सरायकेला-खरसावां(SARAIKELA-KHARSAVAN)-आजाद भारत में लोकतंत्र की स्थापना के 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं, आज देश में ना तो कोई राजा है और ना ही राजबाड़े लेकिन आप को ये जानकर हैरानी होगी कि झारखंड के दक्षिण पूर्व में एक सुदूरवर्ती क्षेत्र है जहाँ आज भी राजा है और राजतंत्र को सम्मान देनी वाली प्रजा है,जी हाँ, हम बात कर रहे हैx सरायकेला - खरसावां के रियासत की यहां आज ना सिर्फ धार्मिक परंपराएं उसी हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है बल्कि कुछ समय के लिए राजतंत्र जीवित हो उठता है.विश्वास ना हो तो नवरात्रि के समय आप भी सरायकेला पहुँच भारत के इस अनोखे राजबाड़े का चश्मदीद बन सकते है.

आज भी राजपरिवार के द्वारा सोलह दिनों की होती है दुर्गा पूजा

भारत में भले ही आजादी के बाद लोकतंत्र की स्थापना हुई हो पर इसके वर्षों पूर्व 1640 ईं में सरायकेला राज स्थापना के बाद से ही सरायकेला में पूजा परंपरा हो या  राजकाज, यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था की झलक दिखती थी. सरायकेला राजपरिवार द्वारा किये जाने वाले सोलह दिनों की दुर्गा पूजा में राजपरिवार के सदस्यों के साथ आम लोग भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. यह परंपरा राजतंत्र के समय से शुरु होकर आज भी कायम है.आज भी उसी उत्साह और आस्था के साथ मनायी जाती है 
सरायकेला राजपरिवार द्वारा ज्युतिया अष्टमी से महाष्टमी तक मां दुर्गा की तांत्रिक मत से सोलह दिनों की दुर्गा पूजा होती है.

राजपरिवार के सदस्यों के द्वारा पारंपरिक शस्त्र के पूजा की है  परंपरा 

ज्युतिया अष्टमी से षष्ठी तक राजमहल के भीतर स्थित मां पाउड़ी के मंदिर में सरायकेला राजपरिवार द्वारा मां की पूजा की जाती है. वहीं षष्ठी के दिन के बाद से यह पूजा राजमहल के सामने स्थित मंदिर में शुरु होकर अष्टमी तक चलती है. इस दिन सरायकेला राजा समेत राजपरिवार के सदस्यों द्वारा खरकई नदी के तट पर पारंपरिक शस्त्र की पूजा की परंपरा है और फिर सरायकेला राजा राजमहल के सामने स्थित मंदिर में आकर पूजा करते हैं, वन दुर्गा का आह्वान करते हैं. यह परंपरा सरायकेला राज के स्थापना के बाद से आज तक चली आ रही है. 

इस पूजा मेंं सभी धर्मों के लोग सहयोग करते हैं
मां दुर्गा पूजा के वर्षों से चली आ रही परंपरा में राजतंत्र के समय राजा द्वारा पूजा का आयोजन किया जाता था पर लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करने के साथ आम लोगों से भी लगान के रुप में पूजा खर्च का एक हिस्सा लिया जाता था. इस सहभागिता में सभी धर्मों के लोग सहयोग करते थे. आज भी यहां के पूजा का खर्च सरायकेला राजा और आम लोगों द्वारा उठाया जाता है, आम लोग भी राजतंत्र की परंपरा को आज भी निभा रहे है.  इतना ही नहीं सभी इस ऐतिहासिक पूजा को अपना गर्व का विषय भी मानते हैं.आज के दौर में जाति वर्ण में बंटे समाज के लिए सरायकेला की यह पूजा परंपरा कहीं न कहीं लोगों के लिए बड़ी सीख और प्रेरणा बनती जा रही है.

रिपोर्ट : विकास कुमार,सरायकेला-खरसावां