को प्रमाणित करता है कि पूर्व हुए फैसले को इंगित करता है. ईडी प्रकरण के बाद बाबूलाल और रघुवर दास कहीं गुम हो गए हैं.बाबूलाल जिस झाविमो से चुनकर आए थे. उसके दल तीन सदस्यों की विधायक मंडल ने बिना शर्त वर्तमान सरकार को समर्थन दिया था, विधायक दल नेता प्रदीप यादव के हस्ताक्षर से समर्थन पत्र सौंपा गया था. स्पीकर को भी लिख कर दिया गया. इसके आधार पर स्पीकर ने सदन में इन्हें बैठने की व्यवस्था बनायी. फिर अचानक बाबूलाल मरांडी भाजपा में चले गए. फिर अचानक सूचना आती है कि उनके दो विधायक निर्दलीय हो गए और बाबूलाल भाजपा विधायक हो गए.जब न्यायधीकरण में मामला चल रहा हो, कोर्ट चले गए.आदिवासी मुख्यमंत्री को यहां से हटाओ.आज भाजपा भी एक आदिवासी सीएम को हटाने के लिए बाबूलाल जी को यूज कर रही है. मुझे और सभी को याद है कि 2003 में भाजपा को केंद्रीय नेतृत्व को कहा था कि मैं आदिवासी हूं और मेरे काम में जिस प्रकार से दखल दिया जाता है, मंत्रियों को ख्वाईसें बढ़ती जा रही है. ऐसे में काम करना मुश्किल हो रहा है. यही भाजपा केंद्रीय नेतृत्व पर लगार बतौर मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने इस्तीफा दे दिया था.उनकी व्यथा थी की वे संथाली आदिवासी हैं, इसलिए काम करने नहीं दिया जा रहा है और इसलिए इस्तीफा देते हैं. यह बात हम अभी तक नहीं भूले नहीं है. वही खाका भाजपा तैयार कर रही है.विधानसभा अध्यक्ष पर सवाल उठाना गलत है.साढ़े चार साल से अधिक तक तत्कलीन विधानसभा अध्यक्ष डा दिनेश उरांव के कोर्ट में मामला चला. इसके बाद निर्णय आया हमलोग भी जल्दी निर्णय लेने का आग्रह करते रहते थे.मगर कभी भी ऊंगली खड़ा नहीं किया था. क्योंकि कि हमे उनके निष्पक्षता पर कोई शंका नहीं थी.यही बाबूलाल उस समय भी हाईकोर्ट गए थे.इसलिए बाबूलाल जी को धैर्य रखना चाहिए.मेरिट के आधार पर निर्णय होगा.