धनबाद (DHANBAD) के इतिहास में 25 अक्टूबर 1992 एक काला दिन के रूप में याद किया जाता है. झरिया शहर न इसको भुला है और न भूल पाएगा. पटाखों की तड़तड़ाहट और जिन्दा जलते लोगों को जिसने भी देखा, उनकी आंखे पथरा गईं. धनबाद से पटना तक हड़कंप मच गया. तब के सीएम लालू प्रसाद यादव भागे भागे झरिया पहुंचे. मुआवजा और नौकरी की घोषणा की. सरकार की मृतक सूची में शामिल लोगों के परिजनों को एक लाख का मुआवजा तो मिला, लेकिन नौकरी नहीं मिली. उस वक्त धनबाद के डीसी थे व्यास जी और एसपी थे अनिल सिन्हा. झरिया की तंग गलियों में आगलगी की सूचना मात्र से ही प्रशासन के हाथ पांव फूल गए थे. सरकारी आकड़ों के अनुसार देखते देखते ही 29 लोगों की जान चली गई थी. वैसे उस वक्त मरने वालों की संख्या अधिक बताई जा रही थी, जो धनतेरस की खरीदारी करने झरिया बाजार पहुंचे थे. यहां यह बताना जरुरी है कि उस दिन भी और आज भी एक बहुत बड़ी आबादी का बाजार झरिया ही है. झरिया की सिंदुरिया पट्टी से एक चिंगारी निकली और देखते देखते ही बड़ी आबादी को अपनी चपेट में ले लिया. कई लाशें तो इस कदर जली थीं कि अंत तक उनकी पहचान नहीं हो पाई.
पटाखों की खरीद-बिक्री पर रोक
संकरी जगह होने के कारण घटना के बाद बचाव कार्य में भारी परेशानी हुई, दमकल की गाड़ियां घटनास्थल पर नहीं पहुंच पाई. काफी प्रयास के बाद भी लोगों को बचाया नहीं जा सका. महीनों तक मंत्री और अधिकारियों का दौरा जारी रहा. उस वक्त झरिया में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी गई थी. यह रोक लगभग 6 सालों तक रही, लेकिन उसके बाद झरिया में पटाखों की बिक्री फिर शुरू हो गई. बता दें कि झरिया में पटाखों की दर्ज़न भर से अधिक थोक दुकानें हैं.
बिहार में घोषणा, झारखंड बनने के बाद मुआवजा
जानकारी के अनुसार बिहार के सीएम ने घटना में हुई मौत को लेकर मुआवजे की घोषणा की थी, लेकिन वह मिला झारखण्ड बनने के बाद. इसके लिए भी पानेवालों को पापड़ बेलने पड़े. अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों के दरवाजे खटखटाने पड़े. नौकरी की बात तो अब लोग भूल ही गए हैं.
रिपोर्ट : अभिषेक कुमार सिंह, ब्यूरो चीफ, धनबाद
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