टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : राज्य में पेसा (PESA) नियमावली के गठन में देरी के कारण बालू की किल्लत 13 नवंबर तक बनी रहने की संभावना है. दरअसल, पिछली कैबिनेट बैठक में पेसा नियमावली के मसौदे पर कोई चर्चा नहीं की गई. 30 अक्टूबर को राज्य सरकार के वकील ने उच्च न्यायालय को बताया था कि नियमों का मसौदा मुख्यमंत्री को भेजा जा चुका है और जल्द ही इसे कैबिनेट के समक्ष पेश किया जाएगा. हालांकि, न्यायपीठ ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की और नियमों की अधिसूचना जारी होने तक इंतजार करने का निर्णय लिया.

आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने बालू घाटों के आवंटन पर रोक लगा रखी है. मंच के वकील अभिषेक राय और ज्ञानंत सिंह ने अदालत को बताया था कि राज्य सरकार बालू घाटों के आवंटन की प्रक्रिया में है, जबकि पेसा नियम लागू होने के बाद यह अधिकार ग्राम सभाओं को मिल जाएगा. मंच के संयोजक ने कहा कि अदालत में दिए गए बयान से ऐसा लगा था कि कैबिनेट की सोमवार (3 नवंबर) को हुई बैठक में पेसा नियम रखे जाएंगे, लेकिन न तो यह एजेंडे में था और न ही इस पर विचार हुआ. अब उम्मीद है कि 13 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई से पहले यदि विशेष कैबिनेट बैठक नहीं बुलाई गई, तो बालू खनन पर रोक जारी रहेगी.

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने पहले ही 15 अक्टूबर तक बालू उत्खनन पर रोक लगा रखी थी. इसके बाद 9 सितंबर को मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की पीठ ने पेसा नियमों को अधिसूचित न करने पर गंभीर रुख अपनाते हुए बालू घाटों के आवंटन पर रोक लगा दी थी. राज्य सरकार का तर्क है कि मौजूदा कानूनी व्यवस्था में भी पंचायतों की सहमति के बिना रेत घाटों का आवंटन नहीं किया जाता. हालांकि, न्यायालय पेसा अधिनियम, 1996 के तहत बने नियमों के अनुपालन पर जोर दे रहा है.

आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा है कि सरकार का रेत खदानों की नीलामी का निर्णय अवैध है, क्योंकि पेसा नियमों के बिना ग्राम सभाओं का गठन नहीं हो सकता और उनकी सहमति के बिना कोई आवंटन वैध नहीं माना जाएगा. मंच ने यह भी आरोप लगाया है कि डीएमएफटी निधि (District Mineral Foundation Trust Fund) का खर्च और रेत घाटों की नीलामी, दोनों ही नियमों के विपरीत हैं. हलफनामे में मांग की गई है कि दोषी अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए जांच कराई जाए. मंच ने यह भी कहा कि पेसा अधिनियम के लागू होने के बाद ही ग्राम सभाओं को लघु वनोपज, जल स्रोतों, भूमि हस्तांतरण और स्थानीय संसाधनों के प्रबंधन जैसे अधिकार मिलेंगे.

राज्य सरकार पर आरोप है कि वह उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने में देरी कर रही है और इसका लाभ उठाने की कोशिश कर रही है. अब देखना यह होगा कि क्या सरकार 13 नवंबर से पहले विशेष कैबिनेट बैठक बुलाकर पेसा नियमावली को मंजूरी देती है या फिर बालू की किल्लत राज्य में और लंबी खिंचती है.