टीएनपी डेस्क(TNP DESK): गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस से बाहर होने के एक दिन बाद, पार्टी के सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि ऐसा लगता है कि 1885 में अस्तित्व में आने के बाद पहली बार भारत और कांग्रेस के बीच समन्वय में एक दरार दिखाई दे रही है. उन्होंने कहा कि पूर्व केंद्रीय नेता के इस्तीफे से बचा जा सकता था यदि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कई विधानसभा चुनावों में हार के बाद आत्मनिरीक्षण के आह्वान पर ध्यान दिया होता. तिवारी ने कहा कि पार्टी के 20 से अधिक नेताओं ने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी को पत्र लिखा और कहा कि अगर दिसंबर 2020 में हुई बैठक की सहमति को अमल में लाया जाता तो स्थिति से बचा जा सकता था.
बातों को नहीं लिया गया गंभीरता से
उन्होंने कहा कि "ऐसा लगता है कि 1885 से मौजूद भारत और कांग्रेस के बीच समन्वय में एक दरार दिखाई दे रही है. आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता थी. मुझे लगता है कि 20 दिसंबर 2020 को सोनिया गांधी के आवास पर बैठक की सहमति को अगर क्रियान्वित किया गया होता तो यह स्थिति नहीं होती. उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि कांग्रेस नेताओं ने पहले ही कहा था कि स्थिति को गंभीरता से लिया जाना चाहिए.
उन्होंने आगे जोड़ा कि दो साल पहले, हम में से 23 ने सोनिया गांधी को लिखा था कि पार्टी की स्थिति चिंताजनक है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए. उस पत्र के बाद कांग्रेस सभी विधानसभा चुनाव हार गई. अगर कांग्रेस और भारत की सोच एक थी, तो ऐसा लगता है कि दोनों में से किसी ने अलग-अलग सोचना शुरू कर दिया है.
“किरायेदार नही हैं, सदस्य हैं"
यह कहते हुए कि वह एक पार्टी सदस्य हैं, उन्होंने कहा कि हमें किसी से किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है. मैंने इस पार्टी को 42 साल दिए हैं. मैंने यह पहले भी कहा है कि हम इस संस्था (कांग्रेस) के किरायेदार नहीं हैं, हम सदस्य हैं. अब अगर आप हमें बाहर धकेलने की कोशिश करते हैं, तो यह दूसरी बात है, और यह देखा जाएगा.
बता दें कि गुलाम नबी आजाद ने कल कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पांच पन्नों के पत्र में अपना इस्तीफा सौंपा था. कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष को लिखे अपने इस्तीफे में आजाद ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता सहित सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. आजाद ने राहुल गांधी की "अपरिपक्वता" का हवाला दिया, जिसे उन्होंने पार्टी में "परामर्श तंत्र को ध्वस्त करने" के लिए दोषी ठहराया. अपने कठोर पत्र में आज़ाद ने दावा किया कि एक मंडली पार्टी चलाती है, जबकि वह सिर्फ एक नाममात्र की मुखिया थी और सभी बड़े फैसले राहुल गांधी या उनके सुरक्षा गार्डों और पीए द्वारा लिए गए थे.
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